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Glasgow Climate Conference: एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड है अनोखी पहल

धरती पर सूरज के बढ़ते ताप से लड़ने में सूरज की ही रोशनी बड़ा हथियार बनेगी। सौर ऊर्जा के बेहतर प्रयोग से जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग को कम करना संभव है। एक सूर्य एक विश्व एक ग्रिड की संकल्पना इस दिशा में ऐतिहासिक परिणाम दे सकती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 08 Nov 2021 11:45 AM (IST)Updated: Mon, 08 Nov 2021 11:45 AM (IST)
Glasgow Climate Conference: एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड है अनोखी पहल
साधारण से कदमों से हम प्रदूषण कम करने में योगदान दे सकते हैं।

भरत आर शर्मा। स्काटलैंड के ग्लासगो में करीब 200 देशों के प्रमुख और 20 हजार से ज्यादा पेशेवर लोग जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के तौर-तरीकों पर चर्चा करने जुटे हैं। इसमें भारत ने 2070 तक नेट जीरो की प्रतिबद्धता जताई है। साथ ही उन्होंने 2030 तक तय किए जाने वाले चार लक्ष्य भी निर्धारित किए हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने का अर्थ है कि जल्द ही भारत में ऊर्जा क्षेत्र कोयला व तेल से अक्षय ऊर्जा की ओर कदम बढ़ा देगा। इसमें भी सौर ऊर्जा की मुख्य भूमिका होगी। इसकी नींव 2015 में नई दिल्ली में इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आइएसए) के गठन के साथ ही पड़ गई थी। इसमें 80 से ज्यादा सदस्य देश हैं।

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सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में उल्लेखनीय कदम उठाते हुए भारत और ब्रिटेन से आइएसए व वर्ल्ड बैंक की साझेदारी में एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड की संकल्पना भी पेश की है। यह वैश्विक स्तर पर जुड़ी हुई सौर ऊर्जा नेटवर्क की दिशा में पहली अंतरराष्ट्रीय पहल है। इससे सभी के लिए सतत स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और वितरण समेत विभिन्न पहलुओं में सबके साथ आने का विचार 2018 में भारत ने ही पहली बार रखा था।

एक दुनिया, एक ग्रिड के तहत दुनियाभर में अलग-अलग टाइम जोन और मौसम के हिसाब से सौर ऊर्जा को साझा करने के लिए स्मार्ट एनर्जी ग्रिड बनाए जाने का विचार है। इससे कोयला एवं तेल आधारित ऊर्जा के प्रयोग को कम करने का रास्ता खुलेगा। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन एवं जलवायु परिवर्तन की समस्या में इनकी अहम भूमिका है।

इस पहल के पहले चरण में भारत ‘इंडियन सोलर ग्रिड’ बनाएगा। फिर इसे पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से जोड़ा जाएगा। बाद में अफ्रीकी देशों को इसका हिस्सा बनाया जाएगा। इस ग्रिड की मदद से विभिन्न देशों में हर समय उनकी जरूरत के अनुरूप सौर ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। आइएसए के अनुमान के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 2050 तक करीब 2,600 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता है। इससे 226 अरब यूरो यानी 19.32 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी। यह स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बहुत बड़ा कदम होगा और इससे ग्लोबल वार्मिग को दो डिग्री सेल्सियस से कम पर रोकना संभव होगा।

कृषि, परिवहन एवं अन्य सेक्टर में सौर ऊर्जा के प्रयोग के मामले में भारत पहले से ही अग्रणी है। इस समय सौर ऊर्जा की कीमत ग्रिड पावर के बराबर ही है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में खाली पड़ी जगहों पर सौर ऊर्जा स्थापित की जाए, तो देश में 750 गीगावाट बिजली उत्पादित की जा सकती है। सौर ऊर्जा क्षमता स्थापना में भारत लगातार आगे बढ़ रहा है। 10 लाख ग्रिड कनेक्टेड एग्रीकल्चर पंप को भी सौर ऊर्जा से जोड़ने पर काम हो रहा है। सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल और गुजरात में किसानों को सौर ऊर्जा से उत्पादित अतिरिक्त बेचने का विकल्प देने के लिए सूर्य शक्ति किसान योजना जैसे अनूठे कदम भी इसे बढ़ावा देने में मददगार हैं। इसी तरह राजस्थान एवं अन्य कई राज्य भी पहल कर रहे हैं। रीवा में 1,590 एकड़ में बना अल्ट्रा मेगा सोलर पार्क भी इसका अच्छा उदाहरण है। यह दुनिया में सबसे बड़ा सिंगल साइट सोलर पावर प्लांट है। पार्क की 24 प्रतिशत सौर ऊर्जा से दिल्ली मेट्रो की दिन की करीब 60 प्रतिशत ऊर्जा जरूरत को पूरा किया जा सकता है।

एक नागरिक के तौर पर हम लोग भी बहुत योगदान दे सकते हैं। हमें अपनी गाड़ियों को अच्छी स्थिति में रखना चाहिए और समय-समय पर उनकी सर्विसिंग कराते रहना चाहिए। अलग-अलग गाड़ियों में जाने के बजाय पूलिंग करनी चाहिए, जिससे ईंधन की बचत भी होगी और प्रदूषण भी कम होगा। जहां तक संभव हो, सार्वजनिक परिवहन के साधनों का प्रयोग करना चाहिए। अपने घर और दफ्तर में बिजली और पानी को बर्बाद नहीं करना चाहिए। किसानों व अन्य लोगों को भी फसलों का बचा हिस्सा जलाने से बचना चाहिए और बायो-कंपोस्ट के तरीके अपनाने चाहिए। भवन निर्माण एवं सड़कों की सफाई के दौरान तय प्रविधानों का प्रयोग करना चाहिए। इन साधारण से कदमों से हम प्रदूषण कम करने में योगदान दे सकते हैं।

[एमिरटस वैज्ञानिक, इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली]


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