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अफगानिस्तान के मुद्दे पर और करीब आये भारत व अमेरिका, अमेरिकी सेना के कमांडर क्लार्क के साथ सेना प्रमुख नरवणे की वार्ता

गुरुवार को अमेरिकी सेना के विशेष आपरेशन कमांड के कमांडर जनरल रिचर्ड डी क्लार्क के साथ भारतीय सेना के प्रमुख एमएम नरवणे के बीच हुई लंबी बातचीत में अफगानिस्तान के हालात और वहां उपजी चुनौतियों को लेकर विस्तार से बातचीत हुई।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 09:19 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 09:19 PM (IST)
अफगानिस्तान के मुद्दे पर और करीब आये भारत व अमेरिका, अमेरिकी सेना के कमांडर क्लार्क के साथ सेना प्रमुख नरवणे की वार्ता
अमेरिकी सेना के विशेष आपरेशन कमांड के कमांडर जनरल रिचर्ड डी क्लार्क और भारतीय सेना के प्रमुख एमएम नरवणे

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते कदम और चीन की तरफ से तालिबान के साथ संपर्क स्थापित करने की सूचनाओं के बीच भारत और अमेरिका की तरफ से साफ संकेत दिए गए हैं कि वह अफगानिस्तान में अपनी साझा कोशिशों को और तेज करेंगे। अमेरिका और भारत के विदेश मंत्रियों की बुधवार को हुई बैठक में इस बारे में सहमति बनी और गुरुवार को अमेरिकी सेना के विशेष आपरेशन कमांड के कमांडर जनरल रिचर्ड डी क्लार्क के साथ भारतीय सेना के प्रमुख एमएम नरवणे के बीच हुई लंबी बातचीत में अफगानिस्तान के हालात और वहां उपजी चुनौतियों को लेकर विस्तार से बातचीत हुई।

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चीन की तालिबान नेताओं के साथ बैठक से भारत और अमेरिका की चिंता बढ़ी

अगले हफ्ते अमेरिकी सेना के प्रमुख जेनरल जेम्स सी मैककानविले की भारत यात्रा के दौरान भी अफगानिस्तान के हालात से निबटने की साझा कवायद एक अहम मुद्दा होगा। हालांकि दोनों तरफ से इस बारे में गहरी चुप्पी है लेकिन जानकारों का कहना है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को जिस तरह से बीजिंग में तालिबान के शीर्ष नेताओं को बुलाकर बैठक की है उससे अमेरिका और भारत की चिंता बढ़ी है। अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने जयशंकर के साथ साझा प्रेस कांफ्रेंस में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान के अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से अलग-थलग होने की जो बात कही है, उसके पीछे चीन के इस रवैये को ही कारण बताया जा रहा है।

ब्लिंकन ने बुधवार को कहा था कि अफगानिस्तान को अमेरिका व भारत कमोवेश एक ही नजर से देखते हैं। भारत ने वहां स्थायित्व व विकास के लिए काफी काम किया है। अमेरिका भी उसके साथ मिल कर काम करेगा, ताकि जो प्रगति अभी तक हासिल की गई है वह अमेरिकी सेना की वापसी से प्रभावित न हो। हम भारत के इस मत को साझा करते हैं कि अफगानिस्तान का भविष्य वहां के लोगों की तरफ से ही तय होना चाहिए।

अफगानिस्तान में तालिबान की तरफ से बढ़ते हमले और कुछ इलाकों में उनकी तरफ से अत्याचारों को पहली बार अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत में ही सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया और तालिबान की प्रकृति पर सवाल उठाये। ब्लिंकन ने जयशंकर की इस बात का समर्थन किया कि अफगान का मामला हिंसा से तय नहीं किया जा सकता।

अफगानिस्तान के भीतर और पड़ोस में शांति की कोशिश में भारत : विदेश मंत्रालय

गुरुवार को भी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह बात दोहराई कि भारत एक शांतिपूर्ण, स्वतंत्र, लोकतांत्रिक व स्थिर अफगानिस्तान देखना चाहता है जिसके भीतर भी शांति हो और जिसके पड़ोस में भी शांति हो।यही वजह है कि गुरुवार की भारतीय सेना प्रमुख नरवणे के साथ अमेरिकी कमांडर जनरल रिचर्ड डी क्लार्क की नई दिल्ली में बैठक और अगले हफ्ते अमेरिकी सेना प्रमुख की तीन दिवसीय भारत यात्रा की अहमियत बढ़ गई है। इस बारे में पूछने पर सरकारी सूत्रों ने कोई जवाब नहीं दिया है।

भारतीय सेना की तरफ से बस इतना बताया गया कि दोनों के बीच द्विपक्षीय हितों से जुड़े मुद्दों पर बात हुई है। अन्य जानकारों का कहना है कि दोनों पक्ष फिलहाल अफगानिस्तान के सैन्य विभाग व सुरक्षा एजेंसियों को अपनी-अपनी तरफ से मदद दे रहे हैं। भविष्य में इनके बीच अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सेना को संयुक्त रूप से भरपूर सहयोग करने की सहमति बन सकती है। अफगानिस्तान सरकार इस बारे में भारत व अमेरिका के साथ संपर्क में है।


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