आतंकवाद पर पाकिस्तान के रवैये पर निर्भर करेगी राजनीतिक वार्ता, जानें क्या रणनीति अपनाएगा भारत
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव खत्म करने के लिए संघर्ष विराम निश्चित तौर पर हो गया है लेकिन दोनों देशों के बीच राजनीतिक वार्ता शुरू होने की डगर अभी दूर है। आगे की राह बहुत कुछ पाकिस्तान के रवैये पर निर्भर करेगी...
नई दिल्ली, जेएनएन। भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव खत्म करने के लिए संघर्ष विराम निश्चित तौर पर हो गया है लेकिन दोनों देशों के बीच राजनीतिक वार्ता शुरू होने की डगर अभी दूर है। आगे की राह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगी कि कश्मीर और सीमा पार आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान क्या रवैया अपनाता है। भारत अपने इस पड़ोसी देश के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की राह में धीरे-धीरे कदम बढ़ाने की रणनीति अपनाएगा।
कोई भी आतंकी वारदात पहुंचाएगी नुकसान
भारत किसी तरह की राजनीतिक वार्ता शुरू करने से पहले पाकिस्तान से इस बात की गारंटी लेना चाहेगा कि उसकी जमीन से भारत के खिलाफ किसी आतंकी वारदात को अंजाम नहीं दिया जा रहा है। पिछले दो दशकों में पाकिस्तान में पनाह पाए आतंकी संगठनों के हमलों ने कम से कम तीन बार दोनों देशों के बीच चल रही शांति वार्ताओं को बीच में स्थगित कराया है।
संबंधों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया होगी लंबी
सूत्रों का कहना है, 'भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते अभी जितने खराब हो चुके हैं उसे सामान्य बनाने की प्रक्रिया लंबी होगी। सबसे पहले भारत यह देखना चाहेगा कि पाकिस्तान संघर्ष विराम को गंभीरता से लागू करता है या नहीं। दूसरा कदम, कूटनीतिक रिश्तों को सामान्य बनाने का हो सकता है।' अगस्त, 2019 में जब भारत ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का फैसला किया था, तब पाकिस्तान ने उस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए भारत के साथ अपने कूटनीतिक संबंध तोड़ने का एलान किया था।
दूतावासों पर भी नजर आया था असर
प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास में कर्मचारियों की संख्या घटा दी थी और अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था। यही नहीं, इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायुक्त को भी लौटने का फरमान सुना दिया गया था। उसके बाद से अभी तक पाकिस्तान ने नई दिल्ली में अपना उच्चायुक्त नियुक्त नहीं किया है।
घरेलू राजनीतिक समीकरणों का भी ख्याल
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान की इमरान खान सरकार और वहां की सेना को अपने घरेलू राजनीतिक समीकरणों का भी ख्याल रखना है। ऐसे समय जब वहां का विपक्ष पूरी तरह से लामबंद हो चुका है और वह इमरान खान के साथ ही पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भी मोर्चा खोले हुए है तब इन दोनों की कोशिश होगी कि भारत से उन्हें कुछ ऐसा मिले जिसे वे घरेलू राजनीति में विजय के तौर पर पेश कर सकें।
सार्क बैठक पर हो सकती है बात
ऐसे में 2016 से स्थगित दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की बैठक आयोजित करने पर दोनों देशों के बीच बात हो सकती है। पठानकोट हमले के बाद भारत समेत सार्क के दूसरे कई देशों ने इस्लामाबाद में होने वाली शिखर बैठक का बहिष्कार कर दिया था। अगर भारत सार्क बैठक के लिए राजी हुआ तो इमरान सरकार इसे एक बड़ी विजय के तौर पर दिखा सकती है।