सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले से हुड्डा की बढ़ी मुश्किलें, रोहतक जमीन मामले की जांच करेगी सीबीआइ
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार में रोहतक में एक बिल्डर को जमीन देने के मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी है। इस आदेश से हुड्डा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार में रोहतक में एक बिल्डर को जमीन देने के मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी है। इस आदेश से हुड्डा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
हुडा ने 2002 में रोहतक में हुड्डा सरकार के पास 850 एकड़ जमीन अधिगृहीत करने का भेजा था प्रस्ताव
दरअसल, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) ने 2002 में रोहतक में आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्र विकसित करने के लिए हुड्डा सरकार के पास 850 एकड़ जमीन अधिगृहीत करने का प्रस्ताव भेजा था। अप्रैल, 2005 में उसे 422 एकड़ जमीन अधिगृहीत करने का आदेश मिला। इससे एक महीने पहले यानी मार्च, 2005 में उद्दार गगन प्रापर्टीज लिमिटेड नामक रियल एस्टेट कंपनी ने कुछ किसानों के साथ समझौता कर लिया, जिनकी जमीन कालोनी बनाने के लिए अधिगृहीत की जानी थी। उसके बाद रियल एस्टेट कंपनी ने 280 एकड़ पर एक कालोनी विकसित करने के लिए लाइसेंस मांगा। जून, 2006 में उसे राज्य सरकार के टाउन एवं कंट्री प्लानिंग डायरेक्टर से मंजूरी भी मिल गई।
लाइसेंस दिए जाने के बाद संबंधित भूमि को अधिग्रहण से मुक्त कर दिया गया था
लाइसेंस दिए जाने के बाद संबंधित भूमि को अधिग्रहण से मुक्त कर दिया गया था। बिल्डर को लाइसेंस जारी किए जाने के बाद भूस्वामियों के पावर आफ अटार्नी रखने वालों के माध्यम से जमीन भी उसके नाम कर दी गई।
पीठ ने सीबीआइ को दिया मामले की जांच करने का निर्देश
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने बुधवार को सीबीआइ को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया।
अदालत ने 2016 में जमीन का लाइसेंस हुडा के पक्ष में हस्तांतरित करने का दिया था आदेश
2016 में शीर्ष अदालत ने उक्त जमीन का अधिग्रहण नहीं करने के फैसले को रद कर दिया था और हुडा के पक्ष में जमीन का लाइसेंस हस्तांतरित करने का निर्देश दिया था।
2017 में सेवानिवृत्त जज ने मामले की जांच में किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा था
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मार्च, 2018 में इस मामले की सीबीआइ से जांच कराने की बात कही थी, लेकिन बाद में वो इससे पीछे हट गए। बाद में राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त जज से मामले की जांच का कराने आदेश दिया था। 2017 में सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी राजन गुप्ता ने इस मामले की जांच की थी और इस मामले के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराते हुए इसे व्यवस्थागत खामी बताया था।