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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कहा-कर्मचारी को वीआरएस का संपूर्ण अधिकार नहीं

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि आम जनता को सुपर स्किल्ड स्पेशलिस्ट से इलाज कराने का अधिकार है न कि दोयम दर्जे से।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 08:46 PM (IST)Updated: Thu, 23 Aug 2018 07:14 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कहा-कर्मचारी को वीआरएस का संपूर्ण अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कहा-कर्मचारी को वीआरएस का संपूर्ण अधिकार नहीं

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) का संपूर्ण अधिकार नहीं है। सरकार जनहित को ध्यान में रखते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग ठुकरा सकती है। शीर्ष अदालत ने यह बात डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग खारिज करने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए कही है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा व एस.अब्दुल नजीर की पीठ ने उप्र सरकार की अपील पर यह फैसला सुनाया है।
हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्जी स्वीकार करते हुए सेवानिवृत्त घोषित कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्वत: मान ली जाएगी या फिर उसके बारे में आदेश जारी होने की जरूरत है, यह जिस नियम के तहत मांगी गई है उसमें प्रयुक्त भाषा पर निर्भर करेगा। प्रत्येक मामला उससे जुड़े नियम के हिसाब से तय होगा। कोर्ट के सामने विचार का प्रश्न था कि क्या उत्तर प्रदेश के संशोधित फंडामेंटल रूल 56 के तहत कर्मचारी सरकार को तीन महीने का नोटिस देकर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का अबाधित अधिकार रखता है या फिर राज्य सरकार रूल 56 (सी)के साथ संलग्न विस्तार के तहत जनहित के आधार पर उसकी मांग ठुकरा सकती है। कोर्ट ने कहा कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की नोटिस अवधि को तीन महीने बीतने पर स्वत: प्रभावी नहीं माना जाएगा। नियुक्ति अथॉरिटी या तो नोटिस स्वीकार करेगी या फिर उसे अस्वीकार कर सकती है। कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का संपूर्ण अधिकार नहीं है। 
जनहित के अधीन है रोजगार की आजादी
अदालत ने कहा कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं है। सरकार जनहित को ध्यान में रखते हुए ऐसी मांग ठुकरा सकती है। इसलिए कि आम जनता को भी सुपर स्किल्ड स्पेशलिस्ट से इलाज कराने का अधिकार है, न कि दोयम दर्जे से। शीर्ष अदालत ने कहा कि रोजगार की आजादी, जनहित के अधीन है। नौकरी में आने के बाद इस अधिकार का दावा सिर्फ नियमों के मुताबिक ही किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह सभी डॉक्टरों को सेवानिवृत्ति की अनुमति दे दी जाएगी तो अव्यवस्था उत्पन्न हो जाएगी और सरकारी अस्पताल में कोई भी डॉक्टर नहीं बचेगा। 
व्यवस्था को ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता
कोर्ट ने कहा कि पहले ही डॉक्टरों की कमी है। व्यवस्था को सक्षम वरिष्ठों के बगैर नहीं छोड़ा जा सकता। सरकारी अस्पताल में गरीब लोग इलाज कराते हैं। उन्हें खतरे में नहीं डाला सकता। भारत में सरकारी चिकित्सा सेवा गरीबों की जरूरतों को पूरा करती है, अन्यथा इस धर्मार्थ कार्य का व्यवसायीकरण हो चुका है। 

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क्या था मामला
उत्तर प्रदेश में प्रांतीय मेडिकल सर्विस में वरिष्ठ पदों पर तैनात डॉक्टर अचल सिंह, डॉक्टर अजय कुमार तिवारी, डॉक्टर राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव, डॉक्टर राजीव चौधरी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्जी दी। जब सरकार ने उस पर आदेश नहीं किया तो डॉक्टरों ने हाईकोर्ट में याचिका देकर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मांगी। इसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। सरकार ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सरकार का कहना था कि डॉक्टरों की कमी को देखते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्जी ठुकराई गई है।


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