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आपदा के इस दौर में युवा सेल्फी की आत्मघाती सनक से सदा के लिए बाहर आएं

युवा जानलेवा गलतियां करने के बजाय कोरोना संक्रमण को लेकर खुद भी सजग रहें और अपने परिवेश में भी जागरूकता लाएं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 08 Aug 2020 09:26 AM (IST)Updated: Sat, 08 Aug 2020 09:26 AM (IST)
आपदा के इस दौर में युवा सेल्फी की आत्मघाती सनक से सदा के लिए बाहर आएं
आपदा के इस दौर में युवा सेल्फी की आत्मघाती सनक से सदा के लिए बाहर आएं

डॉ. मोनिका शर्मा। कोरोना के संकट काल में प्रशासनिक व्यवस्था के हिस्से कई तरह की जिम्मेदारियां हैं। ऐसे में जिम्मेदार और जागरूक बनने के बजाय युवाओं का अजब-गजब काम कर अपनी जान जोखिम में डालना हैरान-परेशान करने वाला है। हाल में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में सेल्फी की सनक दो लड़कियों के लिए जानलेवा बन गई। कमाल की सेल्फी लेने के फेर में दोनों पेंच नदी के बीच में पत्थर पर जाकर बैठ गईं। नदी में अचानक पानी का बहाव हुआ और दोनों नदी में फंस गईं। पुलिस और स्थानीय प्रशासन की सहायता से दोनों को किसी तरह से बचाया गया।

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बरसात के मौसम में पहले भी ऐसी जानलेवा घटनाएं होती रही हैं, पर इन दिनों तो कोरोना के डर से लोगों को जरूरत भर के लिए ही घरों से निकलने के दिशानिर्देश दिए गए हैं। सामूहिक रूप से कहीं जुटना भी मना है। तमाम तरह की पाबंदियों के बावजूद दूर-दराज के इलाके में युवतियों का पिकनिक मनाने पहुंचना गैर-जिम्मेदार सोच की बानगी है। यह अपनी जान को आफत में डालने वाली गलती तो है ही प्रशासनिक अमले की परेशानी बढ़ाने वाला जुनून भी है। वह भी तब जब कोरोना का संकट पहले से ही व्यवस्था के लिए मुसीबत बना हुआ है।

सेल्फी लेने के लिए जान को दांव पर लगाने की यह पहली घटना नहीं है। हालिया बरसों में यह जुनून खूब दिखा है। युवाओं में तो लत बनी सेल्फी लेने की आदत अपनी ही नहीं औरों की भी जान खतरे में डालने वाली सनक बन गई है। सोशल मीडिया में तारीफें बटोरने की दीवानगी के चलते सोते-जागते, उठते-बैठते ही नहीं, ट्रैफिक में फंसने या दुर्घटना होने पर भी सेल्फी लेने का जुनून देखने को मिल रहा है। खतरनाक हालातों में सेल्फी लेने को तो बाकायदा ‘डेयरिंग सेल्फी’ कहा जाता है। अफसोस कि आभासी दुनिया की अर्थहीन तारीफों के लिए लोग अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। ब्रिटिश वेबसाइट फीलिंगयूनिक डॉट कॉम के सर्वे के मुताबिक युवा पीढ़ी में सेल्फी लेने की यह आदत अब एक मानसिक बीमारी बन गई है।

युवाओं को समझना होगा कि स्मार्ट फोन हमारा जीवन सरल बनाने के लिए हैं। इससे मिली सुविधाओं को सनक बनाने के बजाय सजग रहने के लिए काम में लिया जाए। गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के तकलीफदेह दौर में घरों तक सिमटे लोगों को अपनों से जोड़े रखने और सूचनाएं देने में तकनीक सहायक बन रही है। संवाद और सुरक्षा के पहलू पर तो स्मार्ट गैजेट्स वाकई मददगार साबित हुए हैं। जरूरी है कि युवा मुसीबत बढ़ाने वाली ऐसी जानलेवा गलतियां करने के बजाय कोरोना संक्रमण को लेकर खुद भी सजग रहें और अपने परिवेश में भी जागरूकता लाएं। आपदा के इस दौर में सेल्फी की आत्मघाती सनक से सदा के लिए बाहर आएं।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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