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अगर अब भी नहीं बदला खान-पान तो चाहकर भी भयावह परिणामों को नहीं रोक सकेगें आप

Ipcc ने जलवायु परिवर्तन और जमीन में आगाह किया गया है कि अगर हमने जल्द ही अपने खान-पान और जमीन के इस्तेमाल की प्रवृत्ति में प्रभावी बदलाव नहीं किया तो भयावह परिणाम होगें।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 09 Aug 2019 11:55 AM (IST)Updated: Fri, 09 Aug 2019 12:20 PM (IST)
अगर अब भी नहीं बदला खान-पान तो चाहकर भी भयावह परिणामों को नहीं रोक सकेगें आप
अगर अब भी नहीं बदला खान-पान तो चाहकर भी भयावह परिणामों को नहीं रोक सकेगें आप

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। जलवायु परिवर्तन से धरती और इंसान के अस्तित्व को बचाने के लिए अब तो चेत जाइए। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आइपीसीसी) की गुरुवार को जारी रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन और जमीन में आगाह किया गया है कि अगर हमने जल्द ही अपने खान-पान और जमीन के इस्तेमाल की प्रवृत्ति में प्रभावी बदलाव नहीं किया तो चाहकर भी भयावह परिणाम को रोका नहीं जा सकेगा। 52 देशों के 107 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में 7000 शोधों के निष्कर्ष को शामिल करते हुए अंतिम परिणाम निकाला गया है। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और धरती की खराब होती गुणवत्ता के बीच क्रूर दुष्चक्र को बताया गया है।

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भयावह अंतर्संबंध
दुनिया की बर्फ मुक्त 70 फीसद जमीन को इंसानों ने प्रभावित किया है। इसकी एक चौथाई जमीन की गुणवत्ता खराब हो चुकी है। आज जो खाद्य पदार्थ हम पैदा कर रहे हैं और जो कुछ हम खा रहे हैं, वह प्रकृति के पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म कर रहा है। जैव विविधता तेजी से कम होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन ने सूखे, बाढ़ और लू की आवृत्ति और प्रवृत्ति में इजाफा किया है। इन प्राकृतिक आपदाओं ने पारिस्थितिकी को सुधार न किए जा सकने वाले हालात तक नुकसान पहुंचाया है। जिससे खाद्य पदार्थों की किल्लत बढ़ रही है और दुनिया की खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। वनों की कटाई और खेती से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ रही है। इससे धरती द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड को सोखने की क्षमता कमजोर हो रही है, लिहाजा ज्यादा मात्रा में ग्रीन हाउस गैसें वायुमंडल में अवमुक्त हो रही हैं।

तेजी से उठाना होगा कदम
वैज्ञानिकों का मानना है कि तुरंत हमें जमीन के प्रबंधन के अपने पुराने तरीके में बदलाव लाना होगा। साथ ही हम क्या खाद्य पदार्थ पैदा कर रहे हैं, इस पर भी विचार करना होगा। अगर जलवायु समस्या से पार पाना है तो इन सबके साथ मांस के इस्तेमाल को भी कम करना होगा।

प्राकृतिक कार्बन सोते
जंगल और वेटलैंड्स (नम और दलदली जमीन) प्राकृतिक रूप से कार्बन सोखने के स्नोत हैं। रिपोर्ट के अनुसार इंसानी गतिविधियां इन स्नोतों को भी मिटाने पर आमादा हैं।

रिपोर्ट में सामने आए खतरे
रिपोर्ट तैयार करने के दौरान दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के चलते जमीन में होने वाले क्षरण या जमीन की खराब होती गुणवत्ता के चलते बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग का वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया।

प्रभावी तरीके
एग्रोफॉरेस्ट्री पर जोर देना होगा। यानी खेती की जमीन पर उपयोगी पौधे भी लगाने होंगे। मिट्टी का सही प्रबंधन सुनिश्चित करना होगा। इसके अलावा हर दिन खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकना होगा। इससे जमीन की उत्पादकता में वृद्धि होगी और कार्बन उत्सर्जन कम होगा।

मांस की कम हो खपत
दुनिया में तेजी से मांसाहार की बढ़ती प्रवृत्ति और खाद्य पदार्थों की बर्बादी का ग्लोबल वार्मिंग में अहम योगदान है। सिर्फ खाद्य पदार्थों की बर्बादी ग्लोबल वार्मिंग में 8-10 फीसद भागीदार है। मांसाहार का योगदान 14.5 फीसद है। रिपोर्ट के अनुसार सभी तरीके के खाद्य पदार्थों में से 25-30 फीसद ऐसे हैं जिनका कभी इस्तेमाल ही नहीं किया जाता है, जबकि दुनिया में 82.1 करोड़ लोग कुपोषित हैं।

दक्षिण अमेरिका जितनी जमीन खराब
बर्फ रहित दुनिया की 70 फीसद जमीन को इंसानों ने खराब कर रखा है। रासायनिक उर्वरकों, वनों को काटकर और लगातार फसलें उगाकर इस जमीन की गुणवत्ता खराब की जा रही है। इस प्रक्रिया में दो अरब हेक्टेयर यानी दक्षिण अमेरिका के बराबर जमीन का क्षरण हो चुका है। नतीजतन जमीन उर्वर नहीं रही और वायुमंडल से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को सोखने की क्षमता भी कमतर हो रही है। दुनिया के कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में चौथाई हिस्सेदारी जमीन के इस्तेमाल की है। जिसमें खेती और जंगलों की कटाई शामिल है।

खाद्य सुरक्षा को खतरा
खाद्य प्रणाली जलवायु परिवर्तन के लिए पीड़ित और कारक दोनों है। बढ़ती प्राकृतिक आपदाएं खाद्य प्रणाली के उत्पादन पर नकारात्मक असर डाल रही है। दुनिया की 34 फीसद भूमि खाद्य पदार्थों के उत्पादन में इस्तेमाल हो रही है और वनों के खात्मे में 75 फीसद इसका योगदान है।

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