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World Family Day : क्‍या है बस्तर में हजारों साल से संरक्षित इन स्तंभों की कहानी, जानें

गम्मावाड़ा में मृतकों की याद में स्तंभ गाड़ने की परंपरा काफी पुरानी है। ये स्‍तंभ ढाई हजार साल से वहीं खड़े हैं। सदियों से संरक्षित प्रस्तर स्तंभों की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 14 May 2020 10:17 PM (IST)Updated: Thu, 14 May 2020 10:17 PM (IST)
World Family Day : क्‍या है बस्तर में हजारों साल से संरक्षित इन स्तंभों की कहानी, जानें
World Family Day : क्‍या है बस्तर में हजारों साल से संरक्षित इन स्तंभों की कहानी, जानें

हेमंत कश्यप, जगदलपुर। दंतेवाड़ा के गम्मावाड़ा में निवासरत भास्कर परिवार ने ईसा सदी पूर्व से अब तक अपने पूर्वजों की स्मृतियां सहेजकर रखी हैं। आदिवासी परंपरा में मृतकों की स्मृति में स्तंभ गाड़ने की परंपरा पुरानी है। समय के साथ मृतक स्तंभ ढह जाते हैं लेकिन भास्कर परिवार के पूर्वजों के मृतक स्तंभ ढाई हजार साल से वहीं खड़े हैं। कार्बन डेटिंग पद्धति से इन स्तंभों की आयु निर्धारित की जा चुकी है। आदिम सभ्यता की इस विरासत को सहेजे रखने के लिए केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने अब इसे अपने संरक्षण में ले लिया है।

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जनजातियों में मृतक स्तंभों के निर्माण का चलन

भास्कर परिवार के पूर्वजों के स्मारक के आसपास के दो सौ मीटर के दायरे में किसी तरह का निर्माण कार्य या कब्जा प्रतिबंधित है। बस्तर की जनजातियों में मृतक स्तंभों के निर्माण का चलन है। मृतक की स्मृति चिरस्थाई रखने के लिए उनकी याद में प्रस्तर स्तंभ गाड़े जाते हैं। उन स्तंभों में मृतक की जीवनशैली का चित्रांकन भी किया जाता है। कुछ पीढ़‍ियों के बाद स्तंभ क्षीण हो जाते हैं। परिजन उनका ध्यान रखना भी छोड़ देते हैं लेकिन गम्मावाड़ा के भास्कर परिवार ने अपने पूर्वजों की स्मृति संजोए रखी है।

13 गांवों में फैल चुके हैं गोत्रज

कभी गम्मावाड़ा में ही बसे भास्कर परिवार के गोत्रज अब आसपास के 13 गांवों में फैल चुके हैं लेकिन खास मौकों पर परिवार के सभी लोग पूर्वजों के स्मारक स्थल पर एकत्र होना नहीं भूलते। जगदलपुर-किरंदुल मार्ग पर करीब यहां से 99 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग पर गम्मावाड़ा नामक गांव है। यहां सड़क के किनारे ही आदिम सभ्यता के हजारों साल पुराने मृतक स्तंभ हैं।

स्तंभ क्षेत्र संरक्षित स्मारक घोषित

लोक निर्माण विभाग ने जब सातधार से बचेली सड़क बनाई तो गम्मावाड़ा के कई मृतक स्तंभों को तोड़ दिया गया। इसके बाद गम्मावाड़ा के आदिम संस्कृति के मृतक स्तंभ चर्चा में आए और केंद्रीय पुरातत्व विभाग की टीम ने इस स्थल का सर्वेक्षण किया। कार्बन डेटिंग में पता चला कि यहां के स्तंभ ईसा पूर्व से भी कई साल पुराने हैं। स्तंभ क्षेत्र को संरक्षित स्मारक घोषित कर यहां पुरातत्व विभाग ने फेंसिंग कर दी है। यहां एक बोर्ड लगा दिया गया है।

अब कई गांवों में हैं परिजन

गम्मावाड़ा से निकलकर भास्कर गोत्रज फरसपाल, पातररास, कुम्हाररास, भांसी, कमेली, बचेली, धुरली, नेरली, चंदेनार आदि गांवों में फैल गए। गम्मावाड़ा में जिस परिसर में भास्कर परिवार के मृतक स्तंभ हैं अब भी वहीं स्तंभ गाड़े जाते हैं। गम्मावाड़ा निवासी सोनाधार भास्कर, कुंजलाल भास्कर बताते हैं कि व्यक्ति की मौत कहीं भी हो सकती है पर उसके नाम का स्तंभ गोत्रज कब्रगाह में ही खड़ा किया जाता है। पुरुष की मौत होती है तो उसके नाम स्तंभ गाड़ा जाता है जबकि की महिला की मौत पर उसकी कब्र के ऊपर एक पत्थर लिटा दिया जाता है। वैसे हर कब्र के ऊपर मृतक स्तंभ बने यह जरूरी नहीं है।

पूर्वजों से मिलता है आशीर्वाद

भास्कर परिवार ढाई हजार साल से इन स्तंभों की आराधना करता आ रहा है। प्रतिवर्ष नवाखानी, मरकापंडुम और माटी तिहार के समय विभिन्न गांवों से भास्कर परिवार के लोग गम्मावाड़ा पहुंचते हैं। पूर्वजों के स्तंभों पर नई फसल के बीज आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसी तरह के सैकड़ों मृतक स्तंभ किरंदुल-पालनार मार्ग पर ग्राम चोलनार में भी हैं। चोलनार में तो वर्तमान आबादी से अधिक मृतक स्तंभ हैं। हालांकि यहां के मृतक स्तंभ पुरातत्व विभाग से संरक्षित नहीं हैं।


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