भारतीय पनडुब्बियां अब अधिक समय तक पानी के नीचे लगा सकेंगी गश्त, DRDO ने विकसित की खास प्रणाली
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि एआइपी प्रणाली से डीजल-विद्युत चालित पनडुब्बी की घातक क्षमता बहुत बढ़ जाती है। अन्य तकनीक की तुलना में ईंधन सेल आधारित एआइपी से समुद्र के अंदर पनडुब्बियां ज्यादा समय तक रह सकती हैं।
नई दिल्ली, एजेंसियां। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने डीजल से चलने वाली पनडुब्बियों के लिए एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्रणाली (एआइपी) के विकास में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। समुद्र से बाहर प्रोटोटाइप पर इसके प्रभाव का सफल परीक्षण किया गया है। रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
मंत्रालय ने बताया कि आठ मार्च को उपयोगकर्ता की आवश्यकताओं के अनुसार एआइपी के प्रोटोटाइप को सहनशक्ति मोड (एंड्योरेंस मोड) और अधिकतम शक्ति मोड (पावर मोड) में संचालित किया गया था।
मंत्रालय ने कहा कि एआइपी प्रणाली से डीजल-विद्युत चालित पनडुब्बी की घातक क्षमता बहुत बढ़ जाती है। अन्य तकनीक की तुलना में ईंधन सेल आधारित एआइपी से समुद्र के अंदर पनडुब्बियां ज्यादा समय तक रह सकती हैं।
डीआरडीओ की नौसेना पदार्थ अनुसंधान प्रयोगशाला इस प्रणाली को विकसित कर रही है। मंत्रालय ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एआइपी के लिए अलग-अलग तकनीक अपनाई जाती है। लेकिन
ईंधन सेल आधारित यह तकनीक इस मायने में अनूठी है क्योंकि इसके लिए जरूरी हाइड्रोजन जहाज पर उत्पन्न होता है।
निजी क्षेत्र का बड़ा योगदान
मंत्रालय के मुताबिक इस तकनीक को विकसित करने में निजी क्षेत्र का बड़ा योगदान है। इस तकनीक को उद्योग भागीदारों एलएंडटी और थर्मेक्स के सहयोग से सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। यह अब पनडुब्बी में फिटमेंट के लिए पूरी तरह तैयार है।
रक्षा मंत्री ने दी बधाई
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस उपलब्धि के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), भारतीय नौसेना और उद्योग जगत को बधाई दी।
क्यों खास है एआइपी तकनीक
पनडुब्बियां मुख्य रूप से दो तरह की होती हैं। एक पारंपरिक और दूसरी परमाणु संचालित। पारंपरिक पनडुब्बियां डीजल-विद्युत इंजन का उपयोग करती हैं। इन्हें अपने ईंधन को जलाने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इसके लिए ऐसी पनडुब्बियों को प्रतिदिन समुद्र की सतह पर ऑक्सीजन के लिए आना पड़ता है। वहीं, पनडुब्बी में एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन यानी एआइपी प्रणाली को लगा दिया जाता है तो उसे सप्ताह में केवल एक बार ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता होती है।
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