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जानें, देश की ताकतवर फौज के लिए कितना अहम है इजराइल, गाढ़ी हुई दोस्‍ती

भारत और इसराइल के बीच सैन्य कारोबार का भविष्य काफी सुनहरा है। आइए जानते हैं भारत-इजराइल संबंधों का क्‍या रहा है इतिहास।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Thu, 25 Oct 2018 12:59 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 08:08 AM (IST)
जानें, देश की ताकतवर फौज के लिए कितना अहम है इजराइल, गाढ़ी हुई दोस्‍ती
जानें, देश की ताकतवर फौज के लिए कितना अहम है इजराइल, गाढ़ी हुई दोस्‍ती

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]।  शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत और इजरायल एक दूसरे के निकट आए हैं। खासकर 1990 के मध्‍य से दोनों देशों के बीच सैन्‍य संबंध मजबूत हुए हैं। भारतीय सेना के आधुनिकीकरण से लेकर सैन्‍य उपकरणों की आपूर्ति में इजराइल की विशेष योगदान रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सालाना करीब सौ अरब रुपये के सैन्‍य साजो-सामान इजराइल से आयात करता है। ऐसे में यह कहना लाजमी है कि भारत और इजराइल के बीच सैन्य कारोबार का भविष्य काफी सुनहरा है। आइए जानते हैं भारत-इजराइल संबंधों का क्‍या रहा है इतिहास। इसके साथ यह भी जानेंगे कि इजराइल की मदद से कैसे मजबूत हुई हमारी सेना।

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मजबूत हुई देश की सेना

1999 में कारगिल युद्ध के दौरान दोनों देशों और निकट आए। इस संकट की घड़ी में उसने भारत की मांग पर भरोसेमंद हथियारों की आपूर्ति की थी। युद्ध के दौरान इजराइल ने भारत को लेजर गाइडेड बम और मानव रहित वाहन दिए थे। इससे दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ा है। भारत अभी सरहदों पर निगरानी के लिए इजराइल निर्मित 176 ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। इसमें 108 इजराइली एयरोस्पेस इंडस्ट्री (आईएआई) सर्चर हैं, जबकि 68 बिना शस्त्र वाले हेरान एक एयरक्राफ़्ट हैं। इसके अलावा भारतीय वायुसेना के पास आईएआई निर्मित हार्पी ड्रोन्स भी हैं।

मौजूदा समय में इजराइल की मिसाइलें, एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम, यूएवी, टोह लेने वाली तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक वारफ़ेयर सिस्टम, हवाई जहाज़ में इस्तेमाल होने वाली तकनीक और गोला-बारूद बड़ी मात्रा में भारत को मुहैया कराता है। इजराइल ने भारत को मई, 2009 और 2010 में 73.7 अरब रुपए में रूस निर्मित इल्यूशिन द्वितीय-76 से लैस फ़ाल्कन एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (अवाक्स) बेचा था। भारतीय वायुसेना के पास तीन ऑपरेशनल अवाक्स मौजूद हैं।

सीमा पर बाड़ लगाने में मदद

  • सैन्य उपकरणों के साथ सीमा पर बाड़ लगाने से संबंधित तकनीक का भी भारत,  इजराइल से निर्यात कर रहा है। इसका इस्तेमाल जम्मू कश्मीर के लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर किया गया है। सीमा पर से घुसपैठ को देखते हुए यह समझौता अहम है।

सैन्य कारोबार में सह उत्पादन और संयुक्त उपक्रम

  • लंबी और मध्य दूरी तक मार करने वाले एयर मिसाइल, ईडब्ल्यूएस, अन्य हवाई सामरिक उपकरणों के विकास के लिए भारत के डिफेंस रिसर्च एंड डेवेलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) और इजराइली एयरोस्पेस इंडस्ट्री (आईएआई) एवं कुछ अन्य इजराइली फ़र्म के मध्य होने वाला सहयोग अहम है। इस क्रम में बराक-8 एलआर-एसएएम का दिसंबर, 2015 में सफलतापूर्वक प्रेक्षपण किया गया था।
  • इजराइल के 10 हेरॉन टीपी यूएवी (मानवरहित हवाई वाहन) की मदद से भारतीय सेना की निगरानी करने और टोह लेने की क्षमता काफ़ी बढ़ जाएगी।

