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सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, शिक्षा को शिक्षाविदों के हवाले ही रहने देना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि शिक्षा को शिक्षाविदों के हवाले ही रहने जाना चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2018 के फैसले को रद कर दिया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 06:15 AM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 06:15 AM (IST)
सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, शिक्षा को शिक्षाविदों के हवाले ही रहने देना चाहिए
शिक्षा शास्त्र के लिए सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला (फाइल फोटो)।

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि शिक्षा को शिक्षाविदों के हवाले ही रहने जाना चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2018 के फैसले को रद कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा था कि शिक्षा शास्त्र के सहायक प्रोफेसर के पद पर एमएड डिग्रीधारी अभ्यर्थी को नहीं नियुक्त किया जा सकता। 

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एमएड की डिग्री पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को रद किया

दरअसल, उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग (यूपीएचईएसएससी) ने मार्च, 2014 में शिक्षा शास्त्र के सहायक प्रोफेसर के पद के लिए विज्ञापन दिया था। इस पर यह विवाद पैदा हो गया है कि क्या इस पद के लिए शैक्षिक योग्यता के रूप में एमएमड की डिग्री को शिक्षा शास्त्र में एमए की डिग्री के बराबर माना जा सकता है। यूपीएचईएसएससी ने इसका निर्धारण करने के लिए चार जाने-माने शिक्षा शास्‍त्रियों की एक समिति गठित की। 

समिति ने कहा कि कला संकाय में सहायक प्रोफेसर (शिक्षण) के पद के लिए शिक्षा शास्त्र में एमए की डिग्री के साथ ही साथ एमएड की डिग्री को भी स्वीकार किया जाना चाहिए। इसके आधार पर यूपीएचईएसएससी ने 11 जुलाई, 2016 को भूल-सुधार प्रकाशित करते हुए उक्त पद के लिए दोनों ही डिग्रियों को मान्य करार दिया। परंतु, 14 मई, 2018 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि शिक्षा शास्त्र में एमए संबंधित विषय में स्नातक डिग्री है, जबकि एमएड के साथ ऐसा नहीं है, यह सिर्फ एक प्रशिक्षण योग्यता है। 

हाई कोर्ट ने विशेषज्ञों की समिति के फैसले को पलटा 

हाई कोर्ट ने उक्त पद के लिए एमएड डिग्रीधारी अभ्यर्थी को अयोग्य करार देते हुए 11 जुलाई, 2016 को प्रकाशित भूल-सुधार को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए उसे रद कर दिया और एक अभ्यर्थी की याचिका स्वीकार कर ली। शीर्ष अदालत ने कहा कि शिक्षा को निश्चित रूप से शिक्षाविदों के हवाले ही रहने देना चाहिए। यह अदालत का काम नहीं है कि वह विशेषज्ञों के फैसले पर विशेषज्ञ बनकर फैसला करे, खासकर तब जब विशेषज्ञों में नामचीन लोग शामिल हों। इसके साथ ही पीठ ने इस मामले में नतीजे घोषित करने की अनुमति भी दे दी।


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