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सरहद की हिफाजत को भारतीय सेना हिमालय पर बनाएंगी ‘अटूट’ सड़कें

यह हमारे वैज्ञानिकों के लिए गौरव की बात है कि हम सरहद पर मजबूत सड़क बनाने में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को सहयोग देने जा रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 24 Jul 2018 09:57 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 10:55 AM (IST)
सरहद की हिफाजत को भारतीय सेना हिमालय पर बनाएंगी ‘अटूट’ सड़कें
सरहद की हिफाजत को भारतीय सेना हिमालय पर बनाएंगी ‘अटूट’ सड़कें

धनबाद [विनय झा]। सरहद पर अपनी सामरिक स्थिति को और अधिक मजबूत करने के लिए भारतीय सेना हिमालय की अति दुर्गम पर्वतमालाओं के बीच पुख्ता सड़क नेटवर्क बिछाने जा रही है। मध्य व उच्च हिमालयी क्षेत्र में सड़क निर्माण बेहद कठिन कार्य था, जो अब स्वदेशी तकनीक से संभव हो सकेगा।

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भारतीय सेना को जिसका अरसे से इंतजार था, वह सामरिक मजबूती अब उसे मिल सकेगी। उच्च हिमालयी क्षेत्र में सड़क नेटवर्क तैयार हो जाने से चीन के सापेक्ष भारतीय सेना की सामरिक स्थिति मजबूत होगी। हर पल हलचल से भरे हिमालय में हर मौसम को झेलने योग्य सड़कें बनाना अति चुनौतीपूर्ण कार्य है, जो अब तक चाहकर भी संभव नहीं हो सका था।

लेकिन अब धनबाद, झारखंड स्थित केंद्रीय ईंधन एवं अनुसंधान संस्थान (सिंफर) के रॉक मैकेनिक्स एवं ब्लास्टिंग विभाग के वैज्ञानिकों की मदद से सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) इसे पूरा कर सकेगा। सिंफर द्वारा विकसित नियंत्रित विस्फोट की विश्वस्तरीय आधुनिकतम तकनीक का इसमें इस्तेमाल होगा।

बीआरओ ने सिंफर की मदद से पश्चिम से पूर्व तक मजबूत सड़कों का नेटवर्क बनाने की योजना बनाई है। योजना के तहत ये सड़कें भारत के सीमावर्ती राज्यों व मित्र देशों के सीमा क्षेत्र से होकर गुजरेंगी। कई इलाकों में तो 14 हजार फीट की ऊंचाई पर भी सड़क तैयार होगी। रास्ते में सुरंगें भी होंगी। जिन इलाकों में कच्ची सड़कें पहले से हैं, उन्हें चौड़ा और मजबूत बनाया जाएगा।

सड़क नेटवर्क के तैयार हो जाने पर सरहद पर 12 महीने चौकसी में आसानी होगी। रसद के साथ युद्ध के हालात में सामरिक सामग्री की आवाजाही भी सुगमतापूर्वक संभव हो पाएगी। सिंफर के निदेशक डॉ. पीके सिंह, वैज्ञानिक मदन मोहन सिंह, आदित्य सिंह राणा व नारायण भगत की टीम ने यह बीड़ा उठाया है।

दरअसल, हिमालय क्षेत्र में सड़क समेत किसी भी तरह का ढांचा खड़ा करना अत्यंत कठिन है क्योंकि वहां हर समय भूगर्भीय हलचल बनी रहती है। इससे चट्टानें कमजोर और अस्थिर होती हैं। अक्सर पहाड़ खिसकने की घटनाएं होती हैं।

डॉ. पीके सिंह ने बताया कि सिंफर इस तरह की चुनौतियों से पार पाने में अब पूरी तरह दक्ष है। सिंफर के वैज्ञानिकों को चट्टान यांत्रिकी (रॉक मैकेनिक्स), नियंत्रित विस्फोट, ढलान स्थिरता (स्लोप स्टेबिलिटी) व सुरंग निर्माण में महारत हासिल है। इन विधाओं में केवल चुनिंदा विकसित देश ही सिंफर की बराबरी कर सकते हैं। सिंफर की तकनीक दिग्गज मल्टीनेशनल कंपनियों की तुलना में कहीं अधिक सुरिक्षत और पांच गुना तक सस्ती आंकी गई है।

सिंफर अकेला वैज्ञानिक संस्थान है, जिसके पास देश के सभी भागों के चट्टानों की अलग-अलग प्रकृति का 5000 से अधिक का विशाल डाटा भंडार है। वैज्ञानिकों ने वर्षों की मेहनत के बाद यह डाटा भंडार तैयार किया है। पहाडिय़ों के बीच से गुजरने वाली कोंकण रेलवे लाइन सिंफर वैज्ञानिकों की तकनीकी मदद से तैयार हुई थी। इसके अलावा बेंगलुरु रेलवे, मुंबई मेट्रो, कई हाइड्रो प्रोजेक्टों के लिए सिंफर की नियंत्रित विस्फोट तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

यह हमारे वैज्ञानिकों के लिए गौरव की बात है कि हम सरहद पर मजबूत सड़क बनाने में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को सहयोग देने जा रहे हैं। हमारे विज्ञानियों ने वर्षों की मेहनत से ऐसी विश्ववस्तरीय स्वदेशी तकनीक विकसित की है।

- डॉ. पीके सिंह, निदेशक, सिंफर 


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