खाद्य तेलों के आयात शुल्क में बढ़ोतरी चाहते हैं किसान
खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने के लेकर भारत सरकार को काफी दवाब का सामना करना पड़ रहा है।
मुंबई (एजेंसी)। किसानों के बड़े आंदोलनों के बाद सरकार पर खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने का दवाब काफी बढ़ गया है। प्रमुख तिलहन उत्पादक वाले राज्य तिलहन की सरकारी कीमत भी वसूल नहीं कर पा रहे हैं।
भारत के मुकाबले इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्राजील और अर्जेंटीना से सस्ता खाद्य तेल के आयात के कारण स्थानीय तिलहन उत्पादकों को कड़ी प्रतिस्पर्धा और संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है, जिससे स्थानीय रैपसीड और सोयाबीन की मांग कम हो गई है। यहां तक कि बम्पर वैश्विक उत्पादन के कारण पिछले 14 महीनों में कीमतों में तीसरी बार गिरावट आई है।
राजनैतिक रूप से मजबूत किसान संगठनो ने सरकार से मांग की है कि आयात शुल्क में बढोत्तरी की जाए तांकि स्थानीय किसानों और उत्पादकों को लाभा मिल सके। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसओपीए) के चैयरमैन दाविश जैन बताते हैं, 'कुछ किसानों ने पहले ही दूसरी फसलों की तरफ रूख कर लिया है।' आपको बता दें कि भारत, दुनिया की सबसे बड़ा पॉम और सोयाबीन तेल का आयातक है और खाद्य तेलों के आयात पर इसकी निर्भरता 70 फीसदी है जो 2001-02 में केवल 44 फीसदी थी।
भाजपा शासित राज्यों में हो रहे किसान आंदोलनों से विपक्षी दलों को सरकार पर हमला बोलने का मौका मिल गया है। मध्य प्रदेश, जो सबसे ज्यादा सोयाबीन का उत्पादन करने वाला राज्य है वहां इसी महीने हुए किसान आंदोलन में कुछ किसानों की गोली लगने से मौत हो गई थी। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने लगभग 10 अरब का कर्ज माफ किया है। व्यापारियों का मानना है कि कम दरों के कारण भारत में मंहगाई काबू में है और ऐसे में सरकार आयात शुल्क बढ़ा सकती है जिससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।