किराया बढ़ोतरी पर DMRC के अपने तर्क लेकिन आम लोगों की जेब होगी ढीली
मेट्रो किराए में बढ़ोतरी पर डीएमआरसी ने दलील दी है कि निगम को हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए किराया बढ़ाना अपरिहार्य था।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। शहरों में पर्यावरणीय प्रदूषण के पीछे लाखों की तादाद में गाड़ियों को बताया जाता है। वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए जानकार कहते हैं कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना चाहिए। इस सिलसिले में देश के महानगरों में मेट्रो सुविधा लॉन्च की गई। लेकिन किराए में बढ़ोतरी की वजह से दिल्ली में मेट्रो से सफर करने वाले आम यात्री परेशान है। डीएमआरसी ने किराए में वृद्धि को अपरिहार्य बताया और इसके समर्थन में तर्क भी दिया डीएमआरसी का कहना है कि मेट्रो रेल के किराए में 10 अक्टूबर से हुई बढ़ोत्तरी के बाद देश के अन्य शहरों में चल रही मेट्रो के मुकाबले किराया कम ही रहेगा। इस साल 10 मई से मेट्रो रेल यात्री मिनिमम किराए आठ रुपये की जगह अब दस रुपये दे रहे थे जबकि अधिकतम किराया 50 रुपये था। । लेकिन, अब किरायों में पांच से दस रुपये की बढ़ोत्तरी हो चुकी है।
Jagran.Com से खास बातचीत में मेट्रो में नियमित यात्रा करने वाले सुरेश ने अपने खर्च को कुछ इस तरह बयां किया। सुरेश के घर से उनके दफ्तर की 21 किमी की दूरी मेट्रो द्वारा तय स्लैब 12-21 किमी के दायरे में आती है। किराया बढ़ोतरी से पहले सुरेश प्रतिदिन 60 रुपये खर्च करते थे। अगर इसे महीने के हिसाब से देखा जाए तो ये खर्च 1800 रुपये मासिक है। अब किराय में बढ़ोतरी के बाद उन्हें प्रतिदिन 80 रुपये खर्च करना होगा यानि महीने में अब वो 2400 रुपये मेट्रो किराया पर खर्च करना होगा। मेट्रो द्वारा किराए में वृद्धि के बाद प्रति माह सुरेश को 600 रुपये ज्यादा खर्च करना होगा। लेकिन किराया बढ़ोतरी के पीछे दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन के अपने तर्क हैं।
दूसरे शहरों के मुकाबले कम रहेगा दिल्ली मेट्रो का किराया
हालांकि, दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) के पास उपलब्ध आंकड़े पर अगर गौर करें तो दूसरी बार मेट्रो का किराया बढ़ाने के बावजूद दिल्ली मेट्रो का किराया देश के अन्य शहरों में चल रही मेट्रो जैसे- चेन्नई, कोच्चि, लखनऊ और मुंबई के मुकाबले सस्ता ही रहनेवाला है।
बढ़ गया मेट्रो का ऑपरेशन खर्च
दिल्ली में मेट्रो का किराया पिछले आठ वर्षों से नहीं बढ़ाया गया था और उसे बढ़ाने की मंजूरी इस साल दी गई। जिसका परिणाम ये हुआ कि 2011 में जहां मेट्रो ऑपरेशन से डीएमआरसी की कमाई 52 फीसदी से घटकर साल 2016-17 के बीच ये सिर्फ 25 फीसदी रह गई।
कर्ज तले दबी है डीएमआरसी
डीएमआरसी की रिपोर्ट के मुताबिक, “डीएमआरसी को काफी ऋण चुकाने हैं। 31 मार्च, 2017 तक डीएमआरसी ने 26,760.67 करोड़ रुपये लोन जेआईसीए से लिया और उसे सिर्फ 3,770.70 रुपये (जिसमें ब्याज 2263.67 करोड़ रूपये) चुकाया। यानि, 31 मार्च तक वे अगर ब्याज छोड़ दें तो मूलधन सिर्फ 1507.12 करोड़ रुपये ही वापस किया है।” यानि, डीएमआरसी को अभी 22, 989.40 करोड़ रुपये ऋण चुकाना है।
इसमें आगे कहा गया है कि मेट्रो ऑपरेशन के दौरान हर एक रुपये पर डीएमआरसी को सिर्फ 26 पैसे का मिलते हैं जबकि 27 पैसे जेआईसीए को लोन चुकाने में खर्च करने पड़ते हैं। जेआईसीए को जो लोन चुकाते हैं उसमें 11 पैसे लोन और 16 पैसे मूलधन होता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “ऐसी स्थिति में पैसा बचता नहीं है ताकि अगर किसी तरह के रिप्लेसमेंट की जरुरत हो तो उसे किया जा सके।” मेट्रो अधिकारियों के मुताबिक, 2001 में जहां मेट्रो के संचालन पर 48 फीसदी खर्च होते थे वहीं यह 2016-17 में बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया। इसका मतलब ये हुआ कि अगर साल 2011 में अगर डीएमआरसी की 100 रुपये कमाई थी तो उस वक्त उन्हें इसके संचालन पर 48 रुपये खर्च करने पड़ते थे लेकिन 2016-17 में बढ़कर ये 74 रुपये हो गए।
मेट्रो बोर्ड में हैं दिल्ली सरकार के पांच प्रतिनिधि
16 सदस्यीय मेट्रो बोर्ड में दिल्ली व केंद्र सरकार के पांच-पांच प्रतिनिधि हैं। इसके अलावा डीएमआरसी के अन्य निदेशक इसके सदस्य हैं। दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों ने बैठक में सरकार की मंशा से सदस्यों को अवगत कराया और दोबारा किराया निर्धारण समिति का गठन करने का सुझाव दिया।
हालांकि, बैठक में यह बात सामने आई कि मेट्रो रेल अधिनियम 2002 के तहत डीएमआरसी किराया निर्धारण समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए बाध्य है। बोर्ड के पास समिति की सिफारिशों को रद करने का अधिकार नहीं है।