मंगल ग्रह पर कैसे खत्म हुआ होगा वातावरण, भारतीय वैज्ञानिकों ने लगाया पता, आप भी जानें वह वजह
नासा यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या मंगल ग्रह पर कभी जीवन था या नहीं। इसके लिए उसने अपने यान पर्सिवेरेंस को मंगल ग्रह पर उतारा है। ऐसे में भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह का वातावरण खत्म होने की वजहों का पता लगाया है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। मंगल ग्रह का अपना कोई वायुमंडल नहीं है। विज्ञानियों का अनुमान है कि किसी काल में मंगल पर हमारे ग्रह की तरह ही हवाएं और नदियां बहा करती थीं लेकिन अब वहां केवल सौर हवाएं चलती हैं। एक नए अध्ययन में विज्ञानियों ने इन्हीं सौर हवाओं को मंगल का वातावरण खत्म करने की वजह माना है। कंप्यूटर मॉडल के अध्ययन के आधार पर विज्ञानियों ने दावा किया कि सौर हवाओं की वजह से मंगल ग्रह का वातावरण खत्म हुआ।
जीवन के लिए रक्षात्मक चुंबकीय क्षेत्र जरूरी
इस दावे से उस सिद्धांत को भी बल मिलता है जिसमें कहा गया है कि जीवन को बनाए रखने के लिए और ग्रहों को हानिकारक विकिरण से बचाने के लिए रक्षात्मक चुंबकीय क्षेत्र की दरकार होती है। हालांकि किसी ग्रह पर सामान्य रूप से गर्म, नम वातावरण के साथ ही पानी की मौजूदगी निर्धारित कर सकती है कि उस पर जीवन संभव है या नहीं। मंथली नोटिसेज ऑफ रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि ग्रहों की अपने आस-पास चुंबकीय क्षेत्र पैदा करने की क्षमता एक ऐसा पहलू है जिसकी अब तक अनदेखी की गई है।
रक्षात्मक छाते की तरह करते हैं काम
भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आइआइएसईआर) कोलकाता के विज्ञानी अर्नब बसाक औ दिव्येंदु नंदी के अनुसार, ये चुंबकीय क्षेत्र ग्रहों के आस-पास रक्षात्मक छाते की तरह काम करते हैं जो वातावरण को सूर्य की सुपर फास्ट प्लाज्मा हवाओं से रक्षा करते हैं।
इसलिए सौर हवाओं से महफूज है हमारी धरती
विज्ञानियों का कहना है कि धरती पर भू-विद्युतक तंत्र (जियो-डायनामो मैकेनिज्म) ग्रह का रक्षात्मक चुंबकीय आवरण हमारे लिए एक ऐसा अदृश्य सुरक्षा कवच है जो सौर हवाओं को पृथ्वी के वातावरण को खत्म होने से रोक देता है।
कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिये किया अध्ययन
इस अध्ययन के लिए विज्ञानियों ने मंगल ग्रह की कंप्यूटर सिमुलेशन के आधार पर दो प्रतिकृति तैयार कीं। एक में मंगल को चुम्बकीय क्षेत्र से लैस किया और दूसरे को चुम्बकीय क्षेत्र से रहित। इस दौरान विज्ञानियों ने पाया कि मैग्नेटॉस्फियर (चुम्बकीय क्षेत्र) वाली मंगल की प्रतिकृति ने सौर हवाओं को ग्रह में प्रवेश नहीं करने दिया, जबकि दूसरी प्रतिकृति में सौर हवाएं सीधा मंगल में प्रवेश कर गईं और ग्रह के वायुमंडल को अपने साथ उड़ा ले गईं।
ढाल के रूप में काम करता मैग्नेटॉस्फियर
इस आधार पर विज्ञानियों का मानना है कि मैग्नेटॉस्फियर एक ढाल के रूप में काम करता है और ग्रह को बाहरी हानिकारक हवाओं से बचाता है। विज्ञानियों ने कहा कि इसका अर्थ है कि किसी भी ग्रह की रक्षा में चुंबकीय क्षेत्र अहम भूमिका निभाता है।
अहम भूमिका निभाएगा अध्ययन
विज्ञानियों का मानना है कि यह अध्ययन मंगल के साथ एक्सोप्लैनेट पर जीवन की संभावनाओं की तलाश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बता दें कि यह अध्ययन ऐसे वक्त में सामने आया है जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का रोवर पर्सिवेरेंस लाल ग्रह की सतह पर उतरा है। अब तक के सबसे जोखिम भरे और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण इस अभियान का उद्देश्य यह पता लगाना है कि मंगल ग्रह पर क्या कभी जीवन था।
नासा के अभियान के बीच बड़ा दावा
उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों की ओर से किया गया यह ऐसे वक्त में सामने आया है जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यान (पर्सिवेरेंस) लाल ग्रह की सतह पर उतरा है। अब तक के सबसे जोखिम भरे और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण इस अभियान का उद्देश्य यह पता लगाना है कि मंगल ग्रह पर क्या कभी जीवन था। अभियान के तहत ग्रह से चट्टानों के टुकड़े भी लाने का प्रयास होगा, जो इस सवाल का जवाब खोजने में अहम साबित हो सकते हैं। पर्सिवेरेंस नासा द्वारा भेजा गया अब तक का सबसे बड़ा रोवर है।