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Indian Railways की खास पहल, हल्के डीजल में बदलेगा इलेक्ट्रानिक कचरा और प्लास्टिक, जानिए कैसे

तीन महीने के भीतर दो करोड़ रुपये की लागत से कचरे से ऊर्जा प्लांट का निर्माण कराया गया है। यह प्लांट छोटा है इसलिए स्थापित करने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 07:41 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 01:41 AM (IST)
Indian Railways की खास पहल, हल्के डीजल में बदलेगा इलेक्ट्रानिक कचरा और प्लास्टिक, जानिए कैसे
Indian Railways की खास पहल, हल्के डीजल में बदलेगा इलेक्ट्रानिक कचरा और प्लास्टिक, जानिए कैसे

नई दिल्ली, प्रेट्र। पूर्व तटीय रेलवे ने सरकार का पहला कचरे से ईंधन बनानेवाला प्लांट स्थापित किया है। यह प्लांट इलेक्ट्रानिक कचरे और प्लास्टिक को 24 घंटे में हल्के डीजल में बदल देगा। गुरुवार को अधिकारियों ने यह जानकारी दी। पेटेंट कराई गई इस तकनीक को पोलीक्रैक के नाम से जाना जाता है। तकनीक का इस्तेमाल इस कचरे से ऊर्जा प्लांट में किया जाएगा। यह रेलवे में अपनी तरह का पहला और देश में चौथा प्लांट है।

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पूर्व तटीय रेलवे के प्रवक्ता जेपी मिश्रा ने कहा, 'यह दुनिया की पहली पेटेंट कराई गई हेटेरोजेनॉस कैटेलाइटिक प्रक्रिया है जो डाले गए विभिन्न प्रकार के कचरे को हाइड्रोकार्बन तरल ईधनों, गैस, कार्बन और पानी में बदल देती है। इससे पहले डिब्बा मरम्मती कार्यशाला से बड़ी मात्रा में अलौह रद्दी निकलती थी। निस्तारण का कोई प्रभावी उपाय नहीं होने से उन्हें खाली जगह में फेंक दिया जाता था। ऐसा कचरा पर्यावरण पर खतरनाक प्रभाव डालता था।'

कचरे को चुनकर अलग करने की जरूरत नहीं

मिश्रा ने कहा कि इस प्रक्रिया में मशीन में डालने से पहले कचरे को चुनकर अलग करने की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा, 'इसमें नमी सोखने की उच्च क्षमता है, इसलिए कचरे को सुखाने की जरूरत नहीं होगी। 24 घंटे में कचरे के प्रसंस्करण का काम पूरा हो जाएगा। चूंकि यह एक बंद इकाई है, इसलिए धूल उड़ने की गुंजाइश नहीं है। कचरा प्राप्त होते ही इस्तेमाल होने से सड़ने का खतरा भी नहीं है।'

दो करोड़ की लागत से तैयार हुआ प्लांट

तीन महीने के भीतर दो करोड़ रुपये की लागत से कचरे से ऊर्जा प्लांट का निर्माण कराया गया है। यह प्लांट छोटा है, इसलिए स्थापित करने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है। प्रक्रिया में उत्पन्न गैस का प्रणाली में इस्तेमाल होने से ऊर्जा के मामले में यह आत्मनिर्भर है और इससे इसका संचालन खर्च भी कम हो जाता है। प्लांट 450 डिग्री के आसपास पर काम करता है। दूसरे विकल्पों के मुकाबले इसकी प्रक्रिया कम तापक्रम वाली है।


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