अफगानिस्तान में एक समान हैं रूस और भारत की चिंताएं, खास है डोभाल और पेत्रुशेव की मुलाकात
अफगानिस्तान को लेकर भारत और रूस की चिंताएं एक समान हैं। दोनों ही नहीं चाहते हैं कि अफगानिस्तान आतंकियों के लिए जन्नत बन जाए। भारत की चिंता यहां पर चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ को लेकर भी है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे और उसकी सरकार के बाद परिस्थितियां काफी बदली हुई हैं। भारत की चिंता केवल तालिबान को ही लेकर नहीं है बल्कि यहां पर तैयार हो रहे चीन-पाकिस्तान और तालिबान के उस गठजोड़ की भी है जो कदाचित भारत को आर्थिक मोर्चों पर और रणनीतिक दृष्टि से नुकसान पहुंचा सकता है। इन मुश्किल हालातों से निपटने के लिए भारत ने अपने पुराने और भरोसेमंद सहयोगी रूस पर विश्वास किया है।
रूस पर विश्वास
यही वजह है कि इस अहम मुद्दे पर बुधवार को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल अपने समकक्षीय रूस के एनएसए निकोलाई पेत्रुशेव से मुलाकात कर रहे हैं। 31 अगस्त को इन दोनों के बीच ब्रिक्स के एनएसए सम्मेलन के दौरान वार्ता हुई थी। उस वक्त भी अफगानिस्तान ही बातचीत के केंद्र में था। उस वक्त इसका नेतृत्व भारत ने ही किया था। इससे भी पहले 24 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अफगानिस्तान के मुद्दे पर बात की थी।
तालिबान के पक्ष में रूस के बयान अहम
इस बातचीत की अहमियत का समझने के लिए ये जरूरी है कि पूर्व की घटनाओं पर भी पहले नजर मार ली जानी चाहिए। आपको बता दें कि काबुल पर कब्जे से पहले तालिबानी नेताओं ने रूस में ही कई बार प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी भावी योजनाओं की जानकारी दी थी। इस दौरान इन नेताओं ने रूसी नेताओं से बात भी की थी। वहीं काबुल पर कब्जे के बाद रूस ने इसको बड़ी जीत बताया था। रूस के विदेश मंत्री ने यहां तक कहा था कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार से बेहतर तालिबान का आना है। इसके बाद भी कई मर्तबा तालिबानी नेताओं और रूस के नेताओं की आपस में बातचीत हुई है।
तालिबान सरकार को मान्यता देने की जल्दी में नहीं रूस
इन सबके बावजूद भारत में नियुक्त रूस के राजदूत निकोले कुदाशेव ने ये स्पष्ट किया है कि वो तालिबान की सरकार को मान्यता देने की जल्दबाजी में नहीं है। उन्होंने ये भी कहा है कि वो इस मुद्दे पर भारत के साथ खड़ा है। अफगानिस्तान को लेकर रूस और भारत की चिंताएं भी एक समान ही हैं। दोनों ही देश नहीं चाहते हैं कि अफगानिस्तान आतंकियों के लिए फिर से एक पनाहगाह बन जाए। हालांकि रूस के रुख को देखते हुए ये भी मुमकिन है कि वो इस मुद्दे पर वही रुख अपनाए जो चीन ने अपनाया हुआ है। मतबल, ये कि बिना तालिबान सरकार को मान्यता दिए वो सब करना जो मान्यता देने से हो सकते हैं।
भारत का स्पष्ट रुख और दो टूक वार्ता
भारत ने रूस के साथ पहले हुई वार्ताओं में अपनी चिंता के बारे में खुलकर बात की है। भारत रूस के जरिए चाहता है कि अफगानिस्तान उसके लिए भविष्य में किसी तरह का कोई खतरा न बने। साथ ही भारत ये भी चाहता है कि चीन और पाकिस्तान को भी भारत के खिलाफ आने में रूस उसकी मदद करे। वहीं आज होने वाली इस वार्ता का एक मकसद अफगानिस्तान में हुआ भारतीय निवेश भी है। आपको बता दें कि पिछले दिनों भारत के कतर में तैनात राजदूत ने तालिबानी नेता स्तानिकजई से बातचीत की थी। ये बातचीत तालिबान की पहल पर की गई थी। इसमें भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अफगानिस्तान की जमीन को भारत के खिलाफ ने होने दिया जाए। इस पर स्तानिकजई ने भी भारत को भरोसा दिलाया था।
शांति स्थिरता जरूरी
डोभाल और पेत्रुशेव की बातचीत में भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा और अफगानिस्तान की स्थिरता को लेकर भी बात करेगा। भारत चाहता है कि हर हाल में क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम रहे। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अफगानिस्तान की अशांति वहां पर चीन और पाकिस्तान को अपने पांव जमाने में मजबूती देगी जो भारत के लिए खतरा बन सकती है। आपको बता दें कि हाल के कुछ समय में रूस चीन और रूस पाकिस्तान में दूरी काफी कम हुई है। इसलिए भारत इसका फायदा उठाना चाहता है। भारत ये भी चाहता है कि अफगानिस्तान में हुए उसके निवेश भी की भी रक्षा की जाए। साथ ही वहां पर रहने वाले अल्पसंख्यंकों भी मदद की जा सके।