हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन पर शोध के लिए पांच अस्पताल पंजीकृत, जानें किन्हें मिली जिम्मेदारी
आइसीएमआर ने हाइड्राक्सीक्लोरोक्विन को कोरोना वायरस से बचने के लिए इस्तेमाल करने के शोध में शामिल करने के लिए पांच अस्पतालों को पंजीकृत किया है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन को वैश्विक महामारी कोविड-19 से बचने के लिए इस्तेमाल करने के शोध में शामिल करने के लिए पांच अस्पतालों को पंजीकृत किया है। यह अस्पताल इस दवा के संबंध में स्वास्थ्य कर्मियों के बचाव के लिए अध्ययन कर रहे हैं।
दिल्ली स्थित आइसीएमआर में शोध प्रबंधन के विभागाध्यक्ष डॉ. रजनीकांत श्रीवास्तव ने मंगलवार को बताया कि पंजीकृत किए जाने वाले पांचों अस्पतालों के नाम एम्स (जोधपुर), मौलाना आजाद मेडिकल कालेज, और दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल, चेन्नई के अपोलो अस्पताल और पटना के एम्स हैं। मई के पहले हफ्ते में इन अस्पतालों में 12 हफ्ते तक चलने वाला एक शोध शुरू किया गया।
आइसीएमआर में वैज्ञानिक डॉ. सुमन कानूनगो ने बताया कि डॉक्टर, नर्स, सफाई कर्मियों समेत स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन नाम की दवा पर शोध किया जा रहा है। यह स्वास्थ्य कर्मी कोविड-19 के मरीजों की देखरेख करते हैं और इसलिए इन्हें संक्रमण होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है।
अगर इस शोध में साबित हो गया कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन दवा से कोरोना से बचाव हो सकता है तो यह सिर्फ देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। उन्होंने बताया कि इस शोध के दौरान साइड-इफेक्ट का भी हिसाब रखा जाएगा।
उल्लेखनीय है कि कल शंघाई के अस्पताल में काम करने वाले नोएडा निवासी डाक्टर संजीव चौबे ने खुलाया किया था कि जिंक, हाइड्राक्सी क्लोरोक्विन और एंडीबायोटिक दवा एजिथ्रोमाइसिन के मेल से वहां के कोरोना मरीजों को ठीक किया जा रहा है। शंघाई के सेंट माइकल अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन के डाक्टर संजीव चौबे की मानें तो चीन में अधिकांश मरीजों को जिंक, हाइड्राक्सी क्लोरोक्विन और एजिथ्रोमाइसिन का कांबिनेशन दिया गया जिससे ये मरीज जल्द ठीक हुए और इन्हें सघन चिकित्सा की जरूरत नहीं पड़ी।