भारत के पास है मौका, सर्विस सेक्टर के अलावा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी दे सकते हैं चीन को मात
भारत के पास ये मौका है जिसमें वो चीन को सर्विस सेक्टर के अलावा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी पछाड़ सकता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। समय चक्र परिवर्तनशील है। जो आज धूल-धूसरित है, वही कल पुष्प से सुवासित है।कोविड-19 महामारी ने दुनिया के विकास को एक स्प्रिंग की मानिंद दबा रखा है। जैसे ही इसका प्रकोप शांत होगा और दुनिया में रोजमर्रा के कामकाज पटरी पर आएंगे, दबी स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा जेट की गतिज ऊर्जा में तब्दील होगी और हर कोई अपने कौशल और रणनीति के मुकाबले दुनिया के आर्थिक परिदृश्य में अपना मुकाम तय करने को आगे बढ़ेगा। आर्थिक विशेषज्ञों और रणनीतिकारों के साथ हालात भी बता रहे हैं कि आने वाले दिनों में सेवा क्षेत्र के सिरमौर भारत और मैन्युफैक्चरिंग के महारथी चीन के बीच पहले को बढ़त मिलती दिख रही है।
यह बढ़त सोच से लेकर सच तक है। सामान्य सोच कहती है कि कोरोना महामारी के जन्मदाता की पहचान के बाद दुनिया में चीन की छवि खराब हुई है। तमाम कंपनियां वहां से अपना डेरा हटाने की तरफ बढ़ रही हैं। चीन की मैन्युफैक्चरिंग से तैयार उत्पादों के प्रति दुनिया में अघोषित अन्यमनस्कता से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस अवसर का अगर आंशिक लाभ भी भारत को मिलता है तो ये हमें गुणात्मक रूप से आगे ले जाने में काफी होगा। यह सच यह है कि चीन का मैन्युफैक्चरिंग में दबदबा है। इस कार्य-प्रणाली में श्रमिकों को कार्यस्थल तक जाने की अनिवार्यता होती है। चूंकि कोरोना की रह-रहकर चरणों में वापसी की बात कही जा रही है, तो ऐसे में मैन्युफैक्चरिंग कार्यस्थलों में शारीरिक दूरी का पालन अनिवार्य होगा।
लिहाजा औनी-पौनी क्षमता में ही श्रमिक काम करेंगे जिसका प्रतिकूल असर उत्पादन में दिखेगा। सेवा क्षेत्र कारोबार की यह ऐसी विधा है जिसे पूरी क्षमता के साथ कार्यस्थल से इतर सुरक्षित स्थानों से भी अंजाम दिया जा सकता है। यानी भारत का सेवा क्षेत्र तो पूरी क्षमता से काम करेगा, लेकिन चीन का मैन्युफैक्चरिंग ऐसा नहीं कर पाएगा। मेक इन इंडिया को मजबूत करने के तहत विदेशी कंपनियों को लुभाने वाले भारत के हालिया प्रयास और चीन से विदेशी कंपनियों के होते मोहभंग वाले दोहरे असर के साथ सेवा क्षेत्र के अलावा मैन्युफैक्चरिंग में भी हम पड़ोसी देश को मात दे सकते हैं। ऐसे में कोरोना काल के बाद दुनिया के आर्थिक परिदृश्य में भारत-चीन के दबदबे की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
चीन का विनिर्माण, भारत की सेवा चीन निर्मित वस्तुओं का बड़ा निर्यातक है। वहीं भारत ने सेवा प्रदाता क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी के रूप में वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल की है। एशिया की दो बड़ी शक्तियांं लगातार आगे बढ़ रही हैं, लेकिन दोनों के रास्ते जुदा हैं।
भारत की राह भारत के विकास में विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र का योगदान अधिक है। विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र के अपेक्षाकृत बड़े आकार को देखते हुए, भारत का विकास ढांचा अमेरिका से मिलता जुलता है। विकासशील देशों के लिए तेज गति से आर्थिक विकास का मार्ग औद्योगिकीकरण को माना गया। हालांकि अब परिस्थितियां बदल गई हैं। नई औद्योगिक क्रांति ने विकासशील और विकसित देशों में विकास मानकों को बदल दिया है। इन तकनीकी परिवर्तनों ने सेवाओं को विकास का नया चालक बनने में सक्षम बनाया है।
जीडीपी में बड़ी हिस्सेदारी
डिजिटल क्रांति लेनदेन की लागत को कम करती है, उत्पादकता बढ़ाती है और साथ ही इसे और अधिक समावेशी बना सकती है। भारत की जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान करीब 60 फीसद है। वहीं चीन में जीडीपी का करीब एक तिहाई हिस्सा सेवा क्षेत्र से आता है। यह दोनों के बीच का अंतर बताने के लिए काफी है।
चीन विनिर्माण में आगे पिछले करीब एक दशक में चीन का विनिर्माण उद्योग उत्पादन 300 फीसद बढ़ा है। जीडीपी में 40 फीसद का सर्वाधिक योगदान विनिर्माण क्षेत्र का है। इसके बाद सेवा क्षेत्र आता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से चीन के विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट आ रही है।
सुपर पावर
(2018 के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक विनिर्माण में हिस्सेदारी)
चीन - 28.4
अमेरिका - 16.6
जापान - 7.2
जर्मनी - 5.8
द.कोरिया - 3.3
भारत - 3.3
(स्नोत: संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय प्रभाग)
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