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सुरक्षित और प्रभावी है भारतीय कोरोना वैक्‍सीन, उत्‍पादन के मामले में भी भारत का कोई नहीं विकल्‍प

भारत ने एक साल पहले शुरू हुई कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ जंग में काफी हद तक सफलता हासिल की है। भारतीय वैक्‍सीन की मौजूदगी इसका एक जीता जागता उदाहरण है। ये वैक्‍सीन काफी प्रभावी और सुरक्षित भी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 07:54 AM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 11:18 AM (IST)
सुरक्षित और प्रभावी है भारतीय कोरोना वैक्‍सीन, उत्‍पादन के मामले में भी भारत का कोई नहीं विकल्‍प
सुरक्षित और प्रभावी है भारतीय कोविड वैक्सीन

डॉ. अश्विनी महाजन। कोरोना संक्रमण का प्रसार एक बार फिर बढ़ता जा रहा है। हालांकि देश में कोरोना टीकाकरण का काम भी जारी है। वैसे पूर्व में यह निर्णय लिया गया था कि सभी स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण पूरा होने के बाद ही इसे अन्य लोगों को दिया जाएगा, लेकिन संक्रमण से बचाव और टीकों की उपलब्धता को देखते हुए सरकार ने त्वरित निर्णय लिया कि एक मार्च यानी आज से 60 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को और 45 वर्ष से अधिक उम्र के संबंधित बीमारों को भी निर्धारित शुल्क लेकर टीका उपलब्ध कराया जाएगा। वैसे इस संदर्भ में दुष्प्रचार भी शुरू हो गया है, लेकिन उससे बचने की जरूरत है। 

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भारत सरकार ने जनवरी के मध्य से कोरोना महामारी से निपटने हेतु देश में ही वैक्सीन विकसित कर स्वास्थ्यकíमयों और कोरोना के खिलाफ सीधे तौर पर युद्ध में संलग्न पुलिसकर्मियों समेत लगभग तीन करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने की मुहिम शुरू कर दी थी। हालांकि कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा उसके पहले से ही स्वदेशी वैक्सीन के खिलाफ दुष्प्रचार भी शुरू कर दिया गया था। इस दुष्प्रचार और कुछ अन्य कारणों से कुछ लोग वैक्सीन के प्रति हतोत्साहित हो रहे हैं। इस कारण से प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की है कि वे इस दुष्प्रचार से प्रभावित न हों। प्रधानमंत्री, स्वास्थ्यमंत्री और सरकारी प्रतिनिधियों के द्वारा बार-बार यह समझाया भी जा रहा है कि भारतीय वैक्सीन सुरक्षित भी है और प्रभावी भी।

वैक्सीन के प्रयास : समझना होगा कि लगभग एक सदी के बाद मानवता एक भयानक महामारी से गुजर रही है। विशेषज्ञों को इससे निपटने हेतु कोई भी इलाज नहीं सूझ रहा था। ऐसे में इस बीमारी के प्रति शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित करना ही एकमात्र हल सोचा जा रहा है। एलोपैथिक चिकित्साशास्त्र में इस हेतु वैक्सीन एक उपाय माना जाता है। किसी एक बीमारी के लिए विकसित वैक्सीन, मानव शरीर में उस बीमारी के खिलाफ प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित करती है।

सामान्य परिस्थितियों में ऐसी किसी भी वैक्सीन को विकसित करने में सात से 10 वर्षो का समय लगता है। लेकिन इन विशेष परिस्थितियों में मानवता के अस्तित्व पर आए इस संकट को बचाने हेतु विशेषज्ञों पर दबाव था कि वे यह वैक्सीन जल्द से जल्द विकसित करें। ऐसे में दुनिया भर में 200 से अधिक प्रयास चल रहे हैं, जिसमें से 18 प्रयास मात्र भारत में ही चल रहे हैं।गौरतलब है कि भारत लंबे समय से वैक्सीन के क्षेत्र में अग्रणी देश रहा है। यहां की लगभग सात कंपनियां वैक्सीन बनाकर दुनिया भर में बेचती रही हैं।

दुनिया में वैक्सीन कहीं भी विकसित हो, उसके बड़े स्तर पर उत्पादन में भारतीय कंपनियों को खासी महारत हासिल है। कुछ समय पूर्व रूस द्वारा विकसित एक वैक्सीन के व्यावसायिक उत्पादन हेतु भारत की एक कंपनी -डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज- से संपर्क साधा गया और उसका उत्पादन करने की प्रक्रिया भी चल रही है और इस संबंध में दूसरे चरण के ट्रायल पूर्ण हो चुके हैं और तीसरे चरण के ट्रायल जल्द ही शुरू होने वाले हैं। अभी तक भारत में अन्य कंपनियों द्वारा वैक्सीन विकसित करने के प्रयासों के साथ-साथ सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक नाम की दो भारतीय कंपनियों ने वैक्सीन का व्यावसायिक उत्पादन शुरू कर दिया है और भारत सरकार द्वारा उन्हें आपातकालीन उपयोग की अनुमति भी प्रदान कर दी गई है।

