India China Border News: सरकार के साथ देश की जनता दे सकती है चीन को मुंहतोड़ जवाब
चीन के उत्पाद का बहिष्कार कर हर कोई सरकार के साथ मिलकर इस जंग में शामिल हो सकता है। चीन को लेकर हर जगह आक्रोश साफ देखा जा रहा है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। कोरोना के जन्मदाता देश के रूप में दुनिया भर में चीन के प्रति आक्रोश व्याप्त है। विदेशी कंपनियां वहां से कारोबार समेटने पर विचार कर रही हैं। भारत समेत कई देशों में चीनी उत्पादों का बहिष्कार भी रहा है। एक जंग देश लड़ता है, और उसमें अपनी भागीदारी उस देश का हर नागरिक करता है। अपनी मैन्युफैक्चरिंग के बूते विस्तारवादी सपने को हवा देने वाले चीन की अकड़ उससे मुंहफेर कर दे सकते हैं।
चीनी उत्पादों से मोहभंग की वजहें
सीमा विवाद: चीन का तकरीबन हर पड़ोसी देश से सीमा विवाद रह चुका है। उसकी इसी हरकत से कई देशों में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मांग की जा रही है। सस्ते उत्पाद ने खत्म किए बाजार: 1949 में चीन की कमान कम्युनिस्टों के हाथ आते ही लोगों की जरूरत के अनुरूप उत्पाद बनाने को कहा गया। ऐसे में मैन्युफैक्चरिंग को
बढ़ावा देते हुए सस्ते उत्पादों का ढेर अन्य देशों में भी लगा दिया गया।
घटिया माल की मैन्युफैक्चरिंग:
चीन में इकाइयां निवेश की कमी से जूझ रही हैं। ऐसे में कम गुणवत्ता वाले कच्चे माल का निर्माण करने को मजबूर हैं। यही माल वह अन्य देशों को भी भेज रहा है।
भारत के कदम: घरेलू इकाइयों को चीनी उत्पादों से बचाने के लिए 1992 से लेकर अब तक देश ने करीब पौने दो सौ चीनी उत्पादों पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाई। मेड इन इंडिया अभियान को मजबूती देते हुए भारत भी आत्मनिर्भर होने की राह पर तेजी से दौड़ चला है। आयात की जाने वाली हर चीज के उत्पादन के लिए ही लोकल के लिए वोकल हो चुका है। चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान तेज है।
यहां भी बहिष्कार
फिलीपींस : दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों पर चीनी अतिक्रमण के चलते यहां चीनी माल का बहिष्कार करने के लिए अभियान चलाया गया।
वियतनाम :
चीन की बढ़ती मनमानी ने यहां चीनी उत्पादों के खिलाफ अभियान को हवा दी। मेड इन चाइना के बजाय मेड इन वियतनाम उत्पाद अपनाकर यहां लोगों ने राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया।
तिब्बत :
दलाईलामा ने चीनी उत्पादों के बहिष्कार का अभियान शुरू किया। वहां के लोगों ने भी चीनी उत्पादों को घटिया और असुरक्षित माना। अभियान का समर्थन किया।
ऑनलाइन ट्रेडिंग फर्म एडलवाइज की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सस्ते और कार्यकुशल श्रम और संसाधनों के प्रभावी इस्तेमाल की बदौलत चीन को मात देने में सक्षम है। हमें अपनी मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान देने की जरूरत है।
सस्ता श्रम
कभी चीन में कामकाजी आबादी की अधिकता थी। अब वह दौर खत्म हो चुका है। 2010 से सालाना 18 फीसद की दर से मजदूरी बढ़ी है। ऊपर से वह मजदूरों की बड़ी किल्लत से भी गुजर रहा है। भारत इसका फायदा उठाकर मैन्युफैक्र्चंरग में अपना वर्चस्व कायम कर सकता है।
पूंजीगत निवेश की बदौलत
मैन्युफैक्र्चंरग को बढ़ावा देने के लिए चीन में पहले निर्माता को सस्ती पूंजी उपलब्ध कराई जाती थी। अब यहां गैर-बैंकिंग कंपनियों का विस्तार हुआ है। यह अधिक दरों पर लोगों को पूंजी उपलब्ध करा रही हैं। इससे उद्योग लगाना महंगा हुआ है। भारत के लिए अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ाने का अवसर है।
परिवहन क्षेत्र
भारत वाहनों के मामले में दुनिया का छठा सबसे बड़ा बाजार बन चुका है। यहां ऑटो एसेसरीज का बाजार भी बढ़ रहा है। कार्यकुशल आबादी की उपलब्धता है। इसका फायदा उठाकर देश में इस क्षेत्र के लिए मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
रसायन
चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा बड़ा रसायन निर्माता है। हमारे पास अत्याधुनिक तकनीकें और बड़े स्तर पर रिफाइनिंग क्षमता मौजूद है। जेनरिक उत्पादों की जगह भारत के लिए खाली है।
इंजीनियरिंग उत्पाद
इंजीनिर्यंरग उत्पादों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी केवल 0.8 फीसद है पर चीन के बाद यह दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता बाजार है। भारत के पास कच्चे माल, कार्यकुशलता और सस्ते मजदूरों की उपलब्धता है। चीन में बढ़ती लागत से उत्पादों की कीमतें तेजी से बढ़ रही है। लिहाजा भारत के लिए बड़ा अवसर है।