उतार-चढ़ाव भरा रहा भारत-इजराइल रिश्‍ता

1- इजराइल ने कई बार बढ़ाया दोस्‍ती का हाथ

आजादी के बाद भारत और  इजराइल के संबंधों में उतार-चढ़ाव का दौर देखा गया है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति में फलस्‍तीन काफी निकट रहा। इसके चलते भारत की  इजराइल से एक स्‍वाभाविक दूरी बनी रही। फलस्‍तीन ही वह कारक रहा है जो भारत- इजराइल के संबंधों को प्रभावित करता रहा है। हालांकि 1950 में भारत ने  इजराइल को एक स्‍वतंत्र राज्‍य के रूप में मान्‍यता प्रदान की। 1960 के दशक में  इजराइल ने कई मुद्दों पर भारत का खुलकर समर्थन किया। 1962 का भारत-चीन युद्ध हो या 1965 और 1971 में पाकिस्‍तान युद्ध रहा हो  इजराइल ने तीनों में भारत का पक्ष लिया। इतना ही नहीं इजराइल पहला मुल्‍क था जिसने 1971 में भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के बाद बांग्‍लादेश को मान्‍यता दी थी।

2- फलस्‍तीनियों की मोह से मिली मुक्ति 

इंदिरा गांधी के शासन काल में भी उनकी विदेश नीति का झुकाव फलस्‍तीनियों के प्रति ही रहा। उनकी विदेश नीति में भी फ़लस्तीनी क़रीबी बने रहे। 1977 में जब केंद्र मोरारजी देसाई की सरकार आई तो  इजराइल-भारत एक दूसरे के निकट आए। इसके बाद से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में गर्माहट आई। लेकिन यह दौर बहुत लंबा नहीं चला। 1985 में संयुक्‍त राष्‍ट्र की वार्षिक आमसभा में देश के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की इजराइली प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद दोनों देश एक एक दूसरे के निकट आए। नेहरू और इंदिरा के विपरीत राजीव गांधी ने इजराइल के साथ दोस्‍ती के हाथ बढ़ाए। उस वक्‍त देश के हालात बदल गए थे। पाकिस्‍तान के परमाणु कार्यक्रम से चिंतित भारत ने इजराइल के साथ दोस्‍ती के लिए विवश किया था।

3- 1990 के दशक में तेजी से निकट आया इजराइल

1990 के दशक में देश-दुनिया की तस्‍वीर बदल गई थी। भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हाेने के साथ शीत युद्ध की समाप्ति एवं देश में इस्लामिक अतिवाद की शुरुआत हो चुकी थी। ऐसे हालात में दोनों देशों के बीच मधुर संबंधों की बुनियाद पड़ी। 1992 में  इजराइल से औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित हुआ। 2000 में केंद्र में भाजपा की सरकार थी। लालकृष्‍ण आडवाणी की इजराइल यात्रा पर गए। पहली बार देश का कोई वरिष्‍ठ मंत्री की ये  इजराइल यात्रा थी। उसी साल आतंकवाद पर एक इंडो-इजराइली जॉइंट वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया।

2003 में तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने इस्लामिक अतिवाद से लड़ने के लिए भारत, इजराइल और अमरीका के साथ आने की वकालत की। इसके बाद से दोनों देशाें के बीच निरंतर दोस्‍ती के रिश्‍ते कायम रहे। इसके बाद भारत की विदेश नीति में अरब देशों के साथ  इजराइल से बेहतर संबंध बनाने में कामयाब रही है। प्रधानमंत्री मोदी के शासन काल में दोनों देशों के बीच सामरिक रिश्‍ते और मजबूत हुए हैं। अब तो  इजराइल मोदी के मेक इन इंडिया का हिस्‍सा भी बन चुका है।


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