Move to Jagran APP

आसान नहीं है चीन को खुद से दूर करना, भारत को तलाशनी होगी दूसरे देशों में कारोबारी संभावनाएं

चीन के साथ सीमा पर तनाव बढ़ने के बाद देश की जनभावना चीन के उत्‍पाद के खिलाफ सड़कों पर उतर रही है। लेकिन इस जनभावना के आधार पर कोई फैसला लेना सही नहीं होगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 28 Jun 2020 09:59 AM (IST)Updated: Sun, 28 Jun 2020 09:59 AM (IST)
आसान नहीं है चीन को खुद से दूर करना, भारत को तलाशनी होगी दूसरे देशों में कारोबारी संभावनाएं
आसान नहीं है चीन को खुद से दूर करना, भारत को तलाशनी होगी दूसरे देशों में कारोबारी संभावनाएं

अनुश्री पॉल। देश में वर्तमान बेलगाम भावनाओं के आधार पर किसी फैसले पर पहुंचने से पहले भारत में चीन के व्यापार की उपस्थिति पर ध्यान दें। प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, देश की 30 में से 18 यूनिकॉर्न कंपनियां चीन द्वारा वित्त पोषित हैं। अनुमान है कि चीनी तकनीकी निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप्स में करीब 4 अरब डॉलर का निवेश किया है। ऑटो सेक्टर में चीन की उपस्थिति अभी तक ठीक नहीं थी। हालांकि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के संभावित बदलाव ने उन्हेंं भारत में अपनी इलेक्ट्रिक बसों को आगे बढ़ाने का मौका दे दिया है। चीन पर भारत की व्यापार निर्भरता बेहद विशाल है।

loksabha election banner

विडंबना यह है कि चीन के विनिर्माण क्षेत्र को भारत कच्चा माल या सामग्री का निर्यात करता है, जबकि उच्च मूल्य की तैयार सामग्री का अधिक आयात करता है। चीन को किसी भी भावना में बहकर बाहर कर देना समझदारी भरा कदम नहीं होगा। वर्तमान में पूरा विश्व जब स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है, व्यापार और र्आिथक चर्चा फिलहाल पीछे चली गई है। इन परिस्थितियों में भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए चीन को बदलने के बारे में सोचना मुश्किल होगा। चीन ने उत्पादकता और रोजगार में वृद्धि के माध्मय से वैश्विक बाजार में अपना वर्चस्व बनाया है।

वर्तमान स्वास्थ्य संकट ने भारत की आम जनता की क्रय शक्ति को घटा दिया है, क्योंकि उनके पास अपेक्षाकृत उच्च कीमतों के साथ अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों को वहन करने के लिए हाथ में कम पैसा है। भारतीय कंपनियां चीन के सस्ते उत्पादों के विकल्प के लिए तैयार नहीं हैं। वे कब तक गुणवत्ता के आवश्यक स्तर को प्राप्त करेंगी, इसकी महामारी के बीच गणना करना मुश्किल है। चीन सर्मिथत छोटे और नए स्टार्टअप्स और एमएसएमई फंड की कमी से जूझ रहे हैं। महामारी के दौरान वैकल्पिक फंड जुटाने या महामारी के बाद की मंदी की स्थिति उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगी।

यह न केवल उनकी वृद्धि बल्कि उनकी निरंतरता पर भी गंभीर सवाल उठा सकता है। चीन को भारत से व्यापार बंद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि यह उसके अधिशेष को बुरी तरह से प्रभावित करेगा। इसके विपरीत, भारत के पास आज भी चीन को हटाने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा और वैकल्पिक निवेश की संभावनाएं नहीं हैं। स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे दो संकटों ने वैकल्पिक मूल्य श्रृंखला और चीन पर निर्भरता खत्म करने की आवश्यकता को जन्म दिया है।

घरेलू और निर्यातोन्मुखी प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में रणनीतिक और व्यवस्थित निवेश के लिए प्रभावी मांग और रोजगार पैदा करने के लिए तकनीक, बुनियादी ढांचे आदि की जरूरत है। इसके अलावा, एंटी-डंपिंग, काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी), सेफगार्ड ड्यूटी और नॉन टैरिफ उपायों जैसे उत्पत्ति के नियम, सैनिटरी और फाइटोसैनेटिक उपायों और व्यापार में तकनीकी बाधाओं को लगाना चीन के साथ व्यापार घाटे से निपटने के लिए अल्पावधि में सहायक होंगे। भारत के शीर्ष व्यापारिक देशों के साथ व्यापार समझौते नहीं हैं। ऐसे में मौजूदा व्यापार वार्ताओं पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है, जिससे उन देशों के साथ व्यापार को बेहतर किया जा सके। यह समय वैकल्पिक आर्पूित श्रृंखला को विकसित करने के लिए वार्ताओं के निर्माण/पुनर्निर्माण का है।

(ट्रेड इकोनॉमिस्ट एवं एसोसिएट प्रोफेसर, बीएमएल मुंजाल विश्वविद्यालय, हरियाणा)

ये भी पढ़ें:- 

देखें आखिर क्‍यों और कैसे व्‍यापार के क्षेत्र में चीन से पिछड़ता चला गया भारत

Type-1 Diabetes मरीज दें ध्‍यान, इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है Covid-19

ट्रंप ने चुनाव को लेकर चला है जो दांव, भारतीय प्रोफेशनल्‍स के लिए है नुकसानदेह


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.