इसके साथ-साथ बिना कोई समय गंवाए, स्वास्थ्यकर्मियों सहित अन्य कोरोना योद्धाओं के इस वैक्सीन की पहली डोज दी जा चुकी है। अब उन्हें दूसरी डोज दी जा रही है। इतना ही नहीं, आज से यानी एक मार्च से देश भर में इसे 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए भी शुरू करने की योजना है। लेकिन इसके साथ ही भारत बायोटेक की वैक्सीन -कोवैक्सिन- के खिलाफ दुष्प्रचार तेज हो गया है। पहले से ही कुछ अन्य कारणों और स्वाभाविक डर के कारण वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट के साथ यह दुष्प्रचार वैक्सीन के प्रति कुछ लोगों को हतोत्साहित कर रहा है।

क्या है मुद्दा : हालांकि दोनों भारतीय वैक्सीनों को समस्त प्रक्रियाओं को पूर्ण करने के बाद आपातकालीन उपयोग की अनुमति प्रदान कर दी गई है, लेकिन भारत बायोटेक की वैक्सीन -कोवैक्सिन- के बारे में यह प्रचारित किया जा रहा है कि चूंकि इसके तीसरे चरण का ट्रायल पूरा नहीं किया जा सकता है, इसलिए इसकी प्रभावी क्षमता सुनिश्चित नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित और सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई गई -कोविशील्ड- और भारत बायोटेक द्वारा विकसित एवं निíमत -कोवैक्सिन- दोनों को विषय विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा पर ही अनुमति दी गई है। इन वैक्सीनों की सुरक्षा और प्रभावी होने के तथ्यों के आधार पर ही यह अनुमति दी गई है।लेकिन इस मामले में भारत बायोटेक की वैक्सीन पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

कहा जा रहा है कि उसके तीसरे चरण के ट्रायल अभी बाकी हैं, इसलिए इस वैक्सीन को देने से पहले जिन्हें वैक्सीन दी जा रही है, उनकी सहमति जरूरी है। गौरतलब है कि इन दोनों वैक्सीनों को भारत सरकार के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में चयनित किया गया है। इसलिए इनके बारे में किसी भी प्रकार की शंका का कोई स्थान नहीं है। समझना होगा कि वर्तमान में इस कोरोना संकट से कोरोना योद्धाओं और अन्य ऐसे व्यक्तियों, जिन्हें इस संक्रमण का सबसे अधिक खतरा है, उन्हें ये वैक्सीन आपातकालीन व्यवस्था के अंतर्गत दी जा रही है, क्योंकि उनके जीवन को खतरे में नहीं डाला जा सकता।

यही नहीं, विश्व के अत्यंत सम्मानजनक मेडिकल जर्नल -द लांसेट- द्वारा एक दस्तावेज प्रकाशित हुआ है, जिसके अनुसार भारत बायोटेक द्वारा विकसित वैक्सीन -कोवैक्सिन- सुरक्षित भी है और प्रभावी है। तकनीकी डाटा का विश्लेषण करते हुए इस दस्तावेज में कहा गया है कि इस वैक्सीन में सम्मिलित तत्व शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाने का कार्य करेंगे। पहले चरण में, इस वैक्सीन की दो डोज 14 दिनों के अंतराल में दी गई और उसके प्रभाव का अंतरिम विश्लेषण पहले डोज के 42 दिनों के बाद किया गया। प्रारंभ में इसे प्रतिकूल प्रभाव माना गया, लेकिन बाद में इसे वैक्सीन से संबद्ध करार नहीं दिया गया।

हालांकि कंपनी ने दूसरे चरण के ट्रायल का डाटा भी प्रकाशित कर दिया है, जिसका विश्लेषण जल्द ही प्रकाशित होगा। लेकिन दूसरे चरण के परिणाम भी उत्साहवर्धक हैं।लेकिन यहां यह जानना जरूरी है कि अन्य वैक्सीनों की अपेक्षा कोवैक्सिन की खासियत यह है कि यह कोविड के बदले हुए प्रकार के वायरस के खिलाफ भी प्रभावी है, जो इसे विशेष बना रहा है। यह दावा भारत बायोटेक की साझेदार संस्था आइसीएमआर का है।

दुष्प्रचार से बचने की दरकार : समझ सकते हैं कि समस्त नियामक एजेंसियों और विषय विशेषज्ञों द्वारा इन वैक्सीनों के प्रभावी और सुरक्षित होने के प्रमाणों के बाद ही ये वैक्सीन आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूर की गई हैं। वैज्ञानिक विश्लेषण भी उनके समर्थन में हैं। -द लांसेट- में प्रकाशित दस्तावेज के बाद भारत बायोटेक की वैक्सीन -कोवैक्सिन- के खिलाफ कोई तर्क नहीं बचता है।

