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अधर में लटका भारत का महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2

बेंगलूर। पहले से ही देरी का शिकार भारत का महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 अधर में लटक सकता है। भारत और रूस की अपनी-अपनी तकनीकी दिक्कतों के चलते इस अभियान में काफी देर होने की आशंका पैदा हो गई है। रूस जहां इस मिशन के लिए लैंडर (ग्रह की सतह पर उतर कर परीक्षण करने वाला अंतरिक्ष यान) मुहैया कराने में लंबी देर

By Edited By: Published: Thu, 01 Aug 2013 08:09 PM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2013 08:12 PM (IST)
अधर में लटका भारत का महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2

बेंगलूर। पहले से ही देरी का शिकार भारत का महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 अधर में लटक सकता है। भारत और रूस की अपनी-अपनी तकनीकी दिक्कतों के चलते इस अभियान में काफी देर होने की आशंका पैदा हो गई है। रूस जहां इस मिशन के लिए लैंडर (ग्रह की सतह पर उतर कर परीक्षण करने वाला अंतरिक्ष यान) मुहैया कराने में लंबी देरी कर रहा है, वहीं चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के लिए देसी रॉकेट भी अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के राधाकृष्णन के अनुसार, 'हम नहीं कह सकते कि चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण में कितना वक्त लग सकता है। क्योंकि लैंडर की उपलब्धता को लेकर संशय बना हुआ है। रूस से यह कब मिलेगा, कुछ पता नहीं।' भारत-रूस का साझा अभियान चंद्रयान-2 दरअसल चंद्रयान-1 का ही विस्तार है। इसके तहत चंद्रयान-1 द्वारा रिमोट सेंसिंग के जरिये भेजी गई सूचनाओं का लैंडर रोवर के माध्यम से चंद्रमा की सतह पर उतर कर भौतिक परीक्षण किया जाना है। इस अभियान के लिए इसरो ने रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस से नवंबर 2007 में करार किया था। उस समय तय हुआ था कि इस अभियान के लिए इसरो का जिम्मा ऑरबिटर (ग्रह की सतह पर उतरे बगैर उसकी परिक्रमा करने वाला अंतरिक्ष यान) मुहैया कराने का था। जबकि अभियान के लिए लैंडर उपलब्ध कराना रूस के जिम्मे था। इस अभियान का प्रक्षेपण जीएसएलवी के जरिये 2011-12 वित्तीय वर्ष में होना तय था। 2008 में भारत ने चंद्रयान-1 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था। उसी समय चंद्रमा के बारे में विस्तृत अध्ययन के लिए मिशन चंद्रयान-2 संचालित करने का फैसला किया गया था।

राधाकृष्णन के मुताबिक, 'मंगल के एक चंद्रमा को लेकर अपने अभियान की असफलता के बाद रूस ने चंद्रयान-2 से अपने कदम पीछे खींच लिया। उसने मई 2012 में हमें बताया कि अभियान के लिए लैंडर विकसित करने में उसे अब काफी समय लगेगा। वह अभियान के लिए लैंडर का प्रायोगिक परीक्षण 2015 में करेगा। फिर उसका इस्तेमाल 2017 में अपने एक मिशन के लिए करेगा। इसके बाद ही चंद्रयान-2 का नंबर आ सकता है। इसकी कोई तय समयसीमा नहीं है।' इसी प्रकार देसी प्रक्षेपण वाहन जीएसएलवी को लेकर भी अभी संशय बना हुआ है। इसरो के अधिकारियों का कहना है कि चंद्रयान-2 पर जाने से पहले जीएसएलवी का दो बार सफल परीक्षण जरूरी है। ध्यान रहे कि देसी और रूसी क्रायोजेनिक इंजन से इस यान का परीक्षण 2010 में दो बार असफल रहा।

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