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21 दिन में छह गोल्ड जीत भारतीय एथलीट ने रचा इतिहास, जानें- कैसे उन्होंने किया ये चमत्कार

चैंपियंस अलग होते हैं वे भीड़ से अलग सोचते हैं और यह सोच जब रंग लाती है तो बनता है इतिहास। ऐसी ही एक चैंपियन बनकर उभरी हैं हिमा दास। जानते हैं- उनके विश्व चैंपियन बनने की कहानी।

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 25 Jul 2019 10:14 AM (IST)Updated: Thu, 25 Jul 2019 10:30 AM (IST)
21 दिन में छह गोल्ड जीत भारतीय एथलीट ने रचा इतिहास, जानें- कैसे उन्होंने किया ये चमत्कार
21 दिन में छह गोल्ड जीत भारतीय एथलीट ने रचा इतिहास, जानें- कैसे उन्होंने किया ये चमत्कार

नई दिल्ली [सीमा झा]। खेल की दुनिया में एथलीट हिमा दास ने चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने का सिलसिला बरकरार रखा है। 21 दिन के अंदर छह स्वर्ण पदक जीतकर जो कारनामा हिमा ने कर दिखाया है, वह इतिहास बन गया है। सब जानना चाहते हैं इस असाधारण उपलब्धि का राज क्या है? आइए उनके करीबी दोस्त पलाश से जानें, आखिर हिमा में कहां से आता है ऐसा साहस? 

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चैंपियंस अलग होते हैं, वे भीड़ से अलग सोचते हैं और यह सोच जब रंग लाती है तो बनता है इतिहास। ऐसी ही एक चैंपियन बनकर उभरी हैं हिमा दास। वह गत वर्ष जकार्ता एशियन गेम्स से पहली बार दुनिया की नजरों में आई और आज बन गई हैं हर किसी की आंखों का तारा। यह 18 वर्षीय किशोरी आज अपने प्रदर्शनों से चौंका रही है। अपने हमउम्र एथलीटों के साथ-साथ सबकी प्रेरणा बन गई हैं।

जकार्ता एशियन गेम्स में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुये उसने रजत पदक जीता था, लेकिन इस साल चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में 21 दिन के अंदर छह स्वर्ण पदक जीतकर जो कारनामा हिमा ने कर दिखाया है, वह सामान्य बात नहीं। इस प्रतियोगिता के दौरान हिमा ने 400 मीटर की दौड़ में 51.46 सेकंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता है और वह ये उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गई हैं।

कैसे कोई इतने कम समय में लगातार इस स्तर का श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकता है? इस पर उनके करीबी और बचपन के दोस्त पलाश बताते हैं, 'उसे अपना लक्ष्य पता है। उसका एक ही लक्ष्य है हर प्रतियोगिता में भागने की टाइमिंग बेहतर करते जाना। बस इसी क्रम में उसे मेडल भी मिल जाता है।’ यानी हिमा का लक्ष्य मेडल हासिल करना कम, अपनी टाइमिंग को श्रेष्ठ स्तर पर लाना है। पलाश के अनुसार, हिमा मेडल जीतकर कूल रहती है, क्योंकि उसका लक्ष्य मेडल पर कम, अपने प्रदर्शन पर अधिक है। इसके लिए वह कड़ी मेहनत करती हैं और हर बार खुद को चुनौती देती है। इसके लिए घर में बड़े पापा यानी पिता के बड़े भाई उसे खूब प्रोत्साहित करते हैं।

पलाश के मुताबिक, हिमा शुरू से जिद्दी हैं। हम हार जाते हैं, लेकिन वह तब तक अड़ी रहती है, जब तक वह टारगेट हासिल न कर लें। इसी क्रम में पलाश एक किस्सा भी सुनाते हैं। पिछली बार जब वह गांव में एक प्रतियोगिता जीतने के बाद लौटी थीं और सबसे पहले दोस्तों से मिलने गईं। अपने छह दोस्तों में हिमा अकेली लड़की हैं, जिन्हें बाइक चलाने का खूब शौक है। दोस्तों में किसी ने कह दिया कि आओ बाइक रेस लगाएं तो वह नहीं सोचती कि मना करना है। वह रेस लगाती हैं और जीत कर दिखाती हैं। वह हरदम तत्पर रहती हैं। वह चाहे भागने की बात हो या दोस्तों की मदद की बात।

मदद की जहां तब बात है तो उल्लेखनीय है कि हिमा ने असम बाढ़ पीडि़तों को अपनी पुरस्कार राशि का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया है। किसी नए खिलाड़ी के लिए इस तरह का भावनात्मक कदम प्रशंसनीय और प्रेरक पहल है। यहां पलाश कहते हैं, 'जब भी वॉट्सऐप पर बात होती है, वह पहला सवाल असम में बाढ़ की हालात पर ही करती हैं। उसका परिवार भी इससे जूझ रहा है। पर उसे अधिक दुख न हो इसलिए हम इस पर अधिक बात नहीं करते। उसे खेल पर फोकस रहने के लिए कहकर बात बदल देते हैं।’


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