लेकिन उसके बावजूद स्वदेशी वैक्सीन के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार इस दुष्प्रचार से बचने के लिए अपील भी की है। हालांकि निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विश्व में बहुत सी कंपनियों द्वारा वैक्सीन विकसित करने के कारण भारत की इस पहल और दुनिया के कई देशों में मानवता की रक्षा हेतु वैक्सीन उपलब्ध करा देने के कारण इन कंपनियों में अकुलाहट बढ़ गई है।

वहीं दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन और बिल मिलिंडा गेट्स सरीखी दुनिया की बड़ी-बड़ी एजेंसियां भी छद्म रूप से कुछ बड़ी दवा कंपनियों द्वारा विकसित वैक्सीन की बिक्री सुनिश्चित करने हेतु पहले से ही सक्रिय हैं। इन एजेंसियों द्वारा -कोवैक्स फैसिलिटी- के नाम से एक व्यवस्था को आगे बढ़ाने का काम किया गया है, जिसमें विभिन्न देशों की सरकारों से इन वैक्सीनों को खरीदने की बाध्यकारी प्रतिबद्धता के लिए दबाव भी बनाया गया और कई मुल्क उसके लिए राजी भी हो गए।

यह एक खुला सत्य है कि इस व्यवस्था में बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां सम्मिलित हैं। भारत द्वारा अपनी स्वदेशी वैक्सीन विकसित करने के कारण निहित स्वार्थो वाला यह पूरा का पूरा खेमा विचलित है। यह संभव है कि भारत की स्वदेशी वैक्सीन के खिलाफ ये सभी शक्तियां शंका उत्पन्न कर अपना बाजार गर्म करने की कोशिश में हैं। ऐसा लगता है कि इस दुष्प्रचार के बारे में सरकार पूरी तरह से सजग है और तेजी से वैक्सीन के क्रियान्वयन को तेजी से आगे बढ़ाते हुए दुनिया में पहल बना चुकी है।

कमजोर न पड़ने दें सुरक्षा कवचयोगेश कुमार गोयल भारत बहुत बड़ी आबादी वाला देश है और ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि इतनी बड़ी आबादी के टीकाकरण का काम इतना सरल नहीं है। इसके लिए टीकाकरण अभियान की खामियों को दूर करते हुए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। लोगों के मन में कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स को लेकर जो भ्रम व्याप्त हैं, उन्हें दूर करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने की दरकार है।

कुछ दिनों पहले एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा था कि कोरोना वैक्सीन को लेकर गलत और आधारहीन सूचनाओं की बाढ़ ने लोगों के मन में टीके को लेकर अनिच्छा पैदा की है और इसका समाधान यही है कि लोगों के मन में उत्पन्न संदेह और भ्रम को दूर करने के लिए सरकार द्वारा समुचित कदम उठाए जाएं। कोरोना टीकों को लेकर सबसे बड़ा भ्रम लोगों के मन में इनके साइड इफैक्ट को लेकर है, लेकिन कई प्रमुख स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टीका लगने के आधे दिन तक टीके वाली जगह पर दर्द और हल्का बुखार रह सकता है, जो इस बात की निशानी है कि टीका काम कर रहा है।

जब शरीर में दवा जाती है तो हमारा प्रतिरोधी तंत्र इसे अपनाने लगता है। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कोरोना के दोनों टीकों को पूर्ण सुरक्षित बताते हुए कहा था कि टीकाकरण के आंरभिक तीन दिनों में लोगों में वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव के केवल 0.18 प्रतिशत मामले सामने आए थे, जिनमें केवल 0.002 फीसद ही गंभीर किस्म के थे। अब स्वास्थ्य मंत्रालय का भी कहना है कि वैक्सीन लगवाने के बाद केवल 0.005 फीसद लोगों को ही अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी।

कोरोना वैक्सीन को लेकर कुछ लोगों के मन में जो शंकाएं हैं, उनका समाधान करने का प्रयास करते हुए कुछ विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि फिलहाल स्पष्ट रूप से यह तो नहीं कहा जा सकता कि वैक्सीन से किस व्यक्ति में कितने दिन के लिए एंटीबॉडीज बनेंगी, लेकिन इतना अवश्य है कि टीके की दोनों डोज लगने के बाद कम से कम छह माह तक शरीर में एंटीबॉडी मौजूद रहेंगी और अगर इतने समय तक लोगों को कोरोना से सुरक्षा मिल गई तो कोरोना की चेन को आसानी से तोड़ा जा सकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

(एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय)


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