पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास पर कोर्ट की निगाहें, खाली कराना नहीं होगा आसान
मध्यप्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी बंगले एक महीने में खाली करा दिये जाएं।
भोपाल, जेएनएन। प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन निशुल्क आवास की पात्रता वापस लेने के लिए कानून में संशोधन करना होगा। सरकार ने मंत्री वेतन-भत्ता अधिनियम में नई धारा जोड़कर यह प्रावधान किया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार के पास दो रास्ते हैं, पहला- 25 जून से शुरू हो रहे विधानसभा के मानसून सत्र में संशोधन विधेयक लाया जाए और दूसरा सत्र के बाद अध्यादेश के जरिए असंवैधानिक करार दी गई धारा को निरस्त किया जाए।
सूत्रों के मुताबिक, जब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी आवास को लेकर मामला चल रहा था, तब कैबिनेट में यह मुद्दा आया था। उस समय सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने का हवाला देते हुए सामान्य प्रशासन विभाग के सशुल्क आवास के प्रस्ताव को रोक दिया गया था। प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को निशुल्क आजीवन आवास उपलब्ध कराने का प्रावधान मंत्री वेतन-भत्ता संशोधन विधेयक के जरिए दो साल पहले किया गया था। सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है अभी हाईकोर्ट के आदेश की प्रति नहीं मिली है। उसे देखने के बाद सरकार आगामी कार्रवाई को लेकर निर्णय लेगी। वहीं, सूत्रों का कहना है कि इस मामले में अधिनियम में ही संशोधन करना होगा।
जोशी-भारती के लिए निकालना होगा रास्ता
सूत्रों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों में दिग्विजय सिंह को सांसद और बाबूलाल गौर को विधायक के नाते सरकारी आवास में रहने की पात्रता है। निशुल्क और आजीवन वाले प्रावधान जरूर हट जाएंगे। वहीं, कैलाश जोशी और उमा भारती के मामले में सरकार को रास्ता निकालना होगा। दरअसल, जोशी आज सांसद या विधायक नहीं है, वहीं उमा भारती केंद्रीय मंत्री जरूर हैं पर उत्तरप्रदेश से आती हैं।
पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास पर कोर्ट की निगाहें
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के सरकारी बंगले एक महीने में खाली करा दिये जाएं। इन पूर्व मुख्यमंत्रियों में कैलाश जोशी, उमा भारती, बाबूलाल गौर और दिग्विजय सिंह शामिल हैं। मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय शुक्ला की बेंच ने उस नियम को असंवैधानिक बताया, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी आजीवन सरकारी आवास और सुविधाएं देने का प्रावधान था।