बोझा ढोने के लिए नहीं इस वजह से बढ़ रही है गधों की खपत, आंध्र प्रदेश में तस्करी के मामलों में आई तेजी
डॉ. धनलक्ष्मी का कहना है कि इनकी आबादी में इतनी भारी गिरावट का कारण गधों की अवैध रूप से हत्या है। वहीं कई लोगों का मानना है कि कमर दर्द अस्थमा और कामोद्दीपक (aphrodisiac) के इलाज में सहायक होता है।
अमरावती, एएनआइ। गंधों का उपयोग आमतौर पर बोझा ढोने के लिए किया जाता है लेकिन पिछले कुछ समय में आंध्र प्रदेश के कई इलाकों में गधों के मांस की खपत बढ़ रही है। हालांकि एफएसएसएआइ (FSSAI) के नियमों के तहत यह गैरकानूनी है। यही कारण है कि इनकी तस्करी के मामलों में काफी तेजी भी दर्ज की गई है। आंध्र प्रदेश के पशुपालन विभाग के सहायक निदेशक डॉ. धनलक्ष्मी ने बताया है कि राज्य में गधों की तस्करी के सबसे ज्यादा मामले प्रकाशम, कृष्णा, पश्चिम गोदावरी और गुंतुर में दर्ज किए गए हैं।
उन्होंने 2012 से 2019 तक के आंकड़े देते हुए जानकारी दी है कि पिछले चार से पांच सालों में गंधों की आबादी में आधे से ज्यादा की कमी आई है। पशुपालन विभाग के मुताबिक, 2012 में यहां गधों की संख्या 10 हजार 161 थी जो 2019 तक सिर्फ चार हजार 678 रह गई। डॉ. धनलक्ष्मी का कहना है कि इनकी आबादी में इतनी भारी गिरावट का कारण गधों की अवैध रूप से हत्या है। वहीं, कई लोगों का मानना है कि कमर दर्द, अस्थमा और कामोद्दीपक (aphrodisiac) के इलाज में सहायक होता है। उन्होंने कहा कि लोगों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि एफएसएसएआइ (FSSAI) के तहत गधों के मांस की खपत गैरकानूनी है।
From 10,161 in 2012 to 4,678 in 2019, vast decline in donkeys' population in last 4-5 yrs due to illegal slaughtering & misconceptions like donkey meat cures aphrodisiac. People should know that under FSSAI, donkey consumption is illegal: Animal Husbandry Dept, Andhra Pradesh pic.twitter.com/Mf1F6v88yN— ANI (@ANI) March 3, 2021
राज्य के पशु कल्याण कार्यकर्ता गोपाल आर. सुरबाथुला ने समाचार एजेंसी आइएएनएस को बताया कि हर गुरुवार और रविवार को मांस की बिक्री होती है, जहां कुछ पढ़े-लिखे लोग भी इसे खरीद सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन अवसरों पर कम से कम 100 गधों का वध किया जाता है।