Move to Jagran APP

Ayodhya Case: राम जन्‍मभूमि के फैसले में नजूल की जमीन कहीं बदल न दे सीन, जानिए पूरा मामला

अयोध्या राम जन्मभूमि पर हिन्दू मुस्लिम दोनों दावा कर रहे हैं। सुनवाई पूरी हो चुकी है। अब फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है कि वह किसे मालिक मानता है और किसे नहीं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 03 Nov 2019 07:42 PM (IST)Updated: Mon, 04 Nov 2019 08:53 AM (IST)
Ayodhya Case: राम जन्‍मभूमि के फैसले में नजूल की जमीन कहीं बदल न दे सीन, जानिए पूरा मामला
Ayodhya Case: राम जन्‍मभूमि के फैसले में नजूल की जमीन कहीं बदल न दे सीन, जानिए पूरा मामला

नई दिल्ली, माला दीक्षित। अयोध्या राम जन्मभूमि पर हिन्दू मुस्लिम दोनों दावा कर रहे हैं। सुनवाई पूरी हो चुकी है। अब फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है कि वह किसे मालिक मानता है और किसे नहीं। लेकिन जिस विवादित भूमि पर मालिकाना हक का दावा किया जा रहा है, राजस्व रिकार्ड में वह जमीन नजूल की दर्ज है यानी सरकारी जमीन है। जिस फैसले का पूरा देश इंतजार कर रहा है उसमें जमीन का नजूल भूमि दर्ज होना पेंच फंसा सकता है।

prime article banner

मालिकाना हक के बारे में देखनी होगी कानूनी स्थिति

विवादित जमीन की स्थिति देखते हुए नजूल की जमीन पर मालिकाना हक के बारे मे कानूनी स्थिति देखनी होगी। नजूल की जमीन अगर किसी को आवंटित नहीं की गई है या उसका किसी को उपयोग का लाइसेंस नहीं दिया गया है तो वह जमीन सरकार की होती है। ऐसी जमीन की मालिक सरकार होती है। उस जमीन पर कोई कब्जेदार हो सकता है। कब्जे का प्रकार अलग अलग हो सकता है लेकिन मालिक नहीं हो सकता।

सरकार की होती है नजूल की जमीन

ऐसी जमीन की कानूनी स्थिति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि कानून के हिसाब से तो नजूल की जमीन सरकार की होती है। अगर दोनों में से कोई भी पक्ष जमीन पर मालिकाना हक साबित नहीं कर पाता तो कोर्ट कह सकता है कि जमीन सरकार की है और सरकार जो चाहे कर सकती है। लेकिन ये मुकदमा इतना सामान्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट कर सकता है विशेष शक्तियों का इस्तेमाल

यहां मामला आस्था और देश की अस्मिता से जुड़ा है। ऐसे में मुकदमें की प्रकृति और फैसले के परिणाम को देखते हुए भले ही राजस्व रिकार्ड में जमीन नजूल की दर्ज हो, कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 में प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए न्याय के हित में सरकार को जमीन के बारे में निर्देश दे सकता है। वह कहते हैं कि नियम के मुताबिक अगर किसी जमीन का मालिक न रहे तो वह जमीन सरकार में निहित हो जाती है। इसे इस्चीट का सिद्धांत कहते हैं यानी अगर जमीन किसी की नहीं रही तो सरकार में निहित हो जाएगी।

विवादित ढांचे के नजूल प्लाट पर स्थित होने के बारे में हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी और फैसला भी दिया था। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के मुकदमें में हाईकोर्ट ने जो विवादित बिंदु तय किये थे, उनमें एक सवाल विवादित ढांचे के नजूल प्लाट पर स्थित होने को लेकर था। जिसमें कहा गया था कि क्या विवादित इमारत अयोध्या के रामकोट में नजूल प्लाट खसरा संख्या 583 पर स्थिति है। (नजूल संपत्ति?)। अगर ऐसा है तो उसका क्या प्रभाव होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के अलग-अलग जजों के विचार 

इस पर तीनों जजों के विचार अलग थे। जस्टिस एसयू खान ने कहा था चूंकि वहां स्थित इमारत 6 दिसंबर 1992 को ढहा दी गई इसलिए वह संपत्ति किस प्लाट पर थी यह चिन्हित करने या सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं रही। जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि वह इमारत रामकोट मोहल्ले में नजूल प्लाट खसरा नंबर 583 पर स्थिति थी, फिर भी इसका दोनों समुदायों के पक्षकारों द्वारा किये गए दावे पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने विवादित संपत्ति पर कोई दावा नहीं किया है। जबकि जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने कहा था कि संपत्ति नजूल प्लाट संख्या 583 पर स्थित है और संपत्ति सरकार की है।

जमीन के नजूल होने पर राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति की वकील रंजना अग्निहोत्री कहती हैं कि अगर ऐसा होता है तो मुकदमा खत्म होने के बाद 1993 का अयोध्या अधिग्रहण कानून क्रियान्वित हो जाएगा, तब सरकार उस जमीन का जो चाहे कर सकती है। जबकि हिन्दू महासभा के वकील हरिशंकर जैन कहते हैं कि जमीन के नजूल होने से रामलला के मुकदमें पर असर नहीं पड़ेगा। वह कहते हैं कि अगर 1861 में तत्कालीन सरकार ने जमीन नजूल घोषित कर दी तो भी रामलला का वहां पहले से कब्जा था। वहां भगवान राम का जन्म हुआ था, वह पवित्र भूमि स्वयं देवता है। देवता का न बंटवारा हो सकता है, न हटाया जा सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.