Move to Jagran APP

सऊदी अरब की अनदेखी पर भारत की 'देख लेंगे' वाली रणनीति, जानिए क्या है तेल का खेल

भारत अपनी जरूरत का 85 फीसद पेट्रोलियम आयात करता है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर आपूर्ति और कीमतों से यहां बड़ा फर्क पड़ता है। कोरोना काल में मांग घटने और कीमतें बहुत नीचे पहुंचने के बाद तेल उत्पादक देशों ने उत्पादन में कटौती का फैसला किया था।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 02 Apr 2021 07:00 PM (IST)Updated: Fri, 02 Apr 2021 08:42 PM (IST)
सऊदी अरब की अनदेखी पर भारत की 'देख लेंगे' वाली रणनीति, जानिए क्या है तेल का खेल
रिफाइनरियों को खरीद अनुबंधों की समीक्षा करने का निर्देश

नई दिल्ली, प्रेट्र। तेल उत्पादन कटौती मामले में भारत के आग्रह की अनदेखी सऊदी अरब को भारी पड़ती दिख रही है। केंद्र ने सभी सरकारी रिफाइनरियों को सऊदी के साथ कच्चे तेल की खरीद से जुड़े अनुबंधों की समीक्षा करने को कहा है। साथ ही कंपनियों को बेहतर शर्तो पर सौदा तय करने का निर्देश दिया गया है।

loksabha election banner

कीमतें और अनुबंध की शर्ते तय करने के मामले में उत्पादक देशों की गुटबाजी तोड़ने के लिए सरकार ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन को अन्य क्षेत्रों में तेल खरीद की संभावना पर कदम बढ़ाने को कहा है। साथ ही उनसे एकजुट होकर अपनी शर्तो पर आपूर्तिकर्ताओं से बात करने को कहा गया है।

जो सस्ता देगा, उससे तेल खरीदने की दो टूक बात कह चुके हैं केंद्रीय मंत्री प्रधान

भारत अपनी जरूरत का 85 फीसद पेट्रोलियम आयात करता है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर आपूर्ति और कीमतों से यहां बड़ा फर्क पड़ता है। कोरोना काल में मांग घटने और कीमतें बहुत नीचे पहुंचने के बाद तेल उत्पादक देशों ने उत्पादन में कटौती का फैसला किया था। मांग सामान्य होने के बाद भी कटौती जारी रहने से कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू हो गया। पिछले महीने भारत ने सऊदी अरब से आग्रह किया था कि उत्पादन में कटौती पर पुनर्विचार करे और उत्पादन बढ़ाए। इससे कीमतों को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी। सऊदी ने भारत के इस आग्रह की अनदेखी कर दी। यहां तक कि उसके मंत्री ने भारत को अपने रिजर्व से तेल इस्तेमाल की सलाह दे दी। इस पर केंद्रीय मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने दो टूक शब्दों में कहा था कि भारत की इस बारे में अपनी रणनीति है कि अपने भंडार का इस्तेमाल कब और कैसे करना है। उस समय प्रधान ने यह कहते हुए भी सऊदी को सख्त संदेश दिया था कि भारत अपने हितों को लेकर सतर्क है। जो सस्ता और बेहतर शर्तो पर तेल देगा, भारत उसी से खरीदेगा।

शर्ते थोपते हैं आपूर्तिकर्ता देश

मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सऊदी और अन्य ओपेक देश भारत के प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहे हैं, लेकिन उनकी शर्ते अक्सर खरीदार के पक्ष में नहीं रहती हैं। उदाहरण के तौर पर भारतीय कंपनियां दो तिहाई तेल फिक्स्ड एनुअल कांट्रैक्ट पर खरीदती हैं। खरीदार के लिए अनुबंध में तय मात्रा खरीदनी अनिवार्य होती है, जबकि सऊदी व अन्य आपूर्तिकर्ता कीमतें नियंत्रित करने के नाम पर उत्पादन कटौती होने पर आपूर्ति घटा सकते हैं। आखिर खरीदार को ओपेक के फैसलों की कीमत क्यों चुकानी चाहिए? इसी तरह खरीदार कंपनी पर अनुबंध के तहत कई अन्य एकतरफा शर्ते भी थोपी जाती हैं। ऐसे में तेल खरीद के लिए अन्य विकल्पों की ओर कदम बढ़ाना निश्चित तौर पर कंपनियों के लिए फायदेमंद होगा।

सऊदी से आगे निकला अमेरिका

शर्तो में मनमानी के चलते सऊदी का विकल्प तलाशने की भारत की कोशिश काफी समय से चल रही है और अब इसकी गवाही आंकड़े भी दे रहे हैं। फरवरी में अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। अमेरिका से रिकॉर्ड 545,300 बैरल प्रतिदिन क्रूड खरीदा। वहीं, दूसरे नंबर पर चल रहा सऊदी अरब चौथे स्थान पर खिसक गया है। सऊदी से तेल आयात 42 फीसद गिरकर 4,45,200 बैरल प्रतिदिन पर आ गया। भारत के लिए इराक क्रूड का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। इराक से 8,67,500 बैरल प्रतिदिन की खरीद हुई। नाइजीरिया ने पांचवें से तीसरे स्थान की छलांग लगाई है और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) तीसरे से पांचवें स्थान पर पहुंच गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.