नेपाल ने भारत पर फिर लगाया आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप का आरोप
भारत और नेपाल के रिश्ते एक बार फिर से दांव पर लगे हैं। नेपाल में हो रहे राजनीतिक घमासान का खामियाजा इन रिश्तों पर भी पड़ रहा हैै।
नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। लगभग चार हफ्ते की शांति के बाद भारत और नेपाल के रिश्ते फिर से इम्तहान के दौर से गुजरने रहे हैं। नेपाल के भीतर राजनीतिक अहमियत स्थापित करने को लेकर जिस तरह से वहां सत्तारुढ़ सरकार के भीतर घमासान मचा हुआ है उसका भारत के साथ रिश्तों में तनाव की आशंका बढ़ गई है। पीएम केपी शर्मा ओली ने भारत स्थित अपने राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को जिस आरोप में वापस बुलाया है उसके जरिए उन्होंने भारत पर नेपाल के आतंरिक मामले में हस्तक्षेप करने का परोक्ष आरोप लगाया है। साथ ही वामपंथी दलों की तरफ से संविधान संशोधन के मसले को नए सिरे से भड़काने की भी कोशिश की जा रही है।
भारत नेपाल में तेजी से बिगड़ते हालात से काफी चिंतित है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक जब भी पड़ोसी देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है तो वहां भारत विरोध को भी जोरों से हवा दी जाती है। ऐसा पहले भी हुआ है और नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को वापस बुलाना भी इसी का हिस्सा है। यह भी कोई अकारण नहीं है कि यूसीपीएन-माओवादी ने संविधान संशोधन को फिर से मुद्दा बनाने की कोशिश की है। यह मुद्दा पहले ही भारत और नेपाल के रिश्तों की काफी परीक्षा ले चुका है। तीन-चार महीने की कूटनीतिक कोशिशों के बाद रिश्तों को पटरी पर लाया जा सका है। लेकिन यूसीपीएन-माओवादी संविधान में उन बदलावों का विरोध कर रहा है जिसका भारत समर्थन कर रहा है और जिसे भारत सरकार वहां स्थाई शांति के लिए जरूरी बता रही है।
भारत के लिए इसलिए भी यह चिंता की बात है कि पीएम केपी शर्मा ओली और यूसीपीएन (माओवादी) के नेता पुष्पकमल दाहाल प्रचंड दोनों भारत विरोधी छवि के लिए जाने जाते हैं। संविधान संशोधन पर जब मधेशी आंदोलन शुरु हुआ तो ओली ने भारत से पहले चीन जाने की धमकी दी थी और कहा था कि वह चीन से आवश्यक सामग्री हासिल करने की कोशिश करेंगे। इसी तरह से पूर्व पीएम प्रचंड हमेशा से भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए जाने जाते हैं। अभी हालात यह है कि अगर ओली पीएम पद से हटाये जाते हैं तो उनकी जगह प्रचंड पीएम बन सकते हैं। वैसे ओली के समर्थकों का यह कहना है कि प्रचंड भारत के समर्थन से ही सरकार बनाने में लगे हुए हैं। जिसको विदेश मंत्रालय के अधिकारी खारिज करते हैं। भारत के लिए ओली और प्रचंड में बहुत अंतर नहीं है। ऐसे में नेपाल को लेकर भारत की चिंता फिलहाल खत्म होती नहीं दिख रही।