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International Transgender Day: दुआओं के लिए उठते हैं जिनके हाथ, कोई नहीं है उनके साथ

हर क्षेत्र में अग्रणी रहने वाले बंगाल में आज तक किसी ट्रांसजेंडर ने जनप्रतिनिधि के रूप में चुनाव नहीं लड़ा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 31 Mar 2019 10:30 AM (IST)Updated: Sun, 31 Mar 2019 10:37 AM (IST)
International Transgender Day: दुआओं के लिए उठते हैं जिनके हाथ, कोई नहीं है उनके साथ
International Transgender Day: दुआओं के लिए उठते हैं जिनके हाथ, कोई नहीं है उनके साथ

विनय कुमार, कोलकाता। छोड़िए जनाब, सिर्फ हमें पता है कि समाज में हमारी कितनी पूछ है। लेकिन हम हैं कि हमेशा दूसरों की खुशी की दुआ मांगते हैं। चुनावी मौसम में हमारी पूछ बस थोड़े बहुत वोट के कारण हो भी जाती है लेकिन उसके बाद हमारी ओर मुड़कर देखने वाला कोई नहीं है।

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मतदान केंद्र पर लोग हम पर फब्तियां कसते हैं। हमारा उपहास उड़ाते हैं। इतना कहते हुए लक्ष्मी रो पड़ीं। यह दर्द सिर्फ लक्ष्मी का नहीं, बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय का है। पेट की आग बुझाने के लिए सड़कों पर चंदा मांगने वाली लक्ष्मी आगे कहती हैं कि हमारे वोट इतने नहीं हैं कि हम किसी की जीत या हार का फैसला कर सकें। शायद यही वजह है कि ट्रांसजेंडर अपने अस्तित्व के लिए लगातार जद्दोजहद कर रहे हैं।

उपेक्षित है हमारा समाज

कोलकाता की रहने वाली अभिनेत्री व मॉडल कुसुम सामंत आगामी लोकसभा चुनाव में बतौर ट्रांसजेंडर अपना पहला वोट डालेंगी। वह राज्य के उन 1426 थर्ड जेंडर वोटरों में शामिल हैं जो पहली बार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव में हिस्सा लेंगी। वह कहती हैं कि ट्रांसजेंडर होने की वजह से जब आपको लगातार नीचा दिखाया जाता हो तब ऐसे समय में दुनिया का सामना करना आसान काम नहीं है।

नहीं मिलता योजनाओं का लाभ

बंगाल की पहली ट्रांसजेंडर वकील सायंतनी घोष कहती हैं कि चुनाव में हम लोग मताधिकार का प्रयोग तो करते हैं, लेकिन हमारी समस्याओं की सुध लेने वाला कोई नहीं हैं। इसके अलावा किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ भी हमें नहीं मिलता, क्योंकि ये योजनाएं पुरुषों के लिए या सिर्फ महिलाओं के लिए होती हैं।

संरक्षण की जरूरत

राज्य की पहली ट्रांसजेंडर कैब चालक व सिविक वालेंटियर पल्ल्वी चक्रवर्ती कहती हैं कि संसद में ट्रांसजेंडर संरक्षण बिल तो पारित हो गया लेकिन उनकी स्थिति जस की तस ही है। उनके हक के लिए कोई आगे नहीं आता।

संख्या ज्यादा, मतदाता कम

एक जानकार बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में ट्रांसजेंडर की संख्या ज्यादा है पर मतदाता सूची में इनका नाम दर्ज नहीं हो पाया है। बंगाल में इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कुल 1426 ट्रांसजेंडर वोटर दर्ज हैं।

ट्रांसजेंडर नहीं बना प्रत्याशी

हर क्षेत्र में अग्रणी रहने वाले बंगाल में आज तक किसी ट्रांसजेंडर ने जनप्रतिनिधि के रूप में चुनाव नहीं लड़ा है। अन्य राज्यों की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2019 में तमिलनाडु की मदुरै लोकसभा क्षेत्र से ट्रांसजेंडर भारती कन्नम्मा चुनावी मैदान में खड़ी हैं। वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी ओडिशा विधानसभा चुनाव के लिए ट्रांसजेडर काजल नायक को चुनावी मैदान में उतारा है। कई अन्य पार्टियों ने ट्रांसजेंडर प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है।

आम लोगों की तरह मैं भी एक भारतीय नागरिक हूं। सरकार चुनने में हमारी भी सहभागिता रहती है लेकिन आज भी हम मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाए।

-पल्लवी चक्रवर्ती, पश्चिम बंगाल की पहली ट्रांसजेंडर कैब चालक और सिविक वालेंटियर

शिक्षा और रोजगार के साथ ही सरकार को उनके लिए शौचालय की व्यवस्था करनी चाहिए। वहीं बस में हम लोगों के बैठने के लिए सीट की भी व्यवस्था करनी चाहिए।

-कुसुम सामंत, ट्रांसजेंडर मॉडल व अभिनेत्री

संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार देता है। इसलिए, हमें भी शिक्षा व रोजगार के क्षेत्र में तरजीह मिलनी चाहिए। लोग हमारे बारे में गलत धारणा न रखें क्योंकि हम भी इसी समाज का ही हिस्सा हैं।

-सायंतनी घोष, पश्चिम बंगाल की पहली ट्रांसजेंडर वकील


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