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ट्रंप प्रशासन में पहले के मुकाबले अधिक तेजी से आगे बढ़े हैं अमेरिका और भारत, जानें एक्‍सपर्ट व्‍यू

ट्रंप सरकार के आने के बाद से भारत और अमेरिका के बीच संबंध पहले की तुलना में कहीं अधिक बेहतर हुए हैं। चीन से खतरे के मद्देनजर इन संबंधों को जो नई ऊर्जा मिली है उससे भारत की ताकत भी बढ़ी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 10:15 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 01:23 PM (IST)
ट्रंप प्रशासन में पहले के मुकाबले अधिक तेजी से आगे बढ़े हैं अमेरिका और भारत, जानें एक्‍सपर्ट व्‍यू
ट्रंप के कार्यकाल में भारत को मिली तवज्‍जो

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। भारत और अमेरिका के बीच हुए BECA समझौते ने भारत की ताकत में कई गुना विस्‍तार किया है। चीन से बढ़ते खतरे के मद्देनजर ये काफी अहम समझौता बताया जा रहा है। जानकार मानते हैं कि राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच संबंध और अधिक घनिष्‍ठ हुए हैं। इसके अलावा इस प्रशासन में रणनीतिक सहयोग पहले की अमेरिकी सरकार के मुकाबले कहीं अधिक बढ़ा है। ये सब कुछ ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका में 3 नवंबर को राष्‍ट्रपति चुनाव के लिए मतदान होना है। ट्रंप इस चुनाव में अपनी छवि एक वैश्विक नेता के तौर पर दिखा रहे हैं। बात चाहे इजरायल और अरब जगत में हुए समझौतों की हो या फिर क्‍वाड की या फिर भारत के साथ हुए करार की, इन सभी में ट्रंप की इस छवि को भलीभांति से देखा जा सकता है।

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बहरहाल, भारत और अमेरिका के बीच हुए ताजा समझौते पर नौसेना के पूर्व अधिकारी कमोडोर रंजीत राय का मानना है कि दोनों देशों के बीच इस तरह के संबंध पहले कभी नहीं थे। ट्रंप प्रशासन से पहले की सरकारों में भारत को वो तवज्‍जो नहीं दी गई, जो दी जानी चाहिए थी। यही वजह है कि जब से अमेरिका में डोनाल्‍ड ट्रंप ने राष्‍ट्रपति पद का कार्यभार संभाला है, तब से लेकर अब तक दोनों दशों के बीच रणनीतिक साझेदारी भी कई गुना बढ़ गई है। उनके मुताबिक, अमेरिका की मौजूदा रिपब्लिकन सरकार की शुरुआत से ही ये नीति रही है कि भारत अपना सैन्‍य व्‍यापार अमेरिका के साथ हो। 1995-96 में भारत और अमेरिका के बीच जो सैन्‍य व्‍यापार महज 1 बिलियन डॉलर था वो अब बढ़कर 22 बिलियन डॉलर हो चुका है।

कमोडोर रंजीत के मुताबिक, भारत काफी समय तक अपनी सैन्‍य जरूरतों के लिए रूस के भरोसे रहा है। रूस को जब पैसे की जबरदस्‍त किल्‍लत थी उस वक्‍त भारत ने रूस से काफी मात्रा में हथियार खरीदे थे। इसकी बदौलत रूस की आर्थिक हालत सुधरी थी। उन्‍होंने ये भी कहा कि भारत सरकार के पास हमेशा से ही हथियारों की खरीद के लिए बजट होता था, लेकिन यूपीए ने इसका सदुपयोग नहीं किया। रिपब्लिकन की बात करें तो जब-जब अमेरिका में इनकी सरकार आई, तब-तब उन्‍होंने विभिन्‍न देशों को अपने हथियार प्रमुखता से बेचे। वहीं, डेमोक्रेट की बात करें तो वो इन मामलों में कहीं पीछे हैं। 2015 में अमेरिका की तत्‍कालीन ओबामा सरकार में भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्‍ट्रैटजिक पार्टनर बनाया। ट्रंप ने सत्‍ता में आने के बाद खुलेतौर पर भारत का समर्थन करते हुए अपने हथियारों की खरीद के लिए सभी द्वार खोल दिए। इसका नतीजा ये हुआ कि भारत ने ट्रंप प्रशासन में कई अत्‍याधुनिक हथियार अमेरिका से खरीदे। इस दौरान दोनों देशों के बीच कुछ अहम समझौते भी हुए।

इससे पहले के इतिहास पर गौर करें तो अमेरिका-पाकिस्‍तान में काफी नजदीकियां थीं। ट्रंप प्रशासन के सत्ता में आते ही अमेरिका ने चीन और पाकिस्‍तान दोनों पर ही लगाम लगाने और उन्‍हें मदद न करने की नीति को अपनाया। ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्‍तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद को बेहद कम किया और बाद में इसको रोक भी दिया। चीन से बढ़ते खतरे के मद्देनजर रंजीत का मानना है, अमेरिका के पास चीन का सामना करने के सभी हथियार मौजूद हैं। अमेरिका और भारत के भूगोल में काफी अंतर है। भारत चीन के सामने खड़ा है। ऐसे में भारत-अमेरिका के बीच की ये साझेदारी आने वाले समय में भी काफी अहम साबित हो सकती है। हालांकि, उनका ये भी मानना है कि चीन को रातोंरात आर्थिक मोर्चे पर तगड़ा झटका नहीं दिया जा सकता है। इसके लिए हमें पहले से अपनी पूरी तैयारी करनी होगी और फिर कदम बढ़ाने होंगे।

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