मैं रेल हूं, मैं आज रुकी हुई हूं ताकि कल चलूं तो हिंदुस्तान की सांसें चलें
अधिकारी हेनरी डेली ने भोपाल की नवाब शाहजहां बेगम से ट्रेन चलाने को लेकर बात की थी तब उन्होंने 34 लाख रुपये दान दिए थे और 1882 में भोपाल से इटारसी के बीच ट्रेन चली थी।
भोपाल [ओम द्विवेदी[। मैं रेल हूं। पांव नहीं हैं, फिर भी दिन-रात दौड़ती हूं। हाथ नहीं हैं, फिर भी बोझ उठाती हूं देश-दुनिया का। लोहे की बनी हूं, लेकिन सीने में धड़कता है आदमी का दिल। मेरे पास ज्ञान नहीं है, लेकिन रगों में दौड़ता है विज्ञान। भारत में मेरा इतिहास भले ही 167 सालों का है, लेकिन मैंने बदला है हजारों सालों का इतिहास।
मैंने भूगोल नहीं पढ़ा, लेकिन दौड़कर नाप लेती हूं धरती का एक-एक कोना। मुझे लिखना नहीं आता, लेकिन मुझ पर लिखी जाती हैं कविताएं, रचे जाते हैं उपन्यास। मैं जितनी पूर्व की हूं उतनी ही पश्चिम की, जितनी उत्तर की हूं उतनी ही दक्षिण की। मैं जितनी वादियों-बहारों की हूं, उतनी ही रेगिस्तानों की। मैं एक-एक डग भरती हुई पहाड़ों पर चढ़ती हूं तो किसी मछली की तरह तैरकर पार जाती हूं समुद्र।
जितनी गरीब की हूं, उतनी ही अमीर की। मैं प्रेम के लिए सपने भी ढोती हूं और युद्घ के लिए हथियार भी। भूख के लिए आग भी ले जाती हूं और प्यास के लिए पानी भी। मेरी पीठ पर कोयला भी लदा है और गांठ में हीरा भी गठियाया हुआ है। नए-नए ठिकानों को तीर्थ बना देती हूं तो तीर्थों को दुनिया का नया ठिकाना भी। मेरी एक बर्थ पर आंसू हैं तो दूसरी पर मुस्कान। मेरा धर्म केवल सफर है और मर्म मंजिल।
मैं जो कभी नहीं डरी किसी दैत्य से, आज मेरी रूह कांप रही है एक अनदीखे दुश्मन से। मैं जो कभी नहीं रुकी तूफानों से, रुकी हुई हूं अपनों की जिंदगानी के लिए। मैं जो कभी नहीं रोई लोहे की पटरियों पर दौड़ते हुए, आज सिसक रही हूं ठहर जाने की पीड़ा से। पहली बार ऐसा हुआ है कि मेरे पैरों में 22 दिन के लिए बेड़ियां पड़ी हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि मुझे देश को जोड़ने के बजाय उसे अलग-अलग रखने की जिम्मेदारी दी गई है। पहली बार मुझे अपनों को घर पहुंचाने के बजाय उन्हें घर में रखने का दायित्व सौंपा गया है।
पहली बार मैंने ऐसे दिन देखे हैं, जिन्हें पूरी दुनिया दुर्दिन कह रही है। पहली बार मुझे सिग्नल निहारे इतने दिन बीत गए हैं, घर से लाए टिफिन की खुशबू भूलती जा रही है, जल्दबाजियां आराम कर रही हैं। यूं तो कई बार एम्बुलेंस बनकर मैंने घायलों को अस्पताल पहुंचाया है, लेकिन अस्पताल बनकर पहली बार इस तरह खड़ी हुई हूं मैं। मैंने कई हड़तालें और कई कर्फ्यू देखे हैं, लेकिन जनता कर्फ्यू से पहला वास्ता है। राजनीतिक आपातकाल झेला है, लेकिन सामाजिक आपातकाल की टीस पहली बार मेरे हिस्से आई है। पहली बार मैं हिंदुस्तान में अपना जन्मदिन चलते हुए नहीं, खड़े हुए मना रही हूं।
मैं आज रुकी हुई हूं ताकि कल चलूं तो हिंदुस्तान की सांसें चलें, ठहरी हुई हूं ताकि देश का दिल धड़कता रहे, मैंने आज अपने दरवाजे बंद कर रखे हैं ताकि कल सुखद यात्राओं की राह खुली रहे। मुझे बोलना नहीं आता, लेकिन बताना चाहती हूं कि जिंदगी कोई खेल नहीं है और इससे खिलवाड़ करना भी ठीक नहीं। जीवन की रेल चलती रहे, इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए गाड़ी होना भूल गई हूं। मैं जब भी चलूंगी तुम्हारा स्वागत करती हुई ही मिलूंगी। रेड सिग्नल आखिरकार ग्रीन भी तो होता है। आउटर पर खड़े रहने का वक्त भी तो खत्म होता है।
138 साल पुराना है इतिहास
1868 तक उत्तर भारत में आगरा तक रेलवे ट्रैक था तो दक्षिण की तरफ खंडवा तक ट्रैक था। बीच में रेलवे ट्रैक नहीं था, सड़क मार्ग से आवागमन होता था। ब्रिटिश अधिकारी हेनरी डेली ने भोपाल की नवाब शाहजहां बेगम से ट्रेन चलाने को लेकर बात की थी तब उन्होंने 34 लाख रुपये दान दिए थे और 1882 में भोपाल से इटारसी के बीच ट्रेन चली थी।
जानिए अपनी रेल को : 138 साल पहले भोपाल से इटारसी के बीच दौड़ी थी पहली ट्रेन
भोपाल से इटारसी के बीच 138 साल पहले 1882 में पहली ट्रेन चली थी। अब भोपाल रेल मंडल के 96 स्टेशन से चैबीस घंटे में 300 से अधिक यात्री व 75 गुड्स ट्रेनें गुजरती है। इनसे सालना भोपाल रेल मंडल को करीब 1650 करोड़ की आवक होती है। इनके चलने से प्रदेश को तरक्की मिली है।
- 16 अप्रैल 1853 को देश में मुंबई से थाने के बीच पहली बार ट्रेन चली थी।
- 240 ट्रेनें गुजरती हैं भोपाल और हबीबगंज स्टेशन से
- रोज 80 हजार यात्री यहां से करते हैं सफर
- 1650 करोड़ की सालाना आवक मंडल को होती है।
- 130 ट्रेनें भोपाल स्टेशन से चैबीस घंटे में गुजरती हैं।
- 110 ट्रेनें हबीबगंज से होकर गुजरती है।
- 15,800 रेलकर्मी मिलकर चलाते हैं ट्रेनें
- 04 बड़े स्टेशन भोपाल, हबीबगंज, इटारसी और बीना चार बड़े स्टेशन हैं।
- 92 अन्य छोटे स्टेशन मंडल में हैं।
- 300 ट्रेनें सभी स्टेशनों से होकर गुजरती हैं चौबीस घंटे में
- 75 गुड्स ट्रेनें चैबीस घंटे में मंडल से होकर गुजरती हैं।
- 750 कोच पुनः निर्माण करने वाला कारखाना निषातपुरा में है।
- 10 ट्रेनें मंडल से बनकर चलती हैं।
मुझे और मेरे साथी अधिकारी, रेलकर्मियों को भोपाल रेल मंडल पर गर्व है। मंडल लगातार तरक्की कर रहा है। कोरोना संक्रमण से निपटने के बाद मंडल में पूर्व की तरह ट्रेनों का परिचालन करेंगे। यात्रियों को कोई दिक्कत नहीं आने देंगे। - उदय बोरवणकर, भोपाल रेल मंडल