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बहुत नहीं बदला सेना का सूरतेहाल, आधुनिकीकरण के नाम पर फैसले ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए

सेना, नौसेना और वायुसेना तीनों की जरूरतें भले अलग-अलग हैं मगर चुनौतियां और उनके सामने आ रही बाधाएं लगभग एक जैसी ही हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 12:30 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 05:39 PM (IST)
बहुत नहीं बदला सेना का सूरतेहाल, आधुनिकीकरण के नाम पर फैसले ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए
बहुत नहीं बदला सेना का सूरतेहाल, आधुनिकीकरण के नाम पर फैसले ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए

नई दिल्ली [संजय मिश्र]। सैन्य ताकत मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में बड़े देशों के लिए न केवल ताकत व स्वाभिमान की पहचान बन गई है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में हैसियत के लिहाज से भी अहम हो गई है। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना के तौर पर भारत की तीनों सेनाओं ने भी अब तक बखूबी विश्व सामरिक पटल पर देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मगर आज हकीकत यह भी है कि सीमित संसाधनों की झोली और शस्त्रागार में हथियारों की भारी कमी हमारी सेनाओं के सामने गंभीर चुनौती के रूप में खड़ी है। यह सच है कि पिछले चार साल में सरकार ने सैन्य आधुनिकीकरण से लेकर सेना के हथियारों की कमी को दूर करने की धीमी गति को रफ्तार देने की कोशिश की है। हथियारों की आपात जरूरत को पूरा करने के लिए फास्ट ट्रैक खरीद नीति के तहत अहम फैसले लिये गए हैं। पर सूरतेहाल बहुत नहीं बदला है।

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सेना को न्यू एज आर्मी बनाने की मंशा भी दिखी लेकिन साल दर साल घटता रक्षा बजट विवश करता है। सेना के तमाम पूर्व वरिष्ठ अफसरों से लेकर रक्षा विशेषज्ञों की समय-समय पर व्यक्त की गई चिंता जगजाहिर है। सेना, नौसेना और वायुसेना तीनों की जरूरतें भले अलग-अलग हैं मगर चुनौतियां और उनके सामने आ रही बाधाएं लगभग एक जैसी ही हैं।

थल सेना
पुराने पड़ चुके साजोसामान, मानव संसाधन प्रबंधन बड़ी चुनौती थल सेना के पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल शरदचंद ने रक्षा मामलों पर संसद की स्थाई समिति के सामने जो कुछ कहा, वह देश को चिंतित करने के लिए काफी है। इसी साल मार्च में उन्होंने कहा कि सेना के मौजूदा 68 प्रतिशत साज़ो-सामान पुराने पड़ चुके हैं और ये जंग में इस्तेमाल के लायक नहीं रह गए। चीन से सटी सीमा पर सड़कों और ढांचागत सुविधाओं के लिए भी बजट की कमी आड़े आ रही है। रक्षा बजट इस समय देश की जीडीपी का 1.6 फीसद है जो 1962 के चीन युद्ध के बाद सबसे कम है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार सैन्य बजट जीडीपी का कम से कम 2.6 फीसद होना चाहिए।

बजट की कमी और रक्षा खरीद में सालों साल देरी का ही नतीजा है कि आज सेना के पास लड़ाकू हेलीकॉप्टर की भी भारी कमी है। हालांकि अमेरिका से 15 चिनूक और 22 अपाचे हेलीकॉप्टर खरीदे जा रहे हैं मगर ये पर्याप्त नहीं है। सेना के पास एंटी मिसाइल सिस्टम नहीं है जो दुश्मनों की बैलिस्टिक मिसाइल को रोक सके। डीआरडीओ की एंटी मिसाइल का अभी ट्रायल ही चल रहा है और रूस से इसकी खरीद पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।

सेना की एक और बड़ी चुनौती अदृश्य दुश्मन हैं जिनसे निपटना आसान नहीं है। ये दुश्मन सामने तो दिखाई नहीं देते मगर इनका हमला काफी खतरनाक हो सकता है। ये दुश्मन आसमान से या फिर आपके सैन्य नेटवर्क सिस्टम पर इस तरह का धावा बोल सकते हैं कि तकनीकी तौर पर आप पंगु हो सकते हैं। गौर करने की बात है कि आज के ज्यादातर हथियार और सैन्य उपकरण नेटवर्क केंद्रित हैं और इसमें हल्की चूक हमारी सैन्य प्रणाली को ठप कर सकती है। बेशक नए जमाने की इस जंग से निपटने के लिए साइबर कमांड और तकनीकी किलेबंदी की दिशा में काम चल रहा है मगर यह चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी की तुलना में बहुत पीछे है। सेनाओं के आधुनिकीकरण पर अमल की बात तो दूर इसकी शुरुआत भी नहीं हुई है। सैन्य बलों की संख्या अधिक होने की वजह से बजट का बहुत बडा हिस्सा वेतन और पेंशन में चला जाता है।

सातवां वेतन आयोग लागू होने और वन रैंक वन पेंशन के बाद यह दबाव बढा ही है। वहीं दूसरी ओर सैन्य अफसरों और जवानों के बीच सामने आ रही समस्याएं भी सेना के मानव संसाधन प्रबंधन की नई चुनौती बनी हैं। सैनिकों में आत्महत्या के मामले भी कम नहीं हो रहे और एक आंकड़े के मुताबिक 2016 में सेना के जेसीओ व समकक्ष रैंक के 100 सैन्यकर्मियों ने आत्महत्या की है। सेना का कड़ा अनुशासन और मोर्चे पर कठिन डयूटी सैनिकों की मनोदशा पर प्रतिकूल असर डालती है। इनका समाधान सेना की मानव संसाधन प्रबंधन क्षमता के लिए बड़ी परीक्षा है।

वायुसेना
लड़ाकू विमानों की खरीद में देरी नये दौर की जंग में दुश्मन पर धावा बोल उसे अचरज में डालने के लिहाज से ही नहीं बल्कि जंग जीतने के लिए वायुसेना की भूमिका सबसे अहम हो गई है। अब युद्ध आमने-सामने सैनिकों की जंग नहीं रह गये बल्कि मिसाइल और वायुसेना के लड़ाकू विमान की प्रहार क्षमता जंग जीतने का आधार बन गई है। अफगानिस्तान और इराक की जंग इसके नवीनतम उदाहरण है। जाहिर तौर पर चीन और पाकिस्तान की दोहरे मोर्चे की चुनौती में भारतीय वायुसेना की भूमिका कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। मगर लड़ाकू विमानों की खरीद खजाने की तंगी और राजनीति के रनवे को आसानी से पार नहीं कर पा रही। फ्रांस से बेहद आधुनिक परमाणु हमले की क्षमता वाले 36 रॉफेल जेट की खरीद इसका उदाहरण है। भारतीय वायुसेना के पास 44 स्क्वाड्रन होने चाहिए मगर इस समय उसके पास करीब 32 बेड़े हैं जो अगले कळ्छ सालों में घटकर 28 रह सकते हैं। वायुसेना के एक स्क्वाड्रन में 18 लड़ाकू जेट होते हैं। मिग-21, मिग-27 जैसे विमान काफी पुराने पड़ चुके हैं जिन्हें रिटायर कर दिया जाना चाहिए था, मगर इनका और मिग-29 का अपग्रेडेशन कर वायुसेना अपना काम चला रही है।

मौजूदा समय में सुखोई ही सबसे आधुनिक जेट वायुसेना की शान है और रॉफेल विमानों के अगले साल बेड़े में आने से एयरफोर्स की ताकत में इजाफा होगा। वायुसेना के लिए राहत की बात यह है कि सरकार ने लड़ाकू विमानों की घटती संख्या को पूरा करने की दिशा में अहम कदम उठाते हुए 110 और लड़ाकू जेट खरीदने की वैश्विकनिविदा जारी कर दी है। लेकिन इसकी खरीद में देरी नहीं हुई तो भी वायुसेना में शामिल होने में इन्हें 5 से 10 साल तक लग जाएंगे।

नौसेना
पोतों की कमी नये दौर की जंग में वायुसेना के साथ नौसेना की जुगलबंदी बाजी पलटने में सबसे कारगर साबित हो रही है। भारतीय नौसेना की भी पराक्रम को लेकर दुनिया में अपनी खास पहचान है। मगर नौसेना भी युद्धपोतों, पनडुब्बी और विमानवाहक पोतों की कमी से जूझ रही है। नौसेना में नए युद्धपोत शामिल तो हो रहे हैं लेकिन उनकी रफ्तार इतनी तेज नहीं। समुद्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता खासकर दक्षिण चीन सागर में उसकी दादागिरी के बीच समुद्री सामरिक संतुलन बनाये रखने को हाई स्पीड जंगी जहाज और पोतों की जरूरत है। इस समय नौसेना के पास गिनती की पनडुब्बी रह गयी हैं जो 30 साल से भी ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं। इसी तरह अब एक ऑपरेशनल युद्धपोत आइएनएस विक्रमादित्य है जिस पर 7500 किलोमीटर से अधिक की समुद्री सरहद की सुरक्षा का जिम्मा है।

वेतन और पेंशन पर खर्च
27 दिसंबर, 2017 में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में जानकारी दी कि भारतीय सैन्य बलों के पास स्वीकृत संख्या से तकरीबन 60 हजार सैनिक कम हैं। इसमें थलसेना 27 हजार रिक्त पदों के साथ सबसे आगे है।

सैन्य सुधार व आधुनिकीकरण
- सेना के पुनर्गठन के साथ सैनिकों की संख्या घटाने को लेकर शेतकर कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए इस पर अमल की शुरुआत
- रक्षा क्षेत्र की योजनाओं के निर्माण के लिए नये संस्थागत तंत्र के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में रक्षा योजना कमेटी का गठन
- सैन्य खरीद के लिए वित्तीय अधिकारों का विकेंद्रीकरण रक्षा उत्पादन और खरीद
- रक्षा उत्पादन क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रीन चैनल नीति के तहत प्रक्रियात्मक रियायतें
- सरकारी परीक्षण केंद्र निजी कंपनियों के लिए भी खोले गए मेक इन इंडिया के तहत स्वदेशी निर्माण व खरीद पर जोर, 1,86,138 बुलेट प्रूफ जैकेट की भारतीय कंपनी से खरीद


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