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आइसीएमआर : कोरोना से लड़ाई में जिस पर टिकी हैं देश-दुनिया की निगाहें, जानें किन विषयों में है महारत

कोरोना से जारी जंग में देश की विभिन्न संस्थाएं अपने-अपने स्तर से लोहा लेते दिख रही हैं। ये संस्थाएं वे सभी प्रयास कर रही हैं जिनसे इस वायरस के प्रसार को रोका जा सके।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 19 Apr 2020 12:53 AM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2020 02:04 AM (IST)
आइसीएमआर : कोरोना से लड़ाई में जिस पर टिकी हैं देश-दुनिया की निगाहें, जानें किन विषयों में है महारत

नई दिल्ली [नेशनल डेस्क]। कोरोना से जारी जंग में देश की विभिन्न संस्थाएं अपने-अपने स्तर से लोहा लेते दिख रही हैं। ये संस्थाएं वे सभी प्रयास कर रही हैं, जिनसे इस वायरस के प्रसार को रोका जा सके। इसके लिए इसकी चेन तोड़ने से लेकर इसे खत्म करने वाली दवा तक पर काम चल रहा है और इन सभी कोशिशों में अहम भूमिका निभा रही है देश ही नहीं, दुनिया की सबसे पुरानी और बड़ी मेडिकल रिसर्च बॉडी में से एक आइसीएमआर। यानी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च)। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह संस्था मेडिकल के क्षेत्र में रिसर्च करती है।

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कोरोना के खिलाफ लड़ाई में संस्‍था की बड़ी भूमिका में

इन दिनों दोपहर चार बजे कोरोना वायरस को लेकर सरकार की तरफ से प्रेस कांफ्रेंस के जरिये जो अपडेट दी जाती है, उसमें आइसीएमआर का भी एक प्रतिनिधि अवश्य रूप से शामिल होता है। दरअसल, यह संस्था कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बड़ी भूमिका में है। देश में टेस्टिंग के लिए लैब्स को अनुमति इसी संस्था द्वारा प्रदान की जाती है। इसके साथ ही आइसोलेशन और मरीजों की मॉनिटरिंग से जुड़ी सभी गाइडलाइंस को आइसीएमआर ही जारी करती है। मरीजों के डाटा के आधार पर आइसीएमआर तरह-तरह की रिपो‌र्ट्स तैयार करती है, जिससे आगे की रणनीति तैयार की जाती है। वर्तमान में जब कोरोना से जंग में पूरी दुनिया इस वायरस का एंटीडोट तलाश रही है, ऐसे में आइसीएमआर के रिसर्चर्स भी इस कार्य में निरंतर प्रयासरत हैं। यही वजह है कि पूरे देश के साथ दुनिया की निगाहें भी इस संस्था पर टिकी हुई हैं।

1911 में नींव, 1949 में बदला स्वरूप

देश में जैव-चिकित्सा अनुसंधान के लिए निर्माण, समन्वय और प्रोत्साहन की इस शीर्ष संस्था की नींव वर्ष 1911 में पड़ी थी। तब इसका नाम इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (आइआरएफए) था। देश के आजाद होने के बाद आइआरएफए में कई बदलाव हुए और वर्ष 1949 में इसे आइसीएमआर का नाम दिया गया। इस संस्था की फंडिंग भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च के जरिये होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं।

ये हैं पांच मिशन

आइसीएमआर का विजन है कि शोध के जरिये देश के नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर किया जाए। आधिकारिक वेबसाइट में इसके पांच मिशन बताए गए हैं।

पहला : नई जानकारियों को जुटाकर उसके आधार पर शोध व आगे की रणनीति तैयार करना।

दूसरा : समाज के अशक्त, असहाय और हाशिये पर छोड़े गए तबकों की स्वास्थ्य समस्याओं पर शोध का फोकस बढ़ाना।

तीसरा : देश की स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए आधुनिक जैविक टूल्स का प्रयोग बढ़ाना।

चौथा : बीमारियों से बचाव के लिए डायग्नोस्टिक्स, ट्रीटमेंट, वैक्सीन को बढ़ावा देना।

पांचवां : इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर देश के मेडिकल कॉलेजों और हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट्स में शोध का कल्चर विकसित करना।

इन बीमारियों पर शोध

देशभर में आइसीएमआर के 21 स्थाई शोध केंद्र हैं। यहां पर कई तरह की संक्रामक बीमारियों पर शोध होता है जैसे रोटा वायरस, डेंगू, जापानी इंसेफेलाइटिस, एड्स, मलेरिया, कालाजार आदि। इस संस्था में टीबी, कुष्ठ, कॉलार, डायरिया जैसी बीमारियों पर भी शोध हो चुका है। वर्तमान में इसका पूरा फोकस कोरोना वायरस के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां एकत्र कर उसका तोड़ निकालने पर है। इसके अलावा आइसीएमआर न्यूट्रिशन, फूड एंड टॉक्सिकोलॉजी, ऑन्कोलॉजी और मेडिकल स्टैटेस्टिक्स पर पर काम करता है। इसके छह क्षेत्रीय मेडिकल रिसर्च सेंटर स्थानीय स्वास्थ्य समस्याओं पर फोकस करते हैं।

चमगादड़ पर अहम जानकारी

कोरोना वायरस पर शोध के दौरान हाल ही में आइसीएमआर ने पहली बार चमगादड़ की दो भारतीय प्रजातियों में बैट कोरोना वायरस पाया था। हालांकि, बाद में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बताया कि चमगादड़ से इंसानों में इस वायरस के आने की आशंका एक हजार वर्षो में एकाध बार ही होती है।


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