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जानें, ब्रिटेन से 27 वर्ष पुराने संधि के बावजूद भारत के हाथ क्‍यों नहीं आ रहे माल्या-नीरव

भगोड़े अपराधियों में क्‍या है गंभीर आरोप। इसके साथ यह भी जानेंगे कि आखिर वो कौन से प्रावधान है, जो इन भगोड़ो के लिए कवच का काम करते हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 12:52 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 02:05 PM (IST)
जानें, ब्रिटेन से 27 वर्ष पुराने संधि के बावजूद भारत के हाथ क्‍यों नहीं आ रहे माल्या-नीरव
जानें, ब्रिटेन से 27 वर्ष पुराने संधि के बावजूद भारत के हाथ क्‍यों नहीं आ रहे माल्या-नीरव

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत और ब्रिटेन के बीच 27 साल पहले प्रत्‍यर्पण संधि हुई थी। इस संधि का सीधा मतलब यह हुआ कि अगर कोई अपराधी भारत से भागकर ब्रिटेन चला जाए तो ब्रिटेन उसे भारत को सौंप देगा। यह संधि आज भी जस की तस है, इसके बावजूद भारत के कई अपराधी ब्रिटेन में शरण लिए हुए हैं। खासकर इन दिनों ललित मोदी, नीरव मोदी और विजय माल्‍या को लेकर राजनीतिक दलों के बीच खूब सियासत हुई।

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पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्‍यारोप का लंबा दौर चला। भारत सरकार इन भगोड़ों को वापस लाने में अब तक कामयाब नहीं हो पायी है। आइए जानते हैं कि आखिर ब्रिटेन में कितने अपराधियों ने शरण ले रखी है। उन भगोड़े अपराधियों पर क्‍या हैं आरोप? इसके साथ यह भी जानेंगे कि आखिर वो कौन से प्रावधान हैं, जो इन भगोड़ों के लिए कवच का काम करते हैं। 

इन अपराधियों को भारत लाने में असहाय हुआ
विजय माल्‍या और ललित मोदी पर वित्‍तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप है। कई हजार करोड़ का घपला कर ये दोनों ब्रिटेन में शरण लिए हुए हैं। रविशंकरन पर भी गंभीर आरोप हैं। उस पर भारतीय नौसेना के कागजों के लीक का मामला है। टाइगर हनीफ 1993 में गुजरात विस्‍फोट मामले का वांछित है। नदीम सैफी पर गुलशन कुमार हत्‍याकांड का आरोप लगा, हालांकि बाद में वह बरी हुए। रेमंड वर्ली ने ब्रिटेन की नागरिता तक ले ली है, उस पर गोवा में बाल दुर्व्यवहार का मामला है।

16 प्रत्यर्पण अनुरोध के मामले लंबित पड़े
गुजरात दंगों के मामले में समीर भाई वीनू भाई पटेल को 18 अक्टूबर 2016 को ब्रिटेन से भारत लाया गया था। लोकसभा में एक सवाल के जबाव में केंद्र सरकार ने यह बात स्‍वीकार की थी कि पिछले तीन वर्षों में मात्र एक भगोड़े अपराधी को ब्रिटेन से प्रत्‍यर्पित किया गया है। ब्रिटेन सरकार के पास भारत के 16 प्रत्यर्पण अनुरोध के मामले लंबित पड़े हैं। भारत, ब्रिटेन में बस चुके कुछ भारतीयों को वापस लाने की कोशिश में है, जिसमें प्रमुख रूप से ललित मोदी, नीरव मोदी और विजय माल्या भी शामिल हैं।

ब्रिटेन की शरण में अन्‍य अपराधी
रेमंड एंड्रू वर्ली, रवि शंकरन, अजय प्रसाद खेतान, वीरेंद्र कुमार रस्‍तोगी, आनंद कुमार जैन, वेलु उर्फ बूपालन उर्फ दिलीपन उर्फ निरंजन, जेके अंगुराला, आशा रानी अंगुराला, जकूला श्रीनिवास नामक भगोड़ों के मामले में ब्रिटेन सरकार ने भारत के प्रत्‍यर्पण प्रस्‍तावों को अ‍स्‍वीकार कर दिया था। ब्रिटेन की अदालत ने प्रत्यर्पण के लिए अपर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर ऋषिकेश सुरेंद्र कारडिले, पैट्रिक चार्ल्स बॉवेरिंग और कार्तिक वेनु गोपाल नामक भगोड़ों के बारे में गिरफ्तारी वारंट जारी करने से तक इन्कार कर दिया था।

क्‍या है यूरोपीय संघ के अनुच्छेद 8 का प्रावधान
ब्रिटिश अदालतें आमतौर पर राजनीतिक कारणों के आधार पर या उन देशों से प्रत्यर्पण के अनुरोधों से इन्कार करती हैं, जहां किसी व्यक्ति को यातना या मौत की सजा का सामना करना पड़ता है। कई मामलों में इस आधार पर इन्कार कर दिया गया है कि प्रत्यर्पित व्यक्ति को पारिवारिक जीवन के अधिकार से वंचित कर देगा। मानव अधिकार के यूरोपीय सम्मेलन के अनुच्छेद 8 के तहत भगोड़ाें के लिए ढील प्रदान करते हैं। दरअसल, प्रत्यर्पण का सामना करने वाले व्यक्तियों के पास यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के पास पहुंचने का अंतिम विकल्प है। कम से कम जब तक ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अपना निकास पूरा नहीं कर लेता यह प्रावधान लागू रहेगा।

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