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आलू बीज के निर्यात की संभावनाएं भुनाने में भारत नाकाम

भारत में फिलहाल लगभग पांच करोड़ टन आलू का उत्पादन होता है, जिसका कुछ हिस्सा बीज के रूप में उपयोग कर लिया जाता है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 07:56 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 07:56 PM (IST)
आलू बीज के निर्यात की संभावनाएं भुनाने में भारत नाकाम
आलू बीज के निर्यात की संभावनाएं भुनाने में भारत नाकाम

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। दुनिया का सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश होने के बावजूद भारत की आलू के बीज बाजार में हिस्सेदारी नगण्य है। इसकी मूल वजह नीतिगत खामियां और प्रशासनिक तैयारियों का अभाव है। आलू का बीज बाजार तकरीबन नौ बिलियन डालर है, जिसमें भारत अपनी भागीदारी नहीं बढ़ा पा रहा है। पड़ोसी देशों में आलू बीज की आपूर्ति नीदरलैंड और स्कॉटलैंड जैसे देशों से होती है। जबकि भारत में आलू के बीज उत्पादन की पर्याप्त संभावनाएं हैं।

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भारत में फिलहाल लगभग पांच करोड़ टन आलू का उत्पादन होता है, जिसका कुछ हिस्सा बीज के रूप में उपयोग कर लिया जाता है। लेकिन बीज के उपयोग में आने वाले आलू की गुणवत्ता का मानक बहुत सख्त होता है। भारतीय किसान आंख मूंद आलू की खेती तो करता है, लेकिन उसका वाणिज्यिक उपयोग कर लाभ कमाने की उसकी मंशा पर नीतिगत खामियां भारी पड़ती हैं। बागवानी से जुड़े वैज्ञानिकों की मानें तो भारत में आलू का बीज उगाने का उपयुक्त तरीका पंजाब के किसान अपनाते हैं। लेकिन उनकी क्षमता का पूरा उपयोग निर्यात के अभाव में नहीं हो पाता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप महानिदेशक बागवानी डाक्टर आनंद प्रकाश सिंह ने इस दिशा में सकारात्मक पहल की है। उनका कहना है कि स्कॉटलैंड ने भारत को आलू बीज के वैश्विक बाजार में स्थान बनाने के लिए सहयोग करने का भरोसा दिया है। इस दिशा में केंद्र सरकार ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से बातचीत की है, ताकि वहां के आलू बीज उगाने वाले किसानों को इसके लिए तैयार किया जा सके। डाक्टर सिंह ने बताया कि यूरोप का छोटा सा देश नीदरलैंड दुनिया का सबसे बड़ा आलू बीज निर्यातक देश बन गया है।

भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे देशों में उन्नत किस्म के आलू बीज की आपूर्ति नीदरलैंड कर रहा है। जबकि भारत आलू किसानों के लिए यह अत्यंत मुफीद बाजार हैं, जिसका लाभ उठाया जा सकता है। लेकिन भारतीय आलू किसानों का कारगर एसोसिएशन नहीं होने और राज्य सरकारों की नाकामी के चलते विश्व बाजार में भारत की पैठ नहीं बन पा रही है। एक आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2016 और 2017 के दौरान मामूली मात्रा में आलू बीज की आपूर्ति छिटपुट देशों में की गई थी।

दरअसल, आलू बीज का निर्यात न होने की बड़ी वजह बीज वाले आलू का गुणवत्ता मानक तैयार करने और उसके परखने की कोई उचित एजेंसी का न होना है। पांच करोड़ आलू पैदा करने वाले देश में मात्र एक एजेंसी शिमला की सेंट्रल पोटैटो रिसर्च इंस्टीट्यूट है। इसमें भी वैज्ञानिकों की सीमित संख्या है, जिसके बूते यह संभव नहीं है। इसके लिए सरकार को अलग व स्वतंत्र निगरानी एजेंसी का गठन करना होगा, जो आलू बीज के उत्पादन की पूरी प्रक्रिया को जांच सके। डाक्टर सिंह का कहना है 'गुणवत्ता की कसौटी पर परखे बगैर विश्व बाजार में भारतीय आलू के बीजों की मांग में इजाफा नहीं हो सकता है।'


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