H-1B वीजा के रोक पर भारतीय आइटी उद्योग परेशान लेकिन सरकार को भरोसा नहीं होगा खास असर
अमेरिका में तीन लाख भारतीयों के पास यह वीजा है। डोनाल्ड ट्रंप सरकार के इस फैसले के बाद भारतीयों को अधिक वेतन मिल सकता है और भारत भेजे जाने वाले पैसों में बढ़ोतरी हो सकती है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एच-1बी वीजा लेकर अमेरिका में काम करने की तमन्ना पाले भारतीय युवाओं को गहरा धक्का लगा है। चार वर्षो तक धमकी देने के बाद अंतत ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा को रद्द करने का एक बड़ा फैसला कर लिया। अमेरिकी सरकार ने दिसंबर, 2020 तक विदेशी कामगारों को अमेरिका में काम करने संबंधी वीजा देने संबंधी सारी सुविधाओं पर रोक लगा दी है। इसमें इंर्फोमेशन टेक्नोलोजी (आइटी) पेशेवरों को प्रमुखता से दी जाने वालीृ एच-एबी वीजा भी शामिल है जिसका आवंटन बड़े पैमाने पर भारतीय आइटी पेशेवर के बीच होता है। ट्रंप काफी समय से इस कदम के पक्ष में थे जिसकी वजह से पूर्व में कई बार पीएम नरेंद्र मोदी के साथ उनकी द्विपक्षीय वार्ता में यह मुद्दा भारत की तरफ से उठाया गया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोम्पिओ के साथ अपनी वार्ता में भी इसे उठाता रहा। दोनो देशों के बीच कारोबार बढ़ाने के लिए गठित समिति के बीच होने वाली हर बैठक में भी यह मुद्दा उठता रहा है।
साफ है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने रणनीतिक साझेदार भारत के हितों के बजाये फिलहाल घरेलू राजनीति को ज्यादा तरजीह दी है। उनका कहना है कि कोविड-19 की वजह से जो हालात बने हैं उससे अमेरिकी लोगों को रोजगार में तरजीह देना जरुरी है। इसलिए विदेशी कामगारों को रोकना पड़ रहा है। उनका आकलन है कि तकरीबन 5.25 लाख नौकरियां जो विदेशियों को दी जाती, अब अमेरिकी युवाओं को दी जाएंगी। हर साल अमेरिका 70-80 हजार एच-1बी वीजा विदेशियों को देता है जिसमें से 50-60 हजार भारतीय पेशेवरों को ही मिलता है। अभी भी तीन लाख भारतीय आइटी पेशेवर इस वीजा पर वहां काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ के रोजगार पर असर पड़ने के आसार हैं।
राजनीतिक फायदे के लिए उठाया गया कदम
विशुद्ध तौर पर राजनीतिक फायदे के लिए यह कदम उठाया है लेकिन पहले से ही मंदी की शिकार भारतीय आइटी कंपनियां इससे बेहद परेशान है। परेशानी की वजह यह है कि इन कंपनियों को अपने अमेरिकी ग्राहकों (क्लाइंट कंपनियां) के लिए नई रणनीति बनानी पड़ेगी। इन्हें खुद अमेरिकी सरकार ने एच-1बी वीजा दिया हुआ था। ज्यादा कंपनियां भारतीय कर्मचारियों को अक्टूबर से अमेरिका भेजती हैं जहां वे क्लाइंट के लिए काम करते हैं। अब उन्हें 1 जनवरी, 2021 के बाद ही कर्मचारियों को भेजने की अनुमति मिलेगी।
अमेरिका के हितों को पहुंचाएगा नुकसान
नासकॉम व सीआइआइ जैसे उद्योग प्रतिनिधियों ने इसे पूरी तरह से गलत तथ्यों पर आधारित व भारत-अमेरिकी कारोबारी संबंधों को नुकसान पहुंचाने वाला बताया है। नासकॉम ने कहा है कि यह कदम अमेरिका के हितों को ही नुकसान पहुंचाएगा। वहां स्थानीय प्रतिभा की कमी है लिहाजा अमेरिकी कंपनियां और ज्यादा बाहरी देशों को अपना काम काज सौपेंगी। आइटी सेक्टर की भारी भरकम कंपनियां जैसे माइक्रोसॉफ्ट, टेस्ला ने भी विरोध किया। कई प्रमुख अमेरिकी सांसदों ने भी अमेरिकी हितों के खिलाफ बताया है।
उधर, भारत सरकार ने इस कदम को खास तवज्जो नहीं दी है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि इससे भारतीय कंपनियों को आगे फायदा ही होगा क्योंकि अमेरिकी कंपनियों में लागत कम करने के लिए ठेके पर ज्यादा काम बाहर भेजा जाएगा। साथ ही वहां काम नहीं मिलने पर जो प्रशिक्षित टैलेंट स्वदेश लौटेगा उससे भारतीय इकोनॉमी को फायदा होगा।