Move to Jagran APP

उद्योग लगाना तभी संभव होगा जब ईज आफ डूइंग बिजनेस में प्रदर्शन बेहतर होगा

मनोरंजन क्रय और बिक्री जैसे करों की ताकत के बावजूद राज्य प्रभावी कर संग्रह सुनिश्चित नहीं कर पाते हैं। ये कर चोरी नहीं रोक पा रहे हैं। उद्योग लगाना तभी संभव होगा जब ईज आफ डूइंग बिजनेस में प्रदर्शन बेहतर होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 15 Mar 2021 02:33 PM (IST)Updated: Mon, 15 Mar 2021 02:33 PM (IST)
उद्योग लगाना तभी संभव होगा जब ईज आफ डूइंग बिजनेस में प्रदर्शन बेहतर होगा
उद्योगों को भी अपनी जरूरत के अनुसार मैनपावर मिल जाएगी।

अरविंद कुमार द्विवेदी। देश के सभी राज्यों का अपना कुल बजट 14 लाख करोड़ रुपये है। सात लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार की ओर से मिलता है। यह अनुपात 2:1 है। यानी राज्यों को कुल 21 लाख करोड़ रुपये बजट मिलता है। सभी राज्यों को जो कुल पैसा मिलता है उसका करीब 65 प्रतिशत वह विभिन्न टैक्स के माध्यम से खुद अर्जति करते हैं। लेकिन यह प्रतिशत अलग-अलग राज्यों का अलग-अलग है। जैसे मिजोरम में यह 15 प्रतिशत है तो तमिलनाडु में 70 प्रतिशत है। यानी कुछ राज्यों का राजस्व संग्रह अच्छा है और कुछ का उतना अच्छा नहीं है। जिन राज्यों में औद्योगिक व आíथक गतिविधियां कम हैं उनका अपना राजस्व संग्रह कम है। जैसे उत्तर-पूर्व के राज्य।

loksabha election banner

तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जहां उद्योग अधिक हैं उनका अपना राजस्व संग्रह अधिक है। राज्य इस कुल 21 लाख करोड़ रुपये को राजस्व खर्च व पूंजीगत खर्च के रूप में इस्तेमाल करते हैं। राजस्व खर्च के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था आदि पर खर्च होता है। इसमें अर्थव्यवस्था को तुरंत कोई रिटर्न नहीं मिलता है। जबकि पूंजीगत खर्च के तहत बिजली बनाना, सड़क, इंडस्ट्री लगाने आदि का काम आता है। राज्यों को चाहिए कि वे 40 प्रतिशत धन अपने पूंजीगत खर्च में लगाएं ताकि उससे अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त हो सके। जबकि राज्य इस मद में सिर्फ 20-30 प्रतिशत ही खर्च करते हैं। राज्यों का राजस्व खर्च ज्यादा है। इसमें भी व्यवस्थित तरीके से खर्च नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए शिक्षा के नाम पर सबसे ज्यादा पैसा शिक्षकों के वेतन व पेंशन पर खर्च हो जाता है। जबकि शिक्षकों के प्रशिक्षण, उनके अपग्रेडेशन, टेक्स्ट बुक खरीदने व स्कूलों के आउटकम के मूल्यांकन पर खर्च बढ़ाना चाहिए। सरकार को यह जरूर देखना चाहिए कि वह जो पैसा खर्च कर रही है उससे लक्ष्य हासिल हो भी रहा है या नहीं।

राज्य कई बार राजनीतिक उद्देश्य से इस फंड में से कुछ पैसे खर्च करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि वे सारा पैसा इस पर खर्च कर देते हैं। यह राशि बहुत कम होती है। हालांकि यह खर्च भी नहीं होना चाहिए। ज्यादातर राशि वेतन व पेंशन आदि पर ही खर्च होता है। राज्य सरकार द्वारा सिलाई मशीन या कुछ और बांटने की जरूरत नहीं है। जिसे जरूरत होगी वह खुद मशीन खरीद लेगा। रही बात राजकोषीय घाटे की तो यह भी हर राज्य का अलग-अलग है, लेकिन यह बहुत अधिक नहीं है। आय से अधिक खर्च करने वाले राज्यों में पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल आदि हैं। लेकिन कुछ तमिलनाडु, बिहार आदि राज्यों का राजकोषीय घाटा कम है। केंद्र सरकार ने वर्ष- 2003 में राजकोषीय जिम्मेदारी व बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) एक्ट बनाया था ताकि वित्तीय घाटा तीन प्रतिशत से ज्यादा न हो। वर्ष- 2008-09 में आíथक मंदी के कारण राजकोषीय घाटा बढ़ गया था। हालांकि राज्यों का राजकोषीय घाटा बहुत अधिक नहीं है क्योंकि उन पर एफआरबीए एक्ट लगा हुआ है। इससे राज्य अपने खर्च नियंत्रित रखते हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि राज्यों का राजस्व संग्रह अच्छा नहीं है। इंटरटेनमेंट टैक्स, परचेज टैक्स, सेल्स टैक्स आदि की ताकत मिली होने के बावजूद राज्य सबसे टैक्स संग्रह सुनिश्चित नहीं कर पाते हैं। मतलब राज्य कर चोरी नहीं रोक पा रहे हैं। सभी राज्यों को चाहिए कि वे अपने राजस्व बढ़ाने का प्रयास करें। यह तभी संभव होगा जब राज्य में उद्योग आएंगे। लेकिन इसके लिए ईज आफ डूइंग बिजनेस की सुविधा देनी होगी। आज हालत यह है कि कोई छोटा सा भी उद्योग शुरू करने के लिए दर्जनों लाइसेंस लेने पड़ते हैं। ऐसे में उद्योग नहीं शुरू हो पाते हैं। कृषि भूमि को गैर कृषि उपयोग में लाने पर रोजगार सृजन के साथ राजस्व भी बढ़ता है। लेकिन इसकी अनुमति मिलना टेढ़ी खीर है। टैक्स चोरी रोकने के लिए राज्यों को अपना पूरा सिस्टम एंड टू एंड कंप्यूटरीकरण व डिजिटलीकरण करना होगा।

राज्यों का प्रापर्टी टैक्स बहुत कम है। इसे बढ़ाना चाहिए। राज्यों को चाहिए कि उनके जो अनटाइड फंड हैं उससे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। राज्यों को गारमेंट इडस्ट्री, लेदर इंडस्ट्री, कोल्ड स्टोरेज आदि को बढ़ावा देना चाहिए। इससे उन्हें अच्छा राजस्व तो मिलेगा ही, रोजगार सृजन भी होगा। बड़े उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को ऐसी भी व्यवस्था करनी चाहिए कि उनके यहां संबंधित उद्योग अपने यहां प्रशिक्षण दें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दें। इससे उद्योगों को भी अपनी जरूरत के अनुसार मैनपावर मिल जाएगी।

[एनसी सक्सेना, पूर्व सदस्य, योजना आयोग]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.