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भारत की ‘रक्षा रफ्तार’ को दुनिया करेगी ‘नमस्कार’, हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में बड़ी छलांग

Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle यूस रूस व चीन के बाद अपने दम पर हाइपरसोनिक तकनीक विकसित करके भारत ने आधुनिक रक्षा प्रणाली के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 08 Sep 2020 09:21 AM (IST)Updated: Tue, 08 Sep 2020 12:47 PM (IST)
भारत की ‘रक्षा रफ्तार’ को दुनिया करेगी ‘नमस्कार’, हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में बड़ी छलांग
भारत की ‘रक्षा रफ्तार’ को दुनिया करेगी ‘नमस्कार’, हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में बड़ी छलांग

नई दिल्‍ली, जेएनएन। Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमन्स्ट्रेटर व्हीकल के सफल परीक्षण ने भारतीय रक्षा प्रणाली को ऐसी रफ्तार प्रदान की है, जिसकी बराबरी दुनिया के महज तीन देश कर सकते हैं। अमेरिका, रूस व चीन के बाद अपने दम पर हाइपरसोनिक तकनीक विकसित करके भारत ने आधुनिक रक्षा प्रणाली के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई है।

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क्या है एचएसटीडीवी? : हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमन्स्ट्रेटर व्हीकल (एचएसटीडीवी) स्क्रैमजेट एयरक्राफ्ट या इंजन है, जो अपने साथ लॉन्ग रेंज व हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों को ले जा सकता है। इसकी रफ्तार ध्वनि से छह गुना ज्यादा है। यानी, यह दुनिया के किसी भी कोने में स्थित दुश्मन के ठिकाने को महज कुछ ही देर में निशाना बना सकता है। इसकी रफ्तार इतनी तेज है कि दुश्मन को इसे इंटरसेप्ट करने और कार्रवाई का मौका भी नहीं मिलता। एचएसटीडीवी के सफल परीक्षण से भारत को उन्नत तकनीक वाली हाइपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस-2 की तैयारी में मदद मिलेगी। इसका विकास रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) तथा रूस की अंतरिक्ष एजेंसी कर रही है।

क्यों है खास? : सामान्य मिसाइलें बैलिस्टिक ट्रैजेक्टरी तकनीक पर आधारित होती हैं। यानी, उनके रास्ते को आसानी से ट्रैक करने के साथ-साथ काउंटर अटैक की तैयारी भी की जा सकती है। इसके विपरीत हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली के रास्ते का पता लगाना नामुमकिन है। फिलहाल ऐसी कोई तकनीक नहीं है, जिनसे इन मिसाइलों का पता लगाया जा सके। हालांकि, कई देश एनर्जी वीपंस, पार्टिकल बीम्स व नॉन-काइनेटिक वीपंस के जरिये इनका पता लगाने व उन्हें नष्ट करने की क्षमता हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

बैलिस्टिक व क्रूज मिसाइलें : बैलिस्टिक मिसाइलें काफी बड़ी होती हैं। वे भारी बम को ले जाने में सक्षम होती हैं। इन मिसाइलों को छिपाया नहीं जा सकता, इसलिए उन्हें छोड़े जाने से पहले दुश्मन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। वहीं, क्रूज मिसाइलें छोटी होती हैं और उनपर ले जानेवाले बम का वजन भी कम ही होता है। उन्हें छिपाया जा सकता है। इनका प्रक्षेप पथ भी भिन्न होता है। बैलिस्टिक मिसाइल उर्ध्वाकार मार्ग से लक्ष्य की ओर बढ़ती है, जबकि क्रूज मिसाइल धरती के समानांतर अपना मार्ग चुनती है। छोड़े जाने के बाद बैलिस्टिक मिसाइल के लक्ष्य पर नियंत्रण नहीं रहता, जबकि क्रूज मिसाइल का निशाना सटीक होता है। भारत ने रूस के सहयोग से ब्रह्मोस नामक क्रूज मिसाइल तैयार की है। पाकिस्तान स्वदेशी तकनीक से बाबर नामक मिसाइल बनाने का दावा करता है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि वह चीनी क्रूज मिसाइल पर आधारित है।

क्या है स्क्रैमजेट इंजन? : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 28 अगस्त, 2016 को स्क्रैमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया था। इसे सुपरसोनिक कम्ब्यूशन रैमजेट इंजन के नाम से भी जाना जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका वजन कम होता है, जिसकी वजह से अंतरिक्ष खर्च में भी कमी आएगी। एयर ब्रीदिंग तकनीक पर काम करने वाले इस एयरक्राफ्ट से अधिक पेलोड भेजा जा सकेगा तथा इसका दोबारा इस्तेमाल भी किया जा सकेगा। यह अत्यधिक उच्च दबाव व उच्च तापमान में भी काम कर सकता है।

सबसोनिक, सुपरसोनिक व हाइपरसोनिक में अंतर : ब्रिटेन निवासी रक्षा एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक जेम्स बॉशबोटिंस के अनुसार, सबसोनिक मिसाइलों की रफ्तार ध्वनि से कम होती है। इसकी गति 705 मील (1,134 किमी) प्रति घंटे तक होती है। इस श्रेणी में अमेरिका की टॉमहॉक, फ्रांस की एक्सोसेट व भारत की निर्भय मिसाइल आती हैं। ये मिसाइलें सस्ती होने के साथ-साथ आकार में छोटी और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होती हैं।

सुपरसोनिक मिसाइलों की गति ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना (मैक-3) तक होती है। अधिकतर सुपरसोनिक मिसाइलों की गति 2,300 मील (करीब 3,701 किमी) प्रति घंटे तक होती है। इस श्रेणी की सबसे प्रचलित मिसाइल ब्रह्मोस है, जिसकी रफ्तार 2,100-2,300 मील (करीब 3389 से 3,701 किमी) प्रति घंटे है।सुपरसोनिक मिसाइलों के लिए रैमजेट इंजन का प्रयोग किया जाता है। हाइपरसोनिक मिसाइल की गति 3,800 मील प्रति घंटे से भी अधिक होती है। यानी, इनकी रफ्तार ध्वनि की गति से पांच गुना ज्यादा होती है और इनके लिए स्क्रैमजेट यानी मैक-6 स्तर के इंजन का प्रयोग किया जाता है।


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