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भारतीय नौसेना की समुद्री ताकत में इजाफा, जंगी बेड़े में शामिल हुई स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन INS करंज

भारत सरकार के साथ हुए समझौते के तहत इस शिपयार्ड पर छह पनडुब्बियों का निर्माण किया जाना है। इससे पहले नौसेना इस श्रेणी की दो पनडुब्बियों- आइएनएस कलवरी और आइएनएस खंदेरी को इसी शिपयार्ड से अपने बेड़े में शामिल कर चुकी है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 10 Mar 2021 08:08 AM (IST)Updated: Wed, 10 Mar 2021 09:39 AM (IST)
भारतीय नौसेना की समुद्री ताकत में इजाफा, जंगी बेड़े में शामिल हुई स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन INS करंज
आइएनएस करंज का निर्माण मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत किया गया है।

नई दिल्ली, एजेंसी। भारतीय नौसेना (Indian Navy) की समुद्री ताकत में इजाफा हुआ है। तीसरी स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी आइएनएस करंज (INS Karanj) को आज नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल किया गया है। नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और एडमिरल वीएस शेखावत (सेवानिवृत्त) की मौजूदगी में करंज को भारतीय नौसेना में शामिल कराया गया। नौसेना पहले ही इस श्रेणी की दो पनडुब्बियों- आइएनएस कलवरी (INS Kalvari) और आइएनएस खंदेरी को इसी शिपयार्ड से अपने बेड़े में शामिल कर चुकी है।

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इस पनडुब्बी का निर्माण मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत किया गया है। इस दौरान नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा कि भारतीय नौसेना पिछले 7 दशकों में रक्षा में स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता की मजबूत समर्थक रही है। वर्तमान में 42 जहाजों और पनडुब्बियों में से 40 का निर्माण भारतीय शिपयार्डों में किया जा रहा है।

भारत सरकार के साथ हुए समझौते के तहत इस शिपयार्ड पर छह पनडुब्बियों का निर्माण किया जाना है। इसके तहत वेला और वजीर का परीक्षण चल रहा है, जबकि छठी पनडुब्बी का निर्माण कार्य चल रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत प्रोजेक्ट-75 इंडिया के तहत छह और बड़ी और सक्षम पनडुब्बियों के निर्माण की योजना बना रहा है।

दूसरी तरफ, नौसेना ने 11 हथियार-सह-टोरपीडो-सह-मिसाइल (एसीटीसीएम) जहाजों के निर्माण के लिए सूर्यदीप्त प्रोजेक्ट्स के साथ समझौता किया है। नौसेना ने मंगलवार को जारी बयान में कहा कि ठाणे की एमएसएमई सूर्यदीप्त प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ पांच मार्च को समझौता हुआ। बयान के अनुसार जहाजों की आपूर्ति 22 मई से शुरू होनी है। बयान में कहा गया है कि यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और मील का पत्थर है।


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