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Coronavirus : मौत पर 50 लाख की मदद... जिंदा रहना है तो खुद ही उठाना होगा खर्चा, जानें क्‍या है पूरा मामला

एमपी सरकार ने कोरोना योद्धाओं की मौत पर परिवार की आर्थिक मदद के लिए 50 लाख का प्रावधान कर दिया लेकिन संक्रमित होने पर खर्च को लेकर जिम्मेदारी नहीं ली।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 11:59 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 08:32 AM (IST)
Coronavirus : मौत पर 50 लाख की मदद... जिंदा रहना है तो खुद ही उठाना होगा खर्चा, जानें क्‍या है पूरा मामला
Coronavirus : मौत पर 50 लाख की मदद... जिंदा रहना है तो खुद ही उठाना होगा खर्चा, जानें क्‍या है पूरा मामला

कुलदीप भावसार, इंदौर। मध्य प्रदेश सरकार ने कोरोना योद्धाओं की मौत पर तो उनके परिवार की आर्थिक मदद के लिए 50 लाख रुपए का प्रावधान कर दिया लेकिन संक्रमित होने पर अस्पताल में लगने वाले खर्च को लेकर जिम्मेदारी नहीं ली। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, पुलिस अधिकारी तक को इलाज के रुपयों के लिए साथियों से गुहार लगानी पड़ रही है। 

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कोरेाना योद्धाओं को इलाज में थमाया जा रहा है भारी भरकम बिल 

इंदौर में करीब 20 हजार कोरोना योद्धा दिन-रात काम में जुटे हैं। इनमें डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और अस्पताल के कर्मचारी सहित जिला प्रशासन और पुलिस विभाग के अधिकारी व कर्मचारी शामिल हैं। अब तक 100 से ज्यादा योद्धा संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से गंभीर संक्रमितों को निजी मेडिकल कॉलेज या निजी अस्पतालों में शिफ्ट किया गया। अब उन्हें भारी-भरकम बिल थमाया जा रहा है।

शुरुआती दौर में सरकार दावा करती रही कि कोरोना संक्रमितों का इलाज मुफ्त किया जाएगा। हाल ही जब कॉलेज काउंसिल की बैठक में यह मुद्दा उठा तो अधिकारियों ने कह दिया कि डॉक्टर चाहें तो एमआरटीबी और एमटीएच (सरकारी अस्पताल) में मुफ्त इलाज करवा सकते हैं। अरबिंदो या चोइथराम में निजी कक्ष लेकर वे इलाज कराते हैं तो इसका खर्च उन्हें ही वहन करना होगा। 

केस एक 

1.75 लाख का बिल खुद भरा   

एक बड़े अस्पताल के वरिष्ठ निश्चेतना विशेषज्ञ कोरोना का इलाज करते हुए संक्रमित हो गए। उन्हें रेड कैटेगरी में चिन्हित निजी अस्पताल रेफर किया। अस्पताल ने 1.75 लाख रुपये का बिल दिया। उन्होंने सरकार से बिल चुकाने की गुहार लगाई लेकिन नतीजा सिफर रहा। उन्हें खुद भुगतान करना पड़ा।     

केस दो 

इंजेक्शन की राशि नहीं दी   

इंदौर के जूनी इंदौर थाने के तत्कालीन टीआइ ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित हुए। उन्हें रेड केटेगरी के अस्पताल में भर्ती करवाया गया। खास इंजेक्शन के लिए साथी पुलिसकर्मियों ने चंदा किया। टीआइ की मौत हो गई। शासन ने मौत के बाद उनके स्वजन को 50 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी। कुछ दिन पहले इंजेक्शन की राशि शासन द्वारा नहीं देने का वाकया डॉक्टरों के साथ भी हो चुका है। 

आयुष्मान योजना में पंजीकृत नहीं होने से आ रही दिक्कत 

शासन ने निजी क्षेत्र के ऐसे अस्पतालों को भी कोरोना इलाज के लिए रेड केटेगरी में चिन्हित कर लिया है जिनका आयुष्मान योजना में पंजीयन नहीं है। ऐसे अस्पताल में मरीज भर्ती होता है तो इलाज का खर्च उसे ही वहन करना होता है। मरीज को रेफर करने की जिम्मेदारी भी प्रशासन की ही है।

प्रशासन जब मरीज को ऐसे किसी अस्पताल में रैफर करता है तो मरीज को लगता है कि शासन ने उसे भेजा है तो उसका इलाज मुफ्त होगा लेकिन ऐसा होता नहीं। वास्तविकता तब पता चलती है जब अस्पताल भारी-भरकम बिल मरीज के स्वजन को सौंपते हैं। 

एसीएस के सामने भी उठ चुका है मुद्दा 

डॉक्टरों और कोरोना योद्धाओं के निजी अस्पताल में इलाज का मुद्दा हाल ही में एसीएस (अतिरिक्त मुख्य सचिव) के सामने भी उठ चुका है। बैठक में शामिल डॉक्टरों के मुताबिक एसीएस ने कहा था कि कोरोना योद्धा चाहें तो अरबिंदो या एमटीएच अस्पताल में प्राइवेट रूम लेकर इलाज करवा सकते हैं। इलाज का खर्च शासन वहन करेगा, लेकिन इस संबंध में अब तक स्पष्ट आदेश जारी नहीं हुए हैं। 

इंदौर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एमपी शर्मा ने कहा कि कोरोना योद्धाओं के इलाज के लिए निजी अस्पताल उनसे पैसा वसूल रहे हैं तो इन अस्पतालों से चर्चा कर समस्या का समाधान किया जाएगा। यदि कोरोना योद्धा ड्यूटी करते हुए संक्रमित हुए हैं तो उन्हें परेशान नहीं होने दिया जाएगा। 

इंदौर के डीएम मनीष सिंह ने कहा कि शुरुआती दौर में निजी अस्पताल में कोरोना ड्यूटी में लगे कर्मचारियों के मुफ्त इलाज की व्यवस्था नहीं होने से कुछ लोगों को भुगतान करना पड़ा होगा। लेकिन, उनके द्वारा भुगतान किए गए बिल की राशि रिफंड हो रही है। शासन को ऐसे मामले भेजे जाएंगे। कुछ मामलों में हमने रेडक्रॉस सोसाइटी के जरिए भी अस्पतालों के बिल का भुगतान करवाया है। 


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