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इसरो की भी है Venus पर शुक्रयान-1 भेजने की योजना, जानें इस ग्रह की कुछ खास बातें

शुक्र पर जीवन होने की संभावना से वैज्ञानिक काफी उत्‍साहित हैं। भविष्‍य में ऐसे ही कई मिशन और दूसरे ग्रहों पर जाएंगे। भारत की भी शुक्र पर अपना मिशन भेजने की योजना है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 15 Sep 2020 06:36 PM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 08:16 AM (IST)
इसरो की भी है Venus पर शुक्रयान-1 भेजने की योजना, जानें इस ग्रह की कुछ खास बातें
इसरो की भी है Venus पर शुक्रयान-1 भेजने की योजना, जानें इस ग्रह की कुछ खास बातें

वाशिंगटन (न्‍यूयॉक टाइम्‍स)। चांद और मंगल की ही तरह अब शुक्र पर भी जीवन होने के संकेत दिखाई देने लगे हैं। हवाई के मौना केआ ऑब्जरवेटरीऔर चिली के अटाकामा लार्ज मिलिमीटर ऐरी टेलिस्कोप के जरिए किए गए अध्‍ययन में पता चला है कि वहां सल्‍फ्यूरिक एसिड से लदे बादलों में सूक्ष्‍मजीवों की मौजूदगी हो सकती है। दरअसल शुक्र के बादलों में फास्‍फीन होने के पुख्‍ता सुबूत मिले हैं जो पृथ्‍वी पर जीवन से जुड़ा एक महत्‍वपूर्ण तत्‍व है। फोस्‍फीन फास्‍फोरस और हाइड्रोजन के मिलने से बनता है। इसको ग्रह की सतह से 50 किमी ऊपर पाया गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो शुक्र ग्रह के बादलों में फोस्‍फीन गैस काफी मात्रा में है। ये शोध जर्नल नेचर एस्‍ट्रोनॉमी में पब्लिश भी हुआ है। आपको बता दें कि भारत की स्‍पेस एजेंसी इसरो की भी शुक्रयान 1 के जरिए इस ग्रह की जानकारियां जुटाने की योजना है। इसरो इस मिशन के तहत वहां के वातावरण की जानकारियां जुटाएगा।

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शुक्र के वातावरण में कार्बन डाईऑक्‍साइड अधिक 

1976 के बाद से ही इस तरह की संभावनाएं जताई जाती रही हैं कि शुक्र पर जीवन हो सकता है। हालांकि इस शोध में वहां पर जीवन होने का दावा नहीं किया गया है बल्कि इसकी संभावनाओं के बारे में और पता लगाने की बात कही गई है। शुक्र के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता है जो करीब 96 फीसद तक है। यहां पर वायुमंडलीय दबाव भी पृथ्वी के मुकाबले 90 गुणा अधिक है। आपको बता दें कि शुक्र आकार के मामले में पृथ्वी के काफी समान है। इसके अलावा शुक्र पर पृथ्वी की तरह कई ज्वालामुखी भी हैं।

वैज्ञानिकों ने बताया है नरक 

हालांकि शुक्र को लेकर सामने आई ताजा रिपोर्ट से पहले इसको वैज्ञानिक एक नरक की तरह ही देखते आए हैं। शुक्र को बाइबिल में भी नरक कहा गया है। ऐसा कहने वालों में कार्ल सेगन का नाम भी शामिल है। इसकी वजह सूर्य से इसकी निकटता है। इसकी वजह सूर्य से इसकी निकटता है। शुक्र हमारे सौरमंडल का दूसरा ग्रह है जो सूर्य के काफी करीब है। इस नाते वहां का तापमान पृथ्‍वी के मुकाबले अधिक होता है। चंद्रमा के बाद रात में आकाश में सबसे अधिक चमकने वाला यही ग्रह है। यहीं कारण है इसको सुबह और शाम का तारा भी कहा जाता है। 

शुक्र के लिए करनी चाहिए तैयारी 

इस नए शोध के बाद नॉर्थ केरोलिना स्‍टेट यूनिवर्सिटी के प्‍लानेटरी साइंटिस्‍ट पॉल बायर्न का कहना है कि यदि शुक्र एक्टिव है और वहां फोस्‍फीन का निर्माण हो रहा है, तो ये चमत्‍कार ही है। ऐसे में हमें मंगल की ही तरह शुक्र के लिए भी ऑर्बिटर, लैंडर और प्रोग्राम बनाने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। हालांकि वो ये भी मानते हैं कि वहां पर पहुंचना आसान नहीं होगा। इसकी वजह वहां का सघन वातावरण और सतह का 800 डिग्री फारेनहाइट तापमान होना है। ये किसी चीज को भी नष्‍ट कर सकता है।  

अब तक हुए मिशन 

1961 में पहली बार रूस के यान ने ही शुक्र की सतह की तस्‍वीरें ली थीं। 1967 में रूस के Venera 4 ने पहली बार वहां के वातावरण में कार्बन डाईऑक्‍साइड का पता लगाया था। 1975 में  रूस के Venera 9 प्रॉब ने पहली बार वहां की सतह की तस्‍वीरें ली थीं। इसी श्रृंख्‍ला में 1980 में Venera 11 और Venera 12 ने वहां पर जोरदार तूफान आने और बिजली चमकने की जानकारी वैज्ञानिकों को दी थी। Venera 13 और Venera 14 ने पहली बार

शुक्र की सतह पर आवाज को रिकॉर्ड किया था। 1985 में रूस ने शुक्र की और जानकारी हासिल करने और शोध के लिए उपकरणों से लदे बेलून भेजे थे। अमेरिका और रूस के बीच चले शीत युद्ध की वजह से शुक्र पर हुए शोध की रफ्तार थम गई थी।    

अमेरिका ने 1960 और 1970 में अपने मेरिनर और पायोनियर प्रोग्राम शुरू किए थे। 1962 में मेरिनर 2 के जरिए अमेरिका को पता चला था कि शुक्र पर मौजूद बादल काफी ठंडे हैं लेकिन सतह का तापमान झुलसा देने वाला है। 1978 में पायोनियर मिशन से अमेरिका को वहां के वातावरण के बारे में कई अनोखी जानकारियां हासिल हुई थीं। इसमें पता लगा था कि शुक्र की सतह पृथ्‍वी के मुकाबले काफी समतल है। साथ ही वहां पर मैग्‍नेटिक फील्‍ड होने की संभावना भी जताई गई थी। 

नासा के मैगलान ने 1990 में शुक्र के ऑर्बिट में प्रवेश कर वहां पर चार साल का समय गुजारा था। इस दौरान उसने वहां की सतह के बारे में जानकारी हासिल की और कुछ सुबूत भी जुटाए थे। इसमें पता चला था कि वहां की सतह पर 85 फीसद लावा है। इस मिशन के जरिए वहां पर ज्‍वालामुखी होने की बात सामने आई थी। 

यूरोपीयन स्‍पेस एजेंसी ने 2005 में वीनस एक्‍सप्रेस मिशन लॉन्‍च किया था। इस मिशन ने वहां पर आठ वर्ष गुजारे थे। इसी तरह से जापान ने 2010 में अकातसुकी मिशन लॉन्‍च किया था। हालांकि इंजन फेल होने की वजह से ये मिशन शुरुआती चरण में ही विफल हो गया था। 

अब आगे 

न्‍यूजीलैंड की कंपनी रॉकेट लैब ने भी इस ग्रह पर अपनी सेटेलाइट भेजने की बात कही है।

नासा भी बीते एक दशक से इसी तरह की योजना बना रहा है। 

नासा ने इसके लिए VICI के नाम से योजना भी तैयार की थी। नासा की योजना सिर्फ शुक्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि वो शनि ग्रह को लेकर भी अपनी योजना बना रहा है। इसके अलावा उनकी भावी प्‍लानिंग में नेप्‍च्‍यून के चंद्रमा ट्रिटॉन और जूपिटर के चांद का भी पता लगाना शामिल है। 

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