मेघालय हाई कोर्ट की टिप्पणीः भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, लेकिन यह धर्मनिरपेक्ष रहा
कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह सभी नागरिकों के यूनीफार्म कानून बनाए और उसके पालन की सब पर बाध्यता हो।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। मेघालय हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में हिंदुस्तान के इतिहास और विभाजन तथा उस दौरान सिखों, हिंदुओं आदि पर हुए अत्याचारों का हवाला देते हुए कहा है कि पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक देश घोषित किया, जबकि भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था उसे भी हिंदू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, लेकिन वह धर्मनिरपेक्ष बना रहा। कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसी को भी भारत को दूसरा इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, अन्यथा वह दिन भारत और दुनिया के लिए प्रलयकारी होगा।
मेघालय हाई कोर्ट की टिप्पणी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताते हुए कोर्ट ने कहा है कि उन्हें विश्वास है कि यह सरकार मामले की गंभीरता को समझेगी और आवश्यक कदम उठाएगी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए पूरा सहयोग देंगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह कानून बनाए जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो समुदाय को बिना किसी सवाल और दस्तावेज के भारत की नागरिकता दी जाए।
भारतीय कानून और संविधान का विरोध करने वाले देश के नागरिक नहीं माने जा सकते
बांग्लादेश से आए बंगाली हिंदुओं और पाकिस्तान विभाजन के समय सिख और हिंदुओं के साथ अत्याचारों की पीड़ा को साझा करते हुए यह फैसला न्यायमूर्ति एसआर सेन ने अमोन राणा की स्थानीय निवास प्रमाणपत्र से संबंधित याचिका का निपटारा करते हुए गत सोमवार को दिया।
फैसले में भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताते हुए कहा गया है कि यह हिंदू राज का देश था। बाद में मुगल आए फिर अंग्रेज आए। 1947 में भारत आजाद हुआ। भारत दो राष्ट्र में विभाजित हो गया। पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक राष्ट्र घोषित किया और भारत जिसका विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, उसे भी हिंदू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, लेकिन वह धर्मनिरपेक्ष देश रहा।
आज भी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंतिया और गारो पर अत्याचार होता है। उनके पास कोई जगह नहीं है, जहां वे चले जाएं। बंगाली हिंदू इस देश के निवासी हैं। उनके अधिकारों को नकार कर हम उनके साथ अन्याय कर रहे हैं। फैसले में असम एनआरसी प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि उसमें बहुत से विदेशी भारतीय बन गए हैं और मूल भारतीय छूट गए हैं जो कि दुखद है।
कानून लोगों के लिए होता है न कि लोग कानून के लिए। कोर्ट ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, कानून मंत्री और सांसदों से ऐसा कानून बनाने का अनुरोध किया है जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसीई, खासी, जयंतिया और गारो को सम्मान से शांति पूर्वक भारत में रहने की इजाजत हो। उनके लिए कोई कट आफ डेट न हो उन्हें बिना किसी सवाल और दस्तावेज के नागरिकता दी जाए। यही सिद्दांत विदेशों से आने वाले भारतीय मूल के हिंदू और सिखों के लिए भी अपनाया जाए।
हालांकि कोर्ट ने कहा है कि वह भारत में पीढि़यों से रह रहे और यहां के कानून का पालन कर रहे मुसलमान भाई बहनों के खिलाफ नहीं है, उन्हें भी शांतिपूर्वक रहने की इजाजत होनी चाहिए।
सभी के लिए यूनीफार्म कानून बने
कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह सभी नागरिकों के यूनीफार्म कानून बनाए और उसके पालन की सब पर बाध्यता हो। जो भी भारतीय कानून और संविधान की खिलाफत करता है उसे देश का नागरिक नहीं माना जा सकता। याद रखना चाहिए कि पहले हम भारतीय हैं उसके बाद अच्छे इन्सान हैं और फिर उस समुदाय का नंबर आता है जिससे हम संबंध रखते हैं। कोर्ट ने कहा कि वह उम्मीद करता है कि सरकार ऐसे वंचित लोगों के हितों को संरक्षित करने के लिए उचित फैसला लेगी। कोर्ट ने फैसले की कापी प्रधानमंत्री, गृहमंत्री कानून मंत्री और राज्यपाल को भेजने का आदेश दिया है।