नहीं बंद होगी रेलवे की बाकी पांच प्रिंटिंग प्रेस, रेलमंत्री पीयूष गोयल ने दिया भरोसा
पहले रेलवे के पास देश भर में कुल 14 प्रिंटिंग प्रेसें थीं। बाद में इनमें से 9 प्रिंटिंग प्रेसों को गैर जरूरी मानते हुए बंद कर दिया गया था।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। रेलवे की प्रिंटिंग प्रेसों को बंद करने की योजना अब रुक गई है। रेलमंत्री पीयूष गोयल ने यूनियनों को इस बात का भरोसा दिया है। यूनियनों ने रेलवे की बाकी बची पांच प्रिंटिंग प्रेसों को भी बंद करने के मंत्रालय के प्रस्ताव पर ऐतराज जताते हुए इन्हें रेलवे के लिए अति आवश्यक बताया था।
पहले रेलवे के पास देश भर में कुल 14 प्रिंटिंग प्रेसें थीं। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इनमें से 9 प्रिंटिंग प्रेसों को गैर जरूरी मानते हुए बंद करने तथा केवल पांच प्रिंटिंग प्रेसों को बनाए रखने का फैसला लिया था। लेकिन पिछले वर्ष जून में रेलवे बोर्ड ने बाकी पांच प्रेसों को भी मार्च, 2020 तक बंद करने का निर्णय ले लिया था। हाल में संपन्न हुई रेलवे की परिवर्तन संगोष्ठी में भी इन प्रेसों को जल्द से जल्द बंद करने पर चर्चा हुई थी। लेकिन पिछले दिनो यूनियनो ने रेलमंत्री पीयूष गोयल से मिलकर इस पर कड़ा ऐतराज जताया और इस फैसले के अमल पर रोक लगाने का उनसे अनुरोध किया था।
रेलवे की सबसे बड़ी यूनियन आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआइआरएफ) ने रेलमंत्री से कहा कि यदि इन प्रिंटिंग प्रेसों को भी बंद किया गया तो आपात स्थिति में रेलवे को टिकटों तथा अन्य सामग्रियों की छपाई के लिए पूरी तरह से निजी क्षेत्र पर निर्भर होना पड़ेगा जिससे आपात परिस्थितियों में संकट खड़ा हो सकता है। ये प्रेसें दिल्ली, हावड़ा, मुंबई, चेन्नई तथा सिकंदराबाद में स्थित हैं।
एआइआरएफ के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा के अनुसार ये पांचों प्रिंटिंग प्रेसें अत्याधुनिक तकनीक से लैस हैं और इनके आधुनिकीकरण पर पिछले सालों में काफी पैसा खर्च किया जा चुका है। इनमें रेलवे के टिकटों के अलावा मनी वैल्यू बुक्स तथा रेलवे आपरेशन एवं सेफ्टी से जुड़े फार्मो, रसीदों और पुस्तिकाओं की छपाई होती है। इनमें रेल टिकटों की छपाई केवल 11 पैसे प्रति टिकट की लागत पर होती है, जबकि निजी क्षेत्र में लागत इससे ज्यादा है। चूंकि डिजिटाइजेशन और ई-टिकटिंग व मोबाइल टिकटिंग के बावजूद अभी भी हर साल लगभग 20 करोड़ आरक्षित (पीआरएस) तथा 300 करोड़ अनारक्षित (यूटीएस) टिकटों का उपयोग रेलवे में हो रहा है और अगले कई सालों तक इस स्थिति में बदलाव की कोई संभावना नहीं है।