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भारत और चीन के बनते बिगड़ते रिश्तों के कुछ रोचक क्षण

अन्य देशों की तुलना में चीन से दोस्ती भारत के लिए काफी महत्व रखती है। चीन के कई नेता भारत आए हैं और भारत के कई नेता चीन गए हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों के नेताओं के बीच कई बार ऐसे रोचक क्षण आए हैं जिनसे दशकों की खटास खत्म होने की उम्मीदें बढ़ीं। यहां पर पेश हैं कुछ ऐसे कुछ रोचक क्षण

By Edited By: Published: Sun, 19 May 2013 04:49 PM (IST)Updated: Sun, 19 May 2013 05:21 PM (IST)
भारत और चीन के बनते बिगड़ते रिश्तों के कुछ रोचक क्षण

नई दिल्ली। अन्य देशों की तुलना में चीन से दोस्ती भारत के लिए काफी महत्व रखती है। चीन के कई नेता भारत आए हैं और भारत के कई नेता चीन गए हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों के नेताओं के बीच कई बार ऐसे रोचक क्षण आए हैं जिनसे दशकों की खटास खत्म होने की उम्मीदें बढ़ीं। यहां पर पेश हैं कुछ ऐसे कुछ रोचक क्षण।

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जब माओ ने जलाई भारतीय राजदूत की सिगरेट

चीन के नेता माओ के बारे में मशहूर था कि उनका दिन रात में शुरू होता था। वह लगभग पूरी रात काम किया करते थे और सुबह तड़के सोने के लिए चले जाते थे। वर्ष 1956 में जब लोकसभा अध्यक्ष आयंगर के नेतृत्व में भारत का संसदीय प्रतिनिधिमंडल चीन पहुंचा तो उन्हें एक रात साढ़े दस बजे बताया गया कि चेयरमैन माओ उनसे रात 12 बजे मुलाकात करेंगे। शुरुआत में माओ मूड में नहीं थे, लेकिन आयंगर के साथ बातचीत में वे बहुत जल्द सहज हो गए। आयंगर ने जब कहा कि आजादी के बाद का भारत एक ढोल की तरह था जिसे रूस और अमेरिका दोनों तरफ से बजाते रहते थे तो माओ ने जोर का ठहाका लगाया। पूरी बैठक के दौरान माओ एक के बाद एक सिगरेट जलाते रहे। जब वहां मौजूद भारतीय राजदूत आर के नेहरू ने भी अपने मुंह में सिगरेट लगाई तो माओ ने खुद खड़े होकर अपनी माचिस से उनकी सिगरेट जलाई।

राधाकृष्णन ने दी माओ के गाल पर थपकी

इससे अगले साल जब भारत के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन चीन गए तो माओ ने अपने निवास चुंग नान हाई के आंगन के बीचों बीच आकर उनकी आगवानी की। जैसे ही दोनों ने हाथ मिलाया राधाकृष्णन ने माओ के गाल थपथपा दिए। इससे पहले कि वह अपने गुस्से या आश्चर्य का इजहार कर पाते भारत के राष्ट्रपति ने कहा, अध्यक्ष महोदय, परेशान मत होइए। मैंने यही स्टालिन और पोप के साथ भी किया था। दावत के दौरान माओ ने खाते-खाते बहुत ही मासूमियत से चॉपस्टिक से अपनी प्लेट से खाने का एक कौर राधाकृष्णन की प्लेट में रख दिया। राधाकृष्णन शुद्ध शाकाहारी थे। उन्होंने भी माओ को यह आभास नहीं होने दिया कि उन्होंने कोई नागवार चीज की है। उस समय राधाकृष्णन की अंगुली में चोट लगी हुई थी। चीन की यात्रा से पहले कंबोडिया के दौरे के दौरान उनका हाथ कार के दरवाजे के बीच आ गया था और उनकी अंगुली की हड्डी टूट गई थी। माओ ने इसे देखते ही तुरंत अपना डॉक्टर बुलवाया और उसने नए सिरे से उनकी मलहम पट्टी कराई।

भोज से वाकआउट कर गए भारतीय प्रतिनिधि

1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद चीन के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर वहां के विदेश मंत्रालय ने एक राजकीय भोज का आयोजन किया, जिसमें माओ भी मौजूद थे। इस मौके पर दिए गए भाषण में बताया गया कि पाकिस्तान पर आक्रमण भारत ने किया। भोज में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे जगत मेहता की मेज के सामने जानबूझ कर इस भाषण का अंग्रेजी अनुवाद नहीं रखा गया ताकि वह इस भाषण को समझ न सकें। जगन मेहता ने अपने बगल में बैठे स्विस राजदूत के सामने फ्रेंच भाषा में रखा भाषण पढ़ा और भोज से तुरंत वॉकआउट करने का फैसला किया। चीनियों ने इसे अपने सर्वोच्च नेता का सबसे बड़ा अपमान माना। बाहर निकलने पर जगत मेहता की कार को वहां नहीं पहुंचने दिया गया और वह और उनकी पत्नी रमा आधे घंटे तक नेशनल पीपुल्स हॉल की सीढि़यों पर कड़कड़ाती सर्दी में ठिठुरते रहे।

वो लंबे वाले दो 'हैंड शेक'

वर्ष 1970 में मई दिवस के मौके पर बीजिंग स्थित सभी दूतावासों के प्रमुखों को तियानमिन स्क्वायर की प्राचीर पर बुलाया गया। चेयरमैन माओ भी वहां मौजूद थे। राजदूतों की कतार में सबसे आखिर में खड़े भारतीय राजदूत ब्रजेश मिश्र के पास पहुंच कर उन्होंने कहा, 'राष्ट्रपति गिरि और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मेरा अभिवादन पहुंचा दीजिए।' वे थोड़ा रुके और फिर बोले, 'हम आखिर कब तक इस तरह लड़ते रहेंगे?' इसके बाद माओ ने अपनी प्रसिद्ध मुस्कान बिखेरी और ब्रजेश मिश्र से पूरे एक मिनट तक हाथ मिलाते रहे। यह चीन की तरफ से पहला संकेत था कि वह पुरानी बातें भूलने के लिए तैयार है। वर्ष 1988 में ठीक इसी अंदाज में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता देंग जियाओ पिंग ने भी राजीव गांधी का स्वागत किया। उनके पहले शब्द थे, 'मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ मेरे युवा दोस्त। यह तुम्हारी चीन की पहली यात्रा है।' देंग ने राजीव के साथ हाथ मिलाना शुरू किया तो उसने खत्म होने का नाम ही नहीं लिया। यह एक संकेत था कि देंग चाहते थे कि राजीव की चीन यात्रा सफल हो।

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