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नसबंदी के खौफ से बंदूक छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं युवा नक्सली

अगर नक्सलियों के बीच ही शादी कर रहने की कोशिश करते हैं तो फिर नक्सली लीडर पति या पत्नी का नसबंदी करवा देता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 11 Dec 2017 12:22 PM (IST)Updated: Mon, 11 Dec 2017 05:58 PM (IST)
नसबंदी के खौफ से बंदूक छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं युवा नक्सली
नसबंदी के खौफ से बंदूक छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं युवा नक्सली

कांकेर/जगदलपुर, [राजेश शुक्ला/विनोद सिंह]। नक्सलियों के बीच रह कर युवाओं को लव मैरिज करने की छूट है, मगर वे संतान पैदा नहीं कर सकते अर्थात माता- पिता नहीं बन सकते। नक्सलवाद के इस नियम के कारण ही अब युवा नक्सलियों का बंदूक के प्रति मोह भंग होने लगा है, विशेषकर उनका जो शादी कर घर बसाना चाहते हैं। अगर नक्सलियों के बीच ही शादी कर रहने की कोशिश करते हैं तो फिर नक्सली लीडर पति या पत्नी का नसबंदी करवा देता है। यही कारण है कि नक्सलियों के साम्राज्य में नसबंदी एक ऐसा आतंक है, जिसने पति- पत्नी नक्सलियों को पुलिस के सामने सरेंडर करने को मजबूर कर दिया। जो नक्सली आसानी से बम फोड़ते हैं, बंदूक से फायरिंग करते हैं, वही नसबंदी कराने के बजाय जंगल छोड़ कर समाज की मुख्य धारा से जुड़ना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। ऐसा ही एक रोचक मामला छत्तीसगढ़ से सटी महाराष्ट्र सीमा पर सामने आया है। पति और पत्नी, दोनों खतरनाक नक्सली थे और उनके कारनामों के कारण पुलिस ने उन पर दो- दो लाख का पुरस्कार घोषित कर रखा था।

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नक्सली दल में कमला रामसू गावड़े और नागेश उर्फ राजेश मंडावी ने आपस में प्रेम किया। फिर शादी भी कर ली। शादी करते ही उन्हें चिंता सताने लगी, क्योंकि नक्सलियों के साथ रहकर संतान पैदा करने की अनुमति नहीं मिलती। आखिकार दोनों ने फैसला लेकर साहस दिखाया और बंदूक छोड़ कर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) सप्ताह के अंतिम दिन महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में एक महिला व पुरुष नक्सली ने आत्मसमर्पण कर यही कारण बताया गया है।

2011 से थे सक्रिय नक्सली

गढ़चिरौली एसपी डॉ. अभिनव देशमुख ने बताया कि कमला रामसू गावड़े व नागेश उर्फ राजेश मतुरसाय मंडावी ने बंदूक के साथ समर्पण किया। दोनों 2011 से नक्सली संगठन में सक्रिय थे। कमला केकड़ी दलम व नागेश पल्लेमारी दलम में था। नागेश मदनवाड़ा मुठभेड़, पल्लेमारी मुठभेड़ व सीतागांव विस्फोट में शामिल रहा। मदनवाड़ा मुठभेड़ में राजनांदगांव के एसपी विनोद चौबे के साथ कई जवान शहीद हुए थे। नागेश ने बताया कि कमला के साथ उसने प्रेम विवाह किया है। माओवादी लीडर संतान होने से रोकने के लिए जबरिया नसबंदी करा देते हैं। इससे परेशान होकर दोनों ने मुख्य धारा में लौटने का फैसला किया।

मुख्य धारा में लौटे नक्सलियों की प्रशासन ने करवाई थी शादी

नक्सलियों के बीच नसबंदी के बाद कई दंपती भागकर या सरेंडर के माध्यम से समाज के मुख्यधारा से जुड़े हैं। दो साल पूर्व समर्पित नक्सल दंपती कोसी व लक्ष्मण की प्रशासन व सामाजिक संगठनों ने जगदलपुर में धूमधाम से शादी करवाई थी। इसमें वर की बारात निकली थी, जिसमें वरिष्ठ प्रशासनिक और पुलिस अफसर शामिल हुए थे।

पैसे रखना भी प्रतिबंधित

नक्सल दलम में नशे का सेवन, निजी रूप से रकम की बचत, बिना अनुमति विवाह तथा संतानोपत्ति पूरी तरह प्रतिबंधित है। नक्सली दलम के सदस्यों के आपसी प्रेम संबंध होने पर शादी की अनुमति तो देते हैं लेकिन महिला व पुरूष नक्सली दोनों की नसबंदी करवा दी जाती है। जंगल में दौड़-भाग व पुलिस से लड़ाई के बीच गर्भवती महिला सदस्य रोड़ा न बने इसलिए ऐसे नियम बनाए गए हैं। नक्सली मानते हैं कि गर्भवती महिला नक्सली होने से उनकी सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है और खुफिया सूचना पुलिस तक पहुंच सकती है।

कुछ आदिवासियों में नसबंदी पर रोक

पूर्व में आदिवासी समाज में ऐसी मान्यता थी कि जितने अधिक बच्चे होंगे, उतना ही अधिक खेती में काम-काज व मजदूरी से आय होगी। प्रशासन के जागरूकता मुहिम व शिक्षा के बढते स्तर के बाद आदिवासियों में नसबंदी के प्रति जागरूकता बढ़ी है। राज्य सरकार ने संरक्षित श्रेणी के अबूझमाड़िया दोरला,कमार, बैगा,पहाड़ी कोरबा व बिरहोर समुदाय के लोगों की नसबंदी को प्रतिबंधित किया है। चूंकि इनकी जनसंख्या काफी कम है और कम आबादी के कारण इनका अस्तित्व खतरे में है। इसमें से अबूझमाड़िया दोरला ही बस्तर में निवास करती है।

आदिवासियों में प्रेम को मान्यता

आदिवासी समाज मेें प्रेम विवाह को पूरी मान्यता है। यदि एक समुदाय की युवती दूसरे समुदाय के युवती से भागकर ब्याह रचा लेती है तो सामाजिक परम्परा के अनुसार वर पक्ष को लड़की के परिवार एवं समाज को डांड अर्थात जुर्माना और भोज आदि चुकाना होता है। इसके बाद विवाह को मान्यता दी जाती है। उत्तर बस्तर में प्रचलित घोटुल प्रथा वर्तमान में बंद हो चुकी है। इस प्रथा के लिए गांव के बाहर अलग से भवन या झोपड़ीनुमा मकान बनाया जाता है। वहां हर शाम आदिवासी युवा एक- दूसरे से मुलाकात कर सकते हैं और पसंद आने पर उन्हें प्रेम विवाह की अनुमति दी जाती थी। अब यह परंपरा भी धीरे- धीरे लुप्त होती जा रही है।

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