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सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में राज्यों ने कहा, आरक्षण की 50 फीसद सीमा पर हो पुनर्विचार, जानें किसने क्‍या कहा

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल मराठा आरक्षण पर सुनवाई कर रही है। इसके अलावा इंदिरा साहनी फैसले में नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय की गई आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत पर भी सुनवाई चल रही है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 10:50 PM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 10:50 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में राज्यों ने कहा, आरक्षण की 50 फीसद सीमा पर हो पुनर्विचार, जानें किसने क्‍या कहा
आरक्षण की अधिकतम सीमा पर चल रही सुनवाई

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आरक्षण की अधिकतम सीमा पर चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार को राज्यों ने एक सुर में आरक्षण की 50 फीसद सीमा पर पुनर्विचार की मांग की। राज्यों का कहना था कि 50 फीसद सीमा तय करने वाले इंदिरा साहनी फैसले पर पुनर्विचार किया जाए, क्योंकि उसके बाद काफी चीजें बदल चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर मराठा आरक्षण का समर्थन कर रहे वकील सीयू सिंह ने कहा कि किसी वर्ग के राजनीतिक रूप से समर्थ होने का मतलब यह नहीं है कि वह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं है। उन्होंने इस बारे में बिहार में यादव का उदाहरण दिया। 

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संविधान पीठ कर रही है मराठा आरक्षण पर सुनवाई

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल मराठा आरक्षण पर सुनवाई कर रही है। इसके अलावा इंदिरा साहनी फैसले में नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय की गई आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत पर भी सुनवाई चल रही है। कोर्ट ने कुल छह कानूनी सवाल विचार के लिए तय किए हैं। अदालत ने व्यापक सुनवाई के लिए सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। बुधवार को राज्यों की ओर से पक्ष रखा गया। 

हर राज्‍य की स्थिति अलग 

छत्तीसगढ़ और कर्नाटक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने छत्तीसगढ़ का उदाहरण देते हुए कहा कि वह एक ऐसा राज्य है, जहां अनुसूचित जनजाति 31 फीसद से ज्यादा हैं। वहां पर एससी, एसटी आरक्षण 44 फीसद है। ओबीसी को सिर्फ 14 फीसद आरक्षण दिया गया है। रोहतगी ने कहा कि हर राज्य की स्थिति अलग है। ऐसे में 50 फीसद की सीमा तय करना ठीक नहीं है। 

इंदिरा साहनी फैसले के बाद काफी चीजें बदल चुकी हैं

रोहतगी ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 342-ए सिर्फ केंद्रीय सूची की बात करता है। पिछड़े लोगों के बारे में दो सूचियां होंगी-एक केंद्र की और एक राज्य की। अगर ऐसा नहीं होता है तो संघीय व्यवस्था का उल्लंघन होगा। केरल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि 50 फीसद की सीमा पर पुनर्विचार होना चाहिए, क्योंकि तब से परिस्थितियों में काफी बदलाव हो चुका है। उत्तराखंड की ओर से पेश वकील विनय अरोड़ा ने कहा कि अगर यह माना जाए कि अनुच्छेद 342 द्वारा राज्यों की पिछड़ों की पहचान करने की शक्ति ले ली गई है तो इससे बाकी कुछ नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि चुनी हुई सरकार अपने क्षेत्र की जरूरतें और क्षेत्रीय अपेक्षाएं जानती है। 

हरियाणा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरुण भारद्वाज ने कहा कि अगर 102वें संशोधन के बाद राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 342-ए में पिछड़ों की सूची नहीं जारी की तो क्या होगा। ऐसे में क्या राज्यों के पिछड़े वर्ग आयोग बेकार हो जाएंगे। वास्तव में तो इससे राज्यों में एसईबीसी की कोई सूची नहीं रहेगी। इससे अफरातफरी मचेगी। उन्होंने कहा, बालाजी फैसले के पैरा 36 में कहा गया है कि कोर्ट को आरक्षण का प्रतिशत तय नहीं करना चाहिए।

भारद्वाज ने कहा, आरक्षण का आधार बदलता रहता है। कभी इसका आधार आमदनी है, कभी जाति है तो कभी दोनों हैं। ऐसे में जैसे ही आधार बदलेगा, वैसे ही आरक्षण का प्रतिशत बदल जाएगा। इसलिए आरक्षण कितने प्रतिशत होगा यह सरकार को ही तय करने का अधिकार होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वह अटार्नी जनरल की ओर से की गई बहस को स्वीकार करते हैं। मंगलवार को बिहार सरकार की ओर से पेश वकील मनीष कुमार ने भी कहा था कि आरक्षण की 50 फीसद की सीमा नहीं होनी चाहिए।


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