मुफ्ती सरकार के ढुलमुल रवैये से भारत-पाक वार्ता के खटाई में पड़ने की आशंका
भारत-पाक के बीच प्रस्तावित एनएसए स्तरीय वार्ता नाटकीय मोड़ पर आ गई है। वार्ता से पहले कश्मीर के अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से मुलाकात को लेकर अड़े पाकिस्तान ने जटिल स्थिति बना दी है। हालात एेसे हैं कि पाकिस्तान वार्ता के लिए तैयार नहीं है तो भारत में भी कोई उत्साह
नई दिल्ली। भारत-पाक के बीच प्रस्तावित एनएसए स्तरीय वार्ता नाटकीय मोड़ पर आ गई है। वार्ता से पहले कश्मीर के अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से मुलाकात को लेकर अड़े पाकिस्तान ने जटिल स्थिति बना दी है। हालात एेसे हैं कि पाकिस्तान वार्ता के लिए तैयार नहीं है तो भारत में भी कोई उत्साह नहीं।
कल केंद्र सरकार से मिले निर्देशों के बाद अलगाववादी नेताओं को उनके घरों में नजर बंद कर दिया गया था। यासीन मलिक को तो गिरफ्तार भी कर लिया गया था, लेकिन नाटकीय ढंग से चंद घंटों में ही सभी को रिहा कर दिया गया।
सूत्रों के मुताबिक, यह केंद्र सरकार की बदली हुई रणनीति का हिस्सा नहीं था, बल्कि जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती सरकार ने यह ढिलाई दी थी।
वार्ता टलने की आशंका की वजह
--- पाकिस्तान की भरसक कोशिश है कि बातचीत न हो और भारत चाहता है कि बातचीत टालना है तो इसकी जिम्मेदारी पाक के सिर हो।
--- पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय अभी भी इस बात पर अडिग है कि इस तरह की मुलाकात की परंपरा पहले से चली आ रही है। जबकि भारतीय विदेश मंत्रालय इस पर चुप्पी साधे हुए है।
--- ऐसे में एनएसए स्तर की बातचीत के टाले जाने की आशंका बढ़ गई है। बस सवाल यह है कि इसका फैसला कौन करता है। शुक्रवार शाम तक तस्वीर साफ हो सकती है।
--- भारत ने साफ कर दिया है कि वार्ता स्थगित करने की पहल वह नहीं करेगा। पहली बार दोनों देश सीधे तौर पर आतंक पर बातचीत करेंगे। इसलिए भारत की भरसक कोशिश है कि बातचीत जरूर हो।
क्यों हो रहा है विवाद
एनएसए स्तरीय वार्ता के मौके पर नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग ने पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के लिए आयोजित एक रिसेप्शन पार्टी में कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को भी आमंत्रित किया है। भारत पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता का हिमायती है। इसलिए अलगवादी नेताओं को इसमें किसी भी तरह से शामिल किए जाने का विरोध करता है। पिछले साल अगस्त में निर्धारित विदेश सचिव स्तरीय वार्ता भारत ने इसलिए रद्द कर दिया था कि पाकिस्तानी उच्चायोग ने वार्ता से पहले अलगाववादी नेताओं को सलाह-मशविरे के लिए बुलाया था।