रूस के सुदूर पूर्व में भी चीन को टक्कर देगा भारत, ऊर्जा समेत विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की योजना बना रही मोदी सरकार
रूस के संघीय जिलों में सुदूर पूर्वी संघीय जिला सबसे बड़ा है। यह क्षेत्र देश के संसाधनों का भंडार है जिनमें तेल प्राकृतिक गैस सोना हीरा कोयला लकड़ी और मत्स्य शामिल हैं। इसके बावजूद यहां की जनसंख्या सिर्फ 60 लाख है और रूस का सबसे कम आबादी वाला क्षेत्र है।
नई दिल्ली, आइएएनएस। भारत-चीन की प्रतिद्वंद्विता ने अब रूस के सुदूर पूर्व में भी प्रवेश कर लिया है जहां मोदी सरकार ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में उल्लेखनीय निवेश करने की योजना बना रही है। चीन इस क्षेत्र में शीर्ष निवेशक है, लेकिन चीन के एकाधिकार का विरोध करने वाले रूसी इस क्षेत्र में भारत के प्रवेश का स्वागत कर रहे हैं।
मास्को की हाल की यात्रा के दौरान विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने रूस के सुदूर पूर्व में भारत की गहरी दिलचस्पी को दोहराया था। दरअसल, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस क्षेत्र के विकास में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। रूसी राजनयिक अकादमी को संबोधित करते हुए उनका कहना था, 'हम इसे काफी ज्यादा संभावना वाले क्षेत्र के तौर पर देखते हैं जहां हम नए क्षेत्रों का विकास कर सकते हैं और नए क्षेत्रों में निवेश की इच्छुक कंपनियों की मदद कर सकते हैं। इन क्षेत्रों में कोकिंग कोल, लकड़ी और तरल प्राकृतिक गैस शामिल हैं।'
रूस के संघीय जिलों में सुदूर पूर्वी संघीय जिला सबसे बड़ा है। यह क्षेत्र देश के संसाधनों का भंडार है जिनमें तेल, प्राकृतिक गैस, सोना, हीरा, कोयला, लकड़ी और मत्स्य शामिल हैं। इसके बावजूद यहां की जनसंख्या सिर्फ 60 लाख है और सुदूर पूर्व रूस का सबसे कम आबादी वाला क्षेत्र है।
भारत की सुदूर पूर्व की यह कहानी दो साल पहले शुरू हुई थी। 2019 में सुदूर पूर्व के बंदरगाह शहर व्लादिवोस्तोक की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिए एक अरब डालर का कर्ज उपलब्ध कराएगा। उन्होंने व्लादिवोस्तोक और चेन्नई के बीच सीधा समुद्री कारिडोर बनाने के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर भी किए थे। यूरोपीय समुद्री मार्ग से लगने वाले 40 दिनों के विपरीत इस मार्ग से सिर्फ 24 दिनों का समय लगेगा।
दरअसल, पिछले कई वर्षों में चीन सुदूर पूर्व का प्राथमिक विदेशी निवेशक और कारोबारी साझीदार बनकर उभरा है। 2019 में क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 70 फीसद से अधिक और विदेशी व्यापार का 28.2 फीसद चीन का था। चीन के इस प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए ही भारत सुदूर पूर्व के इस मैदान में संपन्न जापान को लाने का इच्छुक है। पिछले महीने सुदूर पूर्व की परियोजनाओं को लेकर भारत, जापान और रूस के प्रतिनिधियों ने अपनी पहली ट्रैक-2 वार्ता की है। तीनों देशों ने त्रिपक्षीय साझेदारी के लिए ऊर्जा, कोयला, खनन, हीरा प्रसंस्करण, वानिकी, कृषि उद्योग, परिवहन और दवा क्षेत्र की पहचान की है। रूस के सुदूर पूर्व संघीय विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर अर्टियोम ल्यूकिन कहते हैं, 'हर कोई इस बात को समझता है कि एकाधिकारी खरीददार के तौर पर चीन पर भरोसा करना बेहद खतरनाक है। यही पर रूस और भारत के हित मिलते हैं। यहां भारत के समक्ष सभी तरह की महत्वपूर्ण आयातित वस्तुओं पर चीन का विकल्प बनने का वास्तविक अवसर है।'