Move to Jagran APP

भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाई सिल्वर नैनोवायर बनाने की सस्‍ती तकनीक, जानें क्‍या होगा फायदा

राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (NCL) पुणे के शोधकर्ताओं ने सिल्वर नैनोवायर के निर्माण की किफायती तकनीक विकसित की है। जानें क्‍या होगें इसके फायदे...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 07:12 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 07:16 PM (IST)
भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाई सिल्वर नैनोवायर बनाने की सस्‍ती तकनीक, जानें क्‍या होगा फायदा
भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाई सिल्वर नैनोवायर बनाने की सस्‍ती तकनीक, जानें क्‍या होगा फायदा

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। इलेक्ट्रॉनिक सर्किट निर्माण में उपयोग होने वाली विद्युत की संवाहक स्याही से लेकर टच स्‍क्रीन और इन्फ्रारेड शील्ड्स तक विभिन्न नैनो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के विकास में नैनोवायर का महत्व लगातार बढ़ रहा है। राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला (NCL), पुणे के शोधकर्ताओं ने सिल्वर नैनोवायर के निर्माण की किफायती तकनीक विकसित की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नई तकनीक की मदद से बड़े पैमाने पर भविष्य के नैनो-इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाए जा सकते हैं।

loksabha election banner

इलेक्‍ट्रानों के प्रवाह के लिए अनुकूल

मनुष्य के बालों से सैकड़ों गुना पतले नैनोवायर की सतह इलेक्ट्रॉन्स की स्टोरेज और ट्रांसफर के अनुकूल होती है, जिसका उत्पादन एक जटिल प्रक्रिया है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के महानिदेश डॉ. शेखर सी. मांडे ने हाल में पुणे स्थित एनसीएल परिसर में नैनोवायर उत्पादन के लिए एक पायलट प्लांट स्थापित किया है। इस प्लांट के बारे में कहा जा रहा है कि यह निरंतर नैनोवायर उत्पादन की क्षमता रखता है।

एक दिन में 500 ग्राम नैनोवायर का उत्पादन

यह पायलट प्लांट एक दिन में 500 ग्राम नैनोवायर का उत्पादन कर सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि आवश्यकता पड़ने पर उत्पादन दर को बढ़ाया जा सकता है। विभिन्न आकारों (20 से 100 नैनोमीटर व्यास) के सिल्वर नैनोवायर्स का अंतरराष्ट्रीय बाजार मूल्य 18,000 से रुपये 43,000 रुपये प्रति ग्राम तक है। जबकि, इस तकनीक से उत्पादित सिल्वर नैनोवायर्स वैश्विक दरों से कम से कम 12 गुना सस्ते हैं। इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त नैनोवायर्स के निर्माण के लिए इस उत्पादन प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है।

रसायन विज्ञान की संश्लेषण विधि

एनसीएल के केमिकल इंजीनियरिंग एंड प्रोसेस डेवलपमेंट डिविजन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. अमोल कुलकर्णी ने बताया कि यह रसायन विज्ञान की एक प्रचलित संश्लेषण विधि है, जिसे प्रयोगशाला में नियंत्रित मापदंडों के अनुसार अंजाम दिया जाता है। इस नई पद्धति का उद्देश्य एक ऐसी तकनीक का निर्माण करना है, जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उतर सके और विद्युत रसायनों के क्षेत्र में अपनी पहचान कायम कर सके।

पेटेंट के लिए किया गया है आवेदन

भारत नैनोवायर की अपनी जरूरतों के लिए फिलहाल आयात पर निर्भर है। यह नई तकनीक बड़े पैमाने पर सटीक नैनोवायर के उत्पादन में मददगार हो सकती है। इस प्रौद्योगिकी की सुरक्षा के लिए पेटेंट के लिए आवेदन किए गए हैं। इस पायलट प्लांट पर उत्पादित नैनोवायर का परीक्षण विद्युत की संवाहक स्याही सहित विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए किया गया है।

अवसरों की नहीं है कमी

डॉ. मांडे ने कहा है कि 'नैनोवायर्स का एक विस्तृत वैश्रि्वक बाजार है। इसलिए इसे बनाने वाले उत्पादकों के लिए इस क्षेत्र में अवसरों की कमी नहीं है। सीएसआइआर की यह पहल दीर्घकालिक प्रासंगिकता के इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से प्रवेश करने में एक अहम कड़ी साबित हो सकती है। नैनोवायर उत्पादन की इस तकनीक का विकास विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एडवांस्ड मैन्यूफैक्‍चरिंग टेक्नोलॉजी (AMT) पहल पर आधारित